Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

सजायाफ्ता साधु आसाराम की आंखों में आंसू

आसाराम की पराजय, सिर्फ पीड़ित बच्ची अथवा उसके परिवार की ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज की जीत है...

सजायाफ्ता साधु आसाराम की आंखों में आंसू

Wednesday April 25, 2018 , 7 min Read

जब न्याय जीतता है, अन्यायी की आंखों में आंसू आने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इस तरह तो कोई भी दुराचारी हमारी समाज व्यवस्था में प्रथम दर्जा प्राप्त मनुष्यता का गला घोट सकता है। आसाराम की पराजय, सिर्फ पीड़ित बच्ची अथवा उसके परिवार की ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज की जीत है।

image


बड़े-बड़े अधिवक्ताओं-नेताओं राम जेठमलानी, राजू रामचंद्रन, सुब्रमण्यम स्वामी, सिद्धार्थ लूथरा, सलमान ख़ुर्शीद, केटीएस तुलसी और यूयू ललित जैसों की एक-एक कर कुल ग्यारहों ज़मानत अर्जियां ख़ारिज करते हुए आज नाबालिग से रेप के मामले में दोषी आसाराम को जोधपुर की अदालत ने उम्रकैद की सजा सुना दी।

साधु की आंखों में आंसू की बात विचलित करती है। कहावत है, मगरमच्छ की आंखों में आंसू या घड़ियाली आंसू। पब्लिक को बुद्धू बनाने के लिए नेताओं को अक्सर ऐसे आंसू बहाते देखा जाता है संसद से सड़क तक। बहरहाल, हमारे देश में एक ओर अपराधों की बाढ़, दूसरी तरफ बेहाल न्याय व्यवस्था और तीसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय से संसद तक न्यायपालिका के सिरे पर महाभियोग की हलचलें, जिसका उपराष्ट्रपति पटाक्षेप भी कर चुके हैं। सबसे पहले इन तीनों बिंदुओं को रेखांकित करता एक अघोरी अध्याय जाली भगवान के बारे में, वही आसाराम बापू, गुजरात वाला, या कहिए ब्रांडेड दुष्कर्मी साधु, जिसकी अब शुरू होने वाली है करनी की भरनी।

बड़े-बड़े अधिवक्ताओं-नेताओं राम जेठमलानी, राजू रामचंद्रन, सुब्रमण्यम स्वामी, सिद्धार्थ लूथरा, सलमान ख़ुर्शीद, केटीएस तुलसी और यूयू ललित जैसों की एक-एक कर कुल ग्यारहों ज़मानत अर्जियां ख़ारिज करते हुए आज नाबालिग से रेप के मामले में दोषी आसाराम को जोधपुर की अदालत ने उम्रकैद की सजा सुना दी। इससे पहले उसे प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट के तहत दोषी ठहराया जा चुका है। इससे पूर्व आसाराम ने जेल में तबीयत खराब होने की शिकायत की तो वहां एंबुलेंस और मेडिखल स्टाफ भेजा गया।

कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित के पिता ने कहा- आसाराम दोषी करार दिया गया है, हमें न्याय मिला। जिन्होंने हमारा साथ दिया उनका धन्यवाद। एक राजनीतिक बयान आया था पिछले दिनों साध्वी प्रज्ञा का,‘नाबालिग से रेप के आरोप में आसाराम दोषी नहीं, भगवान उन्हें दोषमुक्त करें।’ न भगवान ने माफ किया, न अदालत ने। हैरत होती है कि एक स्त्री ही ऐसे मामले में जब कोर्ट में मुकदमे के विचाराधीन होने के दौरान ऐसा बयान दे तो हमारे देश की राजनीतिक विडंबना को भला क्या कहा जा सकता है।

लाखों भक्त आसाराम को बापू और भगवान की संज्ञा देते थे पर उन्हें उम्मीद थी कि उनका भगवान अदालत की प्रक्रिया से निर्दोष साबित होकर आएगा, मगर सारी तिकड़मों के बावजूद ऐसा संभव हो न सका। कहा जा रहा है कि आज लाखों भक्तों की आस्था नहीं हारी बल्कि मठाधीश बन राजसी जीवन जीने वाले कथित गुरु समाज की हार हुई है। भक्तों का विश्वास तो न डोला, बल्कि आसाराम, बाबा राम रहीम जैसे कथित गुरु अपने भक्तों के प्यार को सहेजने में विफल होते जा रहे हैं। अब तो पीड़ित बच्ची के परिवार ने एक असंभव सी लड़ाई जीत ली है, जिसका एक बड़ा संदेश पूरे भारतीय समाज में गूंज उठा है। तो जानिए कि यह अंधभक्ति से आंखें फेर लेने का समय है।

अब आइए, अपराध और कानून के सिरे पर एक और प्रकरण से वाकिफ हो लेते हैं। हमारे देश में न्यायव्यवस्था जैसी भी है, फिलहाल है तो सही। हाल ही में कठुआ, उन्नाव, सूरत और इंदौर में बच्चियों से दुष्कर्म की घटनाओं के बाद सरकार ने ऐसे मामलों में सख्त सजा के प्रावधान लाने का फैसला किया है। अब 12 साल तक की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को अधिकतम मौत की सजा दी जाएगी। इसके लिए पिछले दिनो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर ढाई घंटे चली बैठक के बाद एक अध्यादेश लाने की मंजूरी दे दी गई। अभी पॉक्सो के तहत कम से कम सात साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। सजा का दायरा बढ़ाने के लिए इस अध्यादेश को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

इस नए अध्यादेश के जरिए 2012 में बने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट (पॉक्सो) और साक्ष्य कानून में संशोधन किया जाएगा। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) में भी बदलाव किए जाएंगे। केंद्र सरकार इस नए अध्यादेश को लाने के साथ ही ऐसे कदम भी उठाएगी जिससे दुष्कर्म के मामलों की जांच तेजी से हो और पीड़ित को जल्द से जल्द इंसाफ मिल सके। अभी चार राज्यों मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में 12 साल तक की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी देने का बिल पास हो चुका है। मध्यप्रदेश ऐसा बिल लाने वाला पहला राज्य था।

अध्यादेश के जरिए सजा में कई बदलाव विचाराधीन हैं। मसलन, नाबालिक के साथ दुष्कर्म करने पर अत्याचारी को फांसी। गौरतलब है कि अध्यादेश एक तरह का अस्थायी नियम होता है। संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत सरकार अध्यादेश लाती है, जिसे राष्ट्रपति मंजूरी देते हैं। ये ऐसे मामलों में लाए जाते हैं, जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो, किसी कानून में तुरंत बदलाव करना हो और कानून में संसद के जरिए संशोधन होने तक इंतजार न किया जा सके। अध्यादेश संसद को बायपास करने के लिए नहीं होते, बल्कि इन्हें कुछ वक्त की जरूरत के हिसाब से लाया जाता है। गौरतलब है कि कठुआ और उन्नाव में सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या का मुद्दा हाल ही में देशभर में सुर्खियों में आ चुका है। पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए पूरे देश में प्रदर्शन हुए। उन्नाव में भाजपा विधायक पर युवती से दुष्कर्म का आरोप लगा। इस मामले में सीबीआई जांच कर रही है। हाइकोर्ट की फटकार के बाद यूपी पुलिस ने विधायक को दबोच लिया है।

अब आइए, न्याय पालिका अथवा देश की न्याय व्यवस्था से जुड़े तीसरे विंदु की ओर रुख करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग के प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वैकेया नायडू ने खारिज कर दिया है। महाभियोग के नोटिस में पांच आरोप लगाये गये थे। आरोप एक और दो में मेडिकल कॉलेज स्कैम का जिक्र है, जिसकी सीबीआई द्वारा जांच हो रही है। इस मामले में पूर्व जज की गिरफ्तारी के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्तमान जज के खिलाफ कारवाई के तहत उन्हें न्यायिक कार्यों से मुक्त कर दिया गया है। कानून के अनुसार चीफ जस्टिस के खिलाफ सीबीआई द्वारा एफआईआर या जांच नहीं की सकती।

50 सांसदों द्वारा क़ानून के तहत दिए गए महाभियोग के नोटिस में प्राथमिक जांच से इनकार करने के बाद अब चीफ जस्टिस के विरुद्ध कदाचार के प्रमाण कैसे सामने आएंगे, ये सवाल उठ रहा है। महाभियोग खारिज करने के संबंध में तर्क दिए गए हैं कि चीफ जस्टिस की बेंच द्वारा अयोध्या एवं आधार जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई हो रही है। महाभियोग के नोटिस के बाद विपक्षी सांसदों द्वारा यह मांग की गई थी कि चीफ जस्टिस न्यायिक कार्यों खुद से अलग कर लें। उपराष्ट्रपति कहते हैं कि विपक्षी सांसदों द्वारा दिया गया नोटिस न तो वांछनीय है और न ही उचित। नोटिस में चीफ जस्टिस के दुव्यर्वहार या नाकाबलियत के बारे में ठोस या विश्वसनीय जानकारी नहीं है।

दूसरी और कपिल सिब्बल का कहना है कि राज्यसभा के सभापति के पास इस प्रस्ताव को मेरिट के आधार पर खारिज करने का आधार नहीं है। सिब्बल के अनुसार सभापति को मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनानी चाहिए थी, जिसकी जांच के बाद ही चीफ जस्टिस के खिलाफ स्पष्ट प्रमाण सामने आते। कॉलेजियम के अन्य वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चीफ जस्टिस के खिलाफ आरोप लगाये थे, जिनका महाभियोग की नोटिस में जिक्र है। जजेज इंक्वायरी एक्ट के तहत लोकसभा के 100 सांसद या राज्यसभा के 50 सांसद जज को हटाने की कारवाई के लिए महाभियोग का नोटिस दे सकते हैं। महाभियोग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इस समय दोनों सदनों में विपक्ष के पास विशेष बहुमत नहीं है।

यह भी पढ़ें: बेटों को कैसे बतायें पीरियड्स के बारे में