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कॉलेज की फीस से शुरू किया गारमेंट का बिजनेस, अब है करोड़ों का टर्नओवर

कॉलेज की फीस से शुरू किया गारमेंट का बिजनेस, अब है करोड़ों का टर्नओवर

Thursday September 27, 2018 , 5 min Read

स्टार्टअप वाले युवा अपना ही आर्थिक भविष्य सुरक्षित नहीं कर रहे, बल्कि देश और समाज को भी दिशा दे रहे हैं। वे स्टार्ट अप के नए नए आइडिया भी दे रहे हैं और खुद की कमाई से करोड़पति बनते जा रहे हैं। पियूष, रंजन, आशुतोष, नोएल जॉन, अपूर्व आदि आज के ऐसे ही सफल युवा हैं।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


 उन्होंने सोचा कि क्यों न वह भी गारमेंट के स्टार्टअप में ही अपनी किस्मत आजमाएं। फिर क्या था, अपनी एमबीए की फीस के पचास हजार रुपए उन्होंने गारमेंट्स के बिजनेस में लगा दिए। बड़े ब्रांड्स की शर्ट बिना प्रॉफिट के बेचने लगे।

वह इंस्‍टाग्राम के फाउंडर-सीईओ केविल सिस्‍ट्रॉम की सफलता की दास्तान हो या इंदौर के पीयूष वरगाड़िया के करोड़पति बनने की कहानी अथवा बिहार के आशुतोष कुमार, मुजफ्फरपुर की नेहा दराद, पटना के रंजन मिस्त्री का इंटरप्रेन्योर, तमाम चुनौतियों के बीच ये युवा नए जमाने की नजीर बनते जा रहे हैं। औरंगाबाद (बिहार) के गांव दाउदनगर के आशुतोष कुमार इंग्लैंड की लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर छह महीने नौकरी के बाद अपने गांव लौट आए। इसके बाद अपने राज्य के अलावा जम्मू-कश्मीर, मेघालय आदि में कॉल सेंटर खोलकर युवाओं को रोजगार से जोड़ने लगे। वह अब तक हजारों युवाओं को रोजगार का रास्ता दिखा चुके हैं। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के स्टार्टअप पर काम कर रहे पटना के युवा रंजन मिस्त्री पटना के कॉलेजों में ई-सेल बनाने में जुटे हैं। उन्नीस साल की नेहा दराद किताबें लिख रही हैं। उनका सपना बड़ा राइटर बनना है। उनका टारगेट बिहार में राइटिंग कल्चर डेवलप करना है। जो होनहार होते हैं, खुद अपना रास्ता बना लेते हैं।

पीयूष वरगाड़िया तो अजब-गजब मिसाल बन चुके हैं। जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वह यूके एमबीए करने गए तो वहां सेहत बिगड़ने लगी। इंदौर लौट आए। इसके बाद एमबीए करने के लिए पुणे गए तो वहां देखा कि गारमेंट के बिजनेस में उनके रिश्तेदार की खूब कमाई हो रही है। उन्होंने सोचा कि क्यों न वह भी गारमेंट के स्टार्टअप में ही अपनी किस्मत आजमाएं। फिर क्या था, अपनी एमबीए की फीस के पचास हजार रुपए उन्होंने गारमेंट्स के बिजनेस में लगा दिए। बड़े ब्रांड्स की शर्ट बिना प्रॉफिट के बेचने लगे। कुछ समय तक कमाई नहीं हुई। धीरे-धीरे प्रॉफिट होने लगा। आज उनके पास तीन दर्जन से अधिक कर्मचारियों का स्टाफ है। हर महीने उनके चार-पांच शर्ट्स बिक जाते हैं। उनके कारोबार का सालाना टर्नओवर दो करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है।

उसके सफलता के पीछे भी कुछ इसी तरह की कहानी है। आज तमाम युवा हेल्थ फूड, योगा, मेडिटेशन सेंटर्स आदि के स्टार्टअप में अपना भविष्य आजमा रहे हैं। यूरोप की नौकरी छोड़कर एक नए तरह के स्टार्ट अप से ही कामयाबी की दास्तान लिख रहे हैं कानपुर के डॉ अपूर्व रंजन शर्मा। उनकी कंपनी वेंचर कैटेलिस्ट आज देश की सबसे बड़ी और एशिया की टॉप-5 इंक्यूबेटर, इन्वेस्टमेंट कंपनी बन चुकी है। वर्ष 2002 में उन्होंने जेएसएस एकेडमी में इंक्यूबेशन सेंटर स्थापित किया। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति ने 2005 में बेस्ट इंक्यूबेटर अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसके बाद उन्होंने सात वर्षों तक देश की विभिन्न यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में इंक्यूबेशन सेंटर स्थापित किए। इसके बाद वह इंडियन एंजल नेटवर्क से जुड़ गए। उसके तीन साल बाद एंजल वेंचर नेटवर्क छोड़कर उन्होंने खुद की वेंचर नर्सरी शुरू कर दी। इसके जरिए वह अलग-अलग जगहों पर इंक्यूबेशन सेंटर स्थापित करते और स्टार्टअप कंपनियों में निवेश भी करने लगे।

दो साल पहले डॉ अपूर्व रंजन शर्मा ने अपने तीन साथियों गौरव जैन, अनिल जैन और अनुज गुलेचा के साथ मिलकर वेंचर कैटैलिस्ट नाम की अपनी नई कंपनी बना ली। अब उनकी कंपनी बताती है कि किस तरह के स्टार्टअप अपनी कंपनी के लिए कितना निवेश, किस तरह से करें। इस तरह उन्होंने रोजगार की एक नई राह खोल दी है। होटल चेन ओयो के फाउंडर और मुख्य कार्यकारी जिस रितेश अग्रवाल ने हाल में चीन में भी अपनी सर्विस शुरू कर दी है, वह कहते हैं, अगर हौसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई ताकत कामयाब होने से नहीं रोक सकती। उन्होंने सत्रह साल की उम्र में इंजीनियरिंग छोड़कर खुद की कंपनी का काम शुरू कर दिया था। आज बिना किसी की मदद के उन्होंने अपने कारोबार को करोड़ों रुपये में पहुंचा दिया है। एक अनुमान के मुताबिक उनकी कंपनी की वैल्यूएशन 40 करोड़ डॉलर (करीब 28 हजार करोड़ रुपए) हो चुकी है।

अब देखिए न, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के नोएल जॉन को किस तरह एक नए तरह के स्टार्ट अप का आइडिया मिला। एक दिन वह अपनी मां के साथ स्कूल गए तो वहां कमजोर बच्चों को देखकर उन्होंने कुपोषण मिटाने का संकल्प ले लिया। इस बीच उन्हें पता चला कि काई में सबसे ज्यादा विटामिन पाया जाता है। हाल ही में इसका पाउडर तैयार कर मध्याह्न भोजन के साथ बच्चों को देने का नोएल का आइडिया स्टार्टअप प्रतियोगिता में फर्स्ट आ गया। अब नोएल का प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए सीएसआईडीसी पैसा खर्च करेगी। नोएल बताते हैं कि एक ग्राम काई में तीन सौ एमएल दूध जितना विटामिन है। इतना ही नहीं, एक ग्राम काई में तो तीस ग्राम मछली, दस ग्राम अंगूर, पचीस ग्राम गाजर, डेढ़ सौ ग्राम चावल, बीस ग्राम आलू, दो किलो पत्तागोभी के विटामिन के बराबर पौष्टिक तत्व होता है। एक ग्राम काई के उत्पादन में उद्यमी के हिसाब से पचहत्तर पैसे खर्च होंगे। 

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