औरतों को बराबरी मर्दों की नेक नीयत से नहीं मिलेगी, रिजर्वेशन देने से मिलेगी
यूरोपियन यूनियन 27 सदस्य देशों की शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं के लिए 40 फीसदी आरक्षण लागू करने जा रहा है. जेंडर बराबरी का लक्ष्य ऐसे ही पूरा हो सकता है. नियम-कानून बनाकर, रिजर्वेशन देकर.
शिक्षा, नौकरी, संपत्ति के अधिकार से लेकर सारे बुनियादी इंसानी हक तक में औरतें पूरी दुनिया में मर्दों के बरक्स बहुत पीछे खड़ी हैं. उन्हें बराबरी पर लाने की बातें जरूर होती रहती हैं, लेकिन सच तो ये है कि सिर्फ आपकी सद्भावना से यह मुमकिन नहीं. यह मुमकिन होगा वह करने से, जो यूरोपियन यूनियन (ईयू) करने जा रहा है.
ईयू कंपनियों के बोर्ड में 40 फीसदी नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने जा रहा है. ईयू के 27 देशों की वह सभी कंपनियां, शेयर बाजार में लिस्टेड हैं, उनके नॉन-एक्जीक्यूटिव बोर्ड मेंबर्स में 40 फीसदी महिलाओं का होना अनिवार्य किया जा रहा है. इसके अलावा एक्जीक्यूटिव और नॉन-एक्जीक्यूटिव, दोनों मिलाकर कम से कम 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने का प्रस्ताव पास हो गया है.
ऐतिहासिक तौर पर चली आ रही गैर बराबरी को दूर करने के लिए पिछड़ गए समूह को सिर्फ अवसर देना काफी नहीं होता. उसे स्टार्टिंग पॉइंट तक लाने के लिए आरक्षण देना भी जरूरी होता है. भारत की संसद में 33 फीसदी महिला आरक्षण का बिल पिछले 33 सालों से अधर में लटका है. लेकिन आरक्षण के नाम पर मुंह बिचकाने वालों को दुनिया का इतिहास उठाकर देखना चाहिए कि न्याय और बराबरी के लिए प्रतिबद्ध समाजों ने पिछड़े समूहों को बराबरी पर लाने के लिए क्या जरूरी
कदम उठाए.
ईयू का यह प्रस्ताव नया नहीं है. दस साल पहले पहली बार यह प्रस्ताव पेश किया गया था और तब से इसे लेकर नर्म-गर्म रुख चलता रहा.अपनी आज की तारीख यूरोप के 15 देशों का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है. इन देशों में अपनी तरह से महिलाओं के लिए नौकरियों और लीडरशिप के पदों के लिए रिजर्वेशन की व्यवस्था लागू है. लेकिन यूरोपीय परिषद के इस प्रस्ताव के पास होने का अर्थ है कि उस समूह में आने वाले सभी देश अब नियम को मानने के लिए बाध्य होंगे.
10 साल के लंबे इंतजार के बाद जर्मनी और फ्रांस की तरफ से मिले सकारात्मक सहयोग के बाद इस प्रस्ताव पर सहमति बन गई. अब अगले चरण में यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ के 27 देशों को आधिकारित तौर पर इस प्रस्ताव को स्वीकार करना है. ईयू के 27 देशों की स्टॉक मार्केट लिस्टेड कंपनियों को इन नियम को लागू करने के लिए 2026 तक का समय दिया जाएगा.
यूरोपीय संसद की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लायन ने इस घोषणा के बाद ट्विटर पर लिखा, “आखिरकार विमेन ऑन बोर्ड को लेकर ईयू में सहमति बन ही गई. उन सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया, जो इस महत्वपूर्ण फाइल पर एक दशक तक जुटे रहे. यह यूरोप की औरतों के लिए बहुत बड़ा दिन है. यह कंपनियों के लिए भी बड़ा दिन है क्योंकि विविधता का अर्थ है, ज्यादा प्रगति और नई खोज.”
यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्य रॉबर्ट बाइद्रॉन की पॉलिसी एडवाइजर मोनिका सिकोरा ने ट्विटर पर लिखा, “यह एक ऐतिहासिक पल है. एक दशक की लंबी कोशिशों के बाद इस पर सहमति बनी है. बराबरी के लक्ष्य को पाने में यह निर्णय मील का पत्थर साबित होगा.”
यूएन विमेन की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सीमा बहोस ट्विटर पर लिखती हैं, “यूएन विमेन यूरोपियन यूनियन के इस फैसले का स्वागत करता है. हम शुक्रगुजार हैं कि जेंडर बराबरी की कोशिश आपके एजेंडे में सबसे ऊपर है.”
ईयू कमिश्नर फॉर इक्वैलिटी एलेना डाली ने ट्टिवर पर लिखा कि मैं उन सबका शुक्रिया अदा करती हूं, जिन्होंने आज की इस सफलता को हासिल करने के लिए जान लगा दी.
जेंडर बराबरी के लक्ष्य को पाने के लिए आरक्षण कितना जरूरी है, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जिन देशों में पहले से रिजर्वेशन लागू है, सिर्फ वहीं बोर्ड मेंबर्स में महिलाओं का अनुपात बेहतर है. फ्रांस में महिलाओं की संख्या 45 फीसदी है और वहां 40 फीसदी का कोटा तय है. फ्रांस इकलौता देश है, जहां महिलाओं की संख्या निश्चित कोटे से भी ज्यादा है.
बाकी जिन देशों में कोई नियम नहीं है, जहां न्यूनतम 3 फीसदी से लेकर 9 फीसदी तक महिलाएं हैं. इस नियम के बाद वहां भी महिलाओं की हिस्सेदारी का अनुपात बेहतर होगा.
यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वैलिटी की रिपोर्ट कहती है कि कंपलसरी रिजर्वेशन जेंडर प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ महत्वपूर्ण बल्कि अनिवार्य है.
(फीचर फोटो पॉलिसी एडवाइजर मोनिका सिकोरा के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से साभार.)