बेटों को कैसे बतायें पीरियड्स के बारे में
बेटियों से पहले बेटों को इसकी जानकारी होनी है ज्यादा ज़रूरी...
बेटियों के जन्म से लेकर बड़े होने तक उन्हें उठने-बैठने, चलने-फिरने, हंसने-बतियाने के तौर तरीके तो सीखाये जाते हैं, लेकिन क्या हमें ये मालूम है, कि बड़े हो रहे बेटों को किन-किन बातों के लिए जागरूक करना चाहिए। एक लड़को को हमेशा इस सोच के साथ बड़ा करना ज़रूरी है, कि वो अपने आसपास मौजूद हर लड़की का सम्मान करना सीखे साथ ही उसकी तकलीफ को समझे, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जानकारी है, पीरियड्स। पीरियड्स वो मासिक क्रिया है, जिससे दुनिया भर कि लड़कियां औरतें गुज़रती हैं। ऐसे में बेटों को यानि की पुरुषों को किन बातों को ख्याल रखना चाहिए इसकी जिम्मेदारी माँ की है, कि वो अपने बेटो को कैसा इंसान बना रही है, लड़कियों की तकलीफ समझने वाला या हृदयहीन...
इससे पहले कि आपका बड़ा हो रहा बेटा अपने सवालों के जवाब अपनी ही उम्र के बच्चों के बीच पाने की कोशिश करे, इससे पहले एक माँ की जिम्मेदारी है कि वो उसके सभी सवालों का जवाब खुद देते हुए उसे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करे। समय इतना खराब हो गया जिसे एकसाथ मिलकर भी ठीक नहीं किया जा सकता, तो क्यों न शुरुआत अपने घर से की जाये।
मैं जब 14 साल की थी, तो हमारे स्कूल में व्हिस्पर वाले आये। उन्होंने स्कूल की लड़कियों को एक 30 मिनट की फिल्म दिखाई, हर लड़की को एक किताब दी और साथ में व्हिस्पर के दो पैड्स भी दिये। ये उन दिनों की बात है, जब सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल बहुत प्रचलन में नहीं था। अधिकतर घरों में बच्चियां कपड़े से काम चलाती थीं। मैं घर पहुंची। किताब को पढ़ने की जिज्ञासा थी, उसमें पिरियड्स के बारे में सबकुछ लिखा था। लड़कियों के भीतर होने वाले हारमोनल चेंजिस, कैसे खयाल रखें, कैसे पैड का इस्तेमाल करें आदि आदि। जिस दिन किताब मिली मैं शाम के समय पढ़ाई करने के बहाने किताब लेकर छत पर पहुंच गई। घर में पढ़ती तो पता नहीं सब क्या सोचते इसलिए छत पर पहुंच गई। पड़ोस में मेरा एक दोस्त रहता था, वो अपनी छत की बाउंड्री पार करके आया और मेरी किताब छीन ली। हंसते हुए बोला, "तूझे भी होते हैं?" मैंने कहा "क्या?" वो बोला "पीरियड्स"। पीरियड्स के बारे में उसने मेरे से ऐसे पूछा जैसे ये कितनी फैंटसाईज़ करने वाली बात हो। फिर बोला, "मेरी क्लास में कुछ लड़कियों को होते हैं, जब उन्हें होते हैं, तो पूरी क्लास में सब लड़कों को पता चल जाता है।" खैर वो बात वहीं खत्म हुई... मैं बड़ी हुई तो मुझे समझ आया कि मेरे उस दोस्त ने पीरियड्स के बारे में कितने मज़े लेकर बात की थी। उसके लिए लड़कियों में पीरियड्स होना किसी सेक्सुअल फीलिंग से कम नहीं था।
मेरा बेटा 9 साल का हो चुका है। समझदार हो चुका है। अब उसके मन में सवाल उठते हैं, किसी भी नई चीज़ को जानने के लिए उसका पेशेंस जवाब दे देता है। हर बात को वो तुरंत जानना चाहता है। घूमा फिरा कर बात करने पर वो पकड़ लेता है और तुरंत कहता है, "मम्मा आप सही तरह से बतायें... मुझे पता है आप बात घूमा रही हैं।" अब उसकी उम्र इतनी हो चुकी है, कि उससे किसी भी बात को सही तरह से समझाया जा सकता है। मैं यदि उसे नहीं समझाऊंगी तो वो किसी और तरीके से जानना चाहेगा, फिर इस बात की गारंटी नहीं कि वो तरीका सही होगा या गलत, ऐसे में मेरा ही बता देना ज़रूर है और माँ होने के नाते, मेरी ज़िम्मेदारी भी।
ऐसा अक्सर ही होता है, कि टीवी पर सैनिटरी पैड्स के बारे में एड्स आते हैं। हम या तो चैनल बदल देते थे या फिर बच्चे से कुछ इधर उधर की बात करने लगते थे। पिछले दिनों किसी सैनिटरी पैड का एड टीवी पर आ रहा था। मेरे बेटे ने मुझसे पूछ लिया,
"मम्मा ये क्या है? क्या ये एडल्ट्स डाइपर है?"
मैं थोड़ी देर रूकी, पहले सोचा कि कुछ भी कह कर टाल देती हूं, लेकिन तभी वो तपाक से बोला,
"आप मुझे कह सकती हैं, मैं अब बड़ा हो गया हूं।"
मुझे लगा कि लगता है, वो कुछ-कुछ समझता है, तभी अपनी उम्र का एहसास मुझे दिला रहा, लेकिन अच्छी बात है कि मुझसे खुल कर पूछ रहा है। वह पूरी तरह जानना चाहता है। ऐसे में ये मेरी जिम्मेदारी बनती है, मैं अपने बेटे को बताऊं, कि टीवी पर आने वाला ये एड एक सैनिटरी पैड का एड मात्र नहीं है, बल्कि मेरे बेटे कि ज़िंदगी में आने वाली हर औरत को समझने की सबसे पहली सीख है।
मैं बेटे को अपने कमरे में ले गई। उसे बिठाय और फिर तसल्ली से बताया, कि ये पैड्स आखिर हैं क्या? लड़कियां इनका इस्तेमाल क्यों करती हैं? किस उम्र से इस्तेमाल करना शुरू करती हैं और किस उम्र तक इसका इस्तेमाल करती हैं? उसे ये भी बताया कि पीरियड्स लड़कियों के शरीर में होने वाली वो हारमोनल क्रिया है, जो बॉडी में कई सारे चेंजिस लेकर भी आती है। साथ ही मैंने उसे ये भी समझाया कि ये वो चीज़ है, जो तुम्हारी ज़िंदगी में आने वाली हर लड़की हर औरत को होती है या होगी, फिर वो चाहे तुम्हारी माँ हो, बहन हो, गर्ल फ्रैंड हो, दोस्त हो या पत्नी हो। तुम्हें ऐसे में इस बात का ख़ास ख़याल रखना है, कि तुम पीरियड्स के दौरान उनके साथ कैसे पेश आ रहे हो। क्योंकि पीरियड्स का मतलब सिर्फ ब्लीडिंग होना ही नहीं होता, बल्कि पेट में दर्द, मूड का स्विंग करना, चिड़चिड़ापन और कुछ लड़कियां तो पीरियड्स के दौरान डिप्रेशन में भी चली जाती हैं। उन्हें गुस्सा आता है, शरीर के कई हिस्से दर्द करते हैं। क्योंकि तुम बड़े हो रहे हो, तो तुम्हें खुद से जुड़ी हर लड़की हर औरत का खयाल रखना चाहिए और जब तुम ये फील करो कि कोई इस वक्त पीरियड्स में है, तो आगे बढ़कर उसकी मदद करो। उसका खयाल रखो। छोटे-छोटे काम में उसका सहयोग करो। जो कि तुम्हें वैसे भी करना चाहिए, लेकिन ऐसे समय में ख़ास कर करना चाहिए।
मेरे 9 साल के बेटे ने हर बात को शांती से सुना और एक दिन जब मैंने घर में पेट दर्द की शिकायत की तो वो मेरे सारे काम खुद कर रहा था, यहां तक कि मुझे 1 ग्लास पानी भी नहीं लेने दे रहा था। फिर अचानक से जब मैं उठने लगी तो मेरी चप्पलें मेरे पैरों के पास लाकर रख दीं।
मैंने कहा, "आप क्यों इतना परेशान हो रहे हो?"
धीरे से मेरे कान में बोलता, "मम्मा आपको पीरियड्स हो रहे हैं न इसलिए। आप मुझे कहें मैं कर दूंगा।"
मैंने उसे गले लगाया और कहा, "तुम बहुत अच्छे लड़के हो, लेकिन सिर्फ मेरा ही नहीं, ऐसे समय में उस हर लड़की का खयाल रखना चाहिए, जिससे आपका कोई न कोई रिश्ता हो।"
इससे पहले कि आपका बड़ा हो रहा बेटा अपने सवालों के जवाब अपनी ही उम्र के बच्चों के बीच पाने की कोशिश करे, इससे पहले एक माँ की जिम्मेदारी है कि वो उसके सभी सवालों का जवाब खुद देते हुए उसे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करे। समय इतना खराब हो गया जिसे एकसाथ मिलकर भी ठीक नहीं किया जा सकता, तो क्यों न शुरुआत अपने घर से की जाये।
लड़कों को सिर्फ उनकी तकलीफों उनकी ज़रूरतों उनके अच्छे बुरे के बारे में नहीं, बल्कि लड़कियों की ज़रूरतों और उनके अच्छे-बुरे के बार में भी बताना चाहिए। और ये काम सिर्फ एक माँ ही कर सकती है। अब मुझे इस बात का यकीन है, कि मेरा बेटा कम से कम लड़कियों में होने वाली पीरियड्स जैसी क्रिया को फैंटसाइज़ नहीं करेगा और न ही उसे उस तरह सोचेगा, जैसे कि मेरे बचपन का वो दोस्त और उसके जैसे तमाम लड़के।
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