अनाथ हिंदू दोस्त का अंतिम संस्कार कर इस मुस्लिम युवक ने पेश की मानवता की मिसाल
धर्म से ऊपर होते हैं कुछ रिश्ते...
पिछले महीने पश्चिम बंगाल में बर्दवान के नर्स क्वार्टर में रहने वाले मिलन दास की असामयिक मृत्यू हो गई। उन्हें दिल की बीमारी थी। मिलन के परिवार में कोई नहीं था, इसलिए पड़ोसी इस चिंता में थे कि आखिर उसका अंतिम संस्कार कौन करेगा।
उसकी फैमिली के बारे में पता न लगा पाने के कारण पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार बतौर लावारिस करने का फैसला किया। लेकिन एक दोस्त ने अपनी दोस्ती का फर्ज इक कदर निभाया कि वो मिसाल गई।
देश में भले ही हिंदू-मुस्लिम को लेकर लोगों के अंदर एक अलग धारणा बनी हो लेकिन इस मुस्लिम युवक ने जो किया है उसने लोगों के अंदर एक अलग सोच और सम्मान को जन्म दिया है। बॉलीवुड की फिल्मों में अक्सर हिंदू-मुस्लिम युवकों की दोस्ती को परवान चढ़ते दिखाया जाता है लेकिन असल जिंदगी में ऐसी कहानियां बहुत कम सुनने को मिलती हैं। ये असली कहानी पश्चिम बंगाल की है। पिछले महीने पश्चिम बंगाल में बर्दवान के नर्स क्वार्टर में रहने वाले मिलन दास की असामयिक मृत्यू हो गई। उन्हें दिल की बीमारी थी। मिलन के परिवार में कोई नहीं था, इसलिए पड़ोसी इस चिंता में थे कि आखिर उसका अंतिम संस्कार कौन करेगा। मिलन की मौत 29 मई को हुई थी। उसकी फैमिली के बारे में पता न लगा पाने के कारण पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार बतौर लावारिस करने का फैसला किया। लेकिन एक दोस्त ने अपनी दोस्ती का फर्ज इक कदर निभाया कि वो मिसाल गई।
मिलन दास के सबसे करीबी दोस्त रबी शेख ने अपने दोस्त के अंतिम संस्कार का फैसला किया। पहले तो लोग इस फैसले पर काफी हैरान हुए क्योंकि रबी मुस्लिम था और मिलन के सारे क्रियाकर्म हिंदू रीति-रिवाज के आधार पर होने थे। लेकिन किसी ने भी इस मामले में रबी से पूछताछ नहीं की। रीति-रिवाज और परंपराओं को दरकिनार करते हुए रबी ने अपने दोस्त की मदद की लिए हाथ बढ़ा दिया था। ये खबर लोगों के बीच आई, तो लोग उनकी दोस्ती की मिसाल दे रहे हैं। मिलन का अंतिम संस्कार कराने वाले पंडित ने भी रबि की तारीफ की। उन्होंने कहा वो खुशनसीब हैं कि इस ईमानदार दोस्ती का हिस्सा बने।
रबी ने मिलन के साथ अपने अच्छे दिनों को याद करते हुए मीडिया को बताया, "हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। पिछले दस साल में बमुश्किल ही कोई ऐसा दिन रहा होगा कि जब हम एक-दूसरे से न मिले हों। हमारी दोस्ती ने धार्मिक पाबंदियों को भी जीत लिया। हमने 28 मई की रात भी बात की थी। अगले दिन मैं काम से वापस आया और सुना कि उसकी मौत हो गई है। मुझे विश्वास नहीं हुआ। हम बहुत अच्छे दोस्त थे। पिछले 10 वर्षों में ऐसा कोई दिन नहीं रहा है जब हम न मिले हों। उसका कोई परिवार नहीं था इसलिए उसे उचित अंतिम संस्कार नहीं मिल पाता लेकिन मैं ऐसा कैसे हो होने देता? तो पिछले 10 दिनों से, मैं अपने दोस्त के लिए हिंदू अंतिम संस्कार करने के लिए आवश्यक सभी नियमों का पालन कर रहा हूं।"
आपको बता दें कि इस घटना से पिछले साल मालदा के शेखपुरा गांव में हुई अन्य घटना की याद आती है। यहां भी एक अकेले रहने वाले 33 साल के विश्वजीत रजक की मौत पर मुस्लिम समुदाय ने हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक उसका अंतिम संस्कार किया था।
कहते हैं कि इंसानियत सभी धर्मों से ऊपर होती है। हर मजहब में इंसानियत को सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया है। हर धर्मों में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने अपने काम से मानवता का सिर फख्र से ऊंचा किया है। याद हो पिछले महीने नैनीताल के करीब रामनगर के गरजिया देवी मंदिर के बाहर उग्र हिंदू युवाओं की एक भीड़ ने मुस्लिम युवक को कथिततौर पर बंधक बना लिया था। जिसके बाद वहां के पुलिस इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह ने अपना फर्ज निभाते हुए उस युवक को भीड़ से छुड़ाया था।
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