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ऋणों की वसूली व्यवस्था और कारगर करने वाला विधेयक लोकसभा में पारित

ऋणों की वसूली व्यवस्था और कारगर करने वाला विधेयक लोकसभा में पारित

Tuesday August 02, 2016 , 4 min Read

लोकसभा ने 1 अगस्त को वह प्रस्तावित विधेयक पारित कर दिया, जिसमें बैंकों को ऋण अदायगी नहीं किए जाने पर रेहन रखी गई संपत्ति को कब्ज़े में लेने के अधिकार दिया गया है। खेती की ज़मीन को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।

वित्त मंत्री अरूण जेटली ने सदन को आश्वासन दिया कि शिक्षा ऋण की वसूली के मामले में ‘सहानुभूति का दृष्टिकोण’ अपनाया जाएगा।

जेटली ने शिक्षा ऋण की अदायगी में चूक को माफ़ करने की संभावना से इंकार करते हुए कहा कि यदि कोई बेरोज़गारी है और जब तक उसे रोज़गार नहीं मिलता उसके मामले में कुछ सहानुभूति रखी जा सकती है, लेकिन ऐसे ऋण को बट्टे खाते में नहीं डाला जा सकता।

प्रतिभूति हित प्रवर्तन एवं ऋणों की वसूली के कानून एवं विविध प्रावधान (संशोधन) विधेयक 2016 पर लोकसभा में चर्चा पर वित्त मंत्री जेटली के जवाब के बाद सदन ने इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया।

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प्रतिभूति हित प्रवर्तन एवं ऋणों की वसूली के कानून एवं विविध प्रावधान (संशोधन) विधेयक 2016 के जरिए चार मौजूदा कानूनों प्रतिभूतिकरण एवं वित्तीय संपत्तियों के पुनर्गठन एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम 2002 (सरफेसी कानून), ऋण वसूली न्यायाधिकरण अधिनियम 1993, भारतीय स्टांप शुल्क अधिनियम 1899 और डिपॉजिटरी अधिनियम 1996 के कुछ प्रावधानों में संशोधन किए जा रहे हैं ताकि रिण वसूली की व्यवस्था और कारगर हो सके।

सरफेसी कानून में बदलाव से सिक्योर (गारंटी के आधार पर) ऋण देने वाली संस्था को ऋणों की अदायगी नहीं किए जाने पर उसके लिए रेहन के रूप में रखी गई संपत्ति को कब्ज़े में लेने का अधिकार होगा। इसके तहत जिलाधिकारी को यह प्रक्रिया 30 दिन के अंदर संपन्न करानी होगी।

जेटली ने कहा कि बैंकों को ऋण अदा नहीं करने वालों के खिलाफ कारगर कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार जरूर होना चाहिए। उन्होंने दिवाला कानून, प्रतिभूतिकरण कानून और डीआरटी कानून को इसी विषय में उठाया गया कदम बताया। उन्होंने कहा कि इस कानून से वसूली की प्रक्रिया आसान होगी और रिण वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित मामलों का तत्परता से निस्तारण हो सकेगा।

जेटली ने कहा कि कृषि भूमि को इस नए अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है। जेटली ने शिक्षा रिण को लेकर सदन में व्यक्त की गई चिंता का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले में यदि कोई बेरोज़गार है और उसे जब तक रोज़गार नहीं मिल रहा है, कुछ सहानुभूति दिखाने की जरूरत है। लेकिन ऐसे रिण को माफ़ नहीं किया जा सकता। वित्त मंत्री ने वसूली की त्वरित प्रक्रिया की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि , ‘‘हम ऐसी बैंकिंग व्यवस्था नहीं चला सकते जिसमें लोग कर्ज तो लें लेकिन उसे अदा न करें।’’ ग़ौरतलब है कि इस समय सरकारी बैंक चार लाख करोड़ रुपये के एनपीए (वसूल नहीं हो रहे कर्ज) से जूझ रहे हैं और उनके कुल आठ लाख करोड़ रपये के कर्ज दबाव में हैं।

यह विधेयक लोकसभा में मई में पेश किया गया था ताकि खासकर सरकारी बैंकों को रिण वसूली तेज करने की कानूनी शक्ति मिले। इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए सुपुर्द किया गया था और उसकी रपट मिलने के बाद इसे लोकसभा ने आज चर्चा के बाद पारित किया।

शराब व्यापारी विजय माल्या जैसे चर्चित चूककर्ताओं के मामलों के मद्देनज़र यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है। माल्या पर बैंकों का 9,000 करोड़ रुपये बकाया है और वह देश से बाहर इंग्लैंड में शरण लिए हुए हैं।

जेटली ने कहा कि यदि बैंकों का कर्ज लेकर चुकाया नहीं गया है और उसे माफ़ किया जाता है, तो उसका प्रावधान केंद्र या राज्यों के बजट में करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें ऐसी संस्कृति नहीं सृजित करनी चाहिए, जिसमें किसी ने ऋण लिया हुआ है और वह चैन की नींद सो रहा है और इसकी जवाबदेही बैंक की है..ऋणों को बट्टे खाते में डालने से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां बैंक रिण देने की स्थिति में ही नहीं रहेंगे।

इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार बैंक रिण अदा ना करने वाली कंपनी के प्रबंध का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकते हैं और इस काम में जिलाधिकारी उनकी मदद करेंगे। इस प्रकार का नियंत्रण ऐसी स्थिति में किया जाएगा जबकि बैंक अपने बकाया रिण को संबंधित कंपनी के 51 प्रतिशत या उससे अधिक के शेयर में तब्दील करेंगे।

जेटली ने कहा कि यदि इस समय किसी रिण की किश्त 90 दिन तक नहीं चुकाई जाती तो वह रिण खाता एनपीए हो जाता है और बैंकों की स्थिति दुविधापूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि एनपीए के कई कारण हैं जिनमें आर्थिक नरमी, बैंकों के गलत फैसले और ऋण का गबन शामिल है।-पीटीआई