पढ़ाई छोड़ जो कभी करने लगे थे खेती, वो आज हैं देश की नंबर 1 आईटी कंपनी के चेयरमैन
टाटा समूह के सिरहाने किसान का बेटा...
ये बात भला कितनों को मालूम है कि कभी देश की नंबर वन आइटी कंपनी के चेयरमैन और आज पूरे टाटा समूह के शीर्ष पद पर बैठे नटराजन चंद्रशेखरन पिता की इच्छा के अनुसार अपनी पढ़ाई-लिखाई बीच में ही छोड़कर खेती-किसानी करने लगे थे। वक्त ने करवट ली, वह फिर अध्ययन में जुटे और तब से आज तक उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस शख्सियत की एक खासियत है कि मीडिया से ज्यादा मेलजोल उन्हें नहीं सुहाता है। मैराथन दौड़ के शौकीन चंद्रशेखरन को फोटोग्राफी का भी चस्का है।
कभी न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में चंद्रशेखरन अखबार प्रतिनिधि को बताया था कि उनके पिता एक लॉयर थे, लेकिन दादा के गुजर जाने के बाद उन्होंने किसानी शुरू कर दी। वह बेटे को किसान बनाना चाहते थे।
छह लाख साठ हजार आठ सौ कर्मचारियों का टाटा ग्रुप, जिसका दुनिया के सौ देशों में कारोबार फैला है, उसके शीर्ष पद आसीन है एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसका बचपन एक किसान परिवार में भरित-पोषित हुआ। नाम है नटराजन चंद्रशेखरन। उम्र लगभग 53 साल। आज चंद्रशेखर के हाथ में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) की ही कमान नहीं, वह तो पूरे टाटा ग्रुप के चेयरमैन हैं। खेती-किसानी के अनुभवों के साथ ही मैराथन दौड़ के शौकीन चंद्रशेखरन को फोटोग्राफी का भी चस्का है। वैसे चंद्रशेखरन टाटा समूह से लगभग तीन दशक पहले 1987 में जुड़े थे।
चंद्रशेखरन के स्वभाव में एक व्यक्ति तथ्य ये जुड़ा रहता है कि वह मीडिया से एक खास दूरी बनाकर चलते हैं। टाटा समूह के 150 साल के इतिहास में चेयरमैन पद के लिए चुने जाने वाले नटराजन चंद्रशेखरन पहले गैर-पारसी हैं। उनकी बुंलदी का सितारा सायरस मिस्त्री को पदमुक्त करने के बाद 12 जनवरी 2017 को चमका। चंद्रशेखरन कहते हैं कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी उनके लिए सम्मान की बात और टाटा परिवार का हिस्सा होना मेरे गर्व का विषय है। ग्रुप को एकजुट कर उनका मुख्य काम टाटा के बिजनेस का पूरे समाज पर छाप छोड़ना है।
यह घोषणा चंद्रशेखरन ऐसे समय में करते हैं, जबकि टाटा ग्रुप की 18 लिस्टेड कंपनियों पर 2.36 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। अन्य चुनौतियों में टाटा स्टील की यूरोप में रीस्ट्रक्चरिंग, टाटा टेली और एनटीटी डोकोमो के बीच विवाद, टाटा मोटर्स का कमजोर घरेलू कारोबार, एएलआर के कारोबार में उतार-चढ़ाव, टीसीएस के पास कैश की भरमार, इंडियन होटल्स का परफॉर्मेंस, टाटा ग्लोबल बेवरेजेज की यूरोप में स्ट्रेस्ड एसेट्स, कंपनियों का पेचीदा क्रॉस होल्डिंग स्ट्रक्चर, टाटा ट्रस्ट और टाटा ग्रुप के बीच रिश्तों में सुधार और बिजनेस से बाहर निकलने या निवेश या ग्रोथ पर फैसला आदि चंद्रशेखरन की बाकी शीर्ष चुनौतियां हैं। ऐसे में उल्लेखनीय है कि पिछले एक साल यानी 2017 में टाटा ग्रुप की कंपनियों का मार्केट कैप 1.25 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया था। अब चंद्रशेखरन अपना एक साल, दो माह पूरे कर चुके हैं। उनके नेतृत्व में टीसीएस ने वर्ष 2015-16 के दौरान राजस्व में बढ़ोतरी करते हुए 16.5 अरब डॉलर तक पहुंचा दिया था।
कभी न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में चंद्रशेखरन अखबार प्रतिनिधि को बताया था कि उनके पिता एक लॉयर थे, लेकिन दादा के गुजर जाने के बाद उन्होंने किसानी शुरू कर दी। वह बेटे को किसान बनाना चाहते थे। जब वह कॉलेज में थे तो उनके भाइयों ने अलग-अलग शहरों में अपनी-अपनी नौकरियां शुरू कर दीं। इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह अपने पिता की खेती-बाड़ी करने लगे लेकिन उन्हें जाना तो कहीं और था, वक्त की प्रतीक्षा करना ही एक विकल्प रह गया था उनके पास।
जब वह वक्ता काटने के अंदाज में खेती-किसानी करते तो यह हाव-भाव पिता को समझते देर न लगी। वह भी चाहते थे कि मुझे यदि आगे निकलना है तो अभी और ज्यादा अपनी पढ़ाई-लिखाई करनी होगी। दिक्कत ये थी कि वह अपनी इच्छा पिता के सामने व्यक्त करने में हिचकिचाते थे। जब खेती-किसानी में वक्त बिताते कुछ महीने कट गए, एक दिन वह पिता की निगाहों में पकड़े गए यानी पिता ने जान लिया कि चंद्रशेखर के मन में कुछ चल रहा है, जिसे वह साझा करने में हिचकिचा रहा है। फिर क्या था, पिता ने उनसे पूछ ही लिया कि आखिर तुम चाहते क्या हो?
बेटे में इतनी हिम्मत कहां कि वह पिता से कोई बात छिपा ले जाए। चंद्रशेखरन के मुंह से निकल गया कि वह अभी और पढ़ाई करना चाहते हैं। पिता ने बात मान ली और वह आगे के जीवन की राहों पर निकल पड़े। चंद्रशेखर के लोग उनको चंद्रा भी कहते हैं। चंद्रा विशुद्ध रूप से प्रोफेशनल हैं। उनकी टाटा समूह में कोई हिस्सेदारी नहीं है। वह बिना किसी हिस्सेदारी के समूह के चेयरमैन बनने वाले पहले व्यक्ति हैं। इतना ही नहीं सात लाख करोड़ रुपये से अधिक के कारोबारी समूह के चेयरमैन बनने वाले वह पहले गैर पारसी व्यक्ति हैं। उन्होंने टीसीएस को उस वक्त शीर्ष पर पहुंचाया, जब टाटा समूह की मुख्य कंपनियां टाटा स्टील और टाटा मोटर्स कुछ खास नहीं कर पा रही थीं।
लगता है कि चंद्रा की इसी प्रतिबद्धता ने उन्हें समूह के शीर्ष पर पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। इस समय रोजगार देने के मामले में टीसीएस निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी है। टीसीएस में 3.78 लाख लोग काम कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में वर्ष 2015 में टीसीएस को सूचना प्रौद्योगिकी सेवा में दुनिया का सबसे बड़ा ब्रांड घोषित किया गया था। इतना ही नहीं वह भारत-अमेरिका और भारत-ब्रिटेन सीईओ फोरम में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वह कई देशों के साथ देश के कारोबारी टास्कफोर्स के सदस्य भी हैं।
एक वक्त वह था, जब नटराजन चंद्रशेखरन टीसीएस में एक गुमनाम कर्मचारी की तरह वक्त बिताया करते थे। मूलतः तमिलनाडु में नम्क्कल के पास मोहनुर गांव के कृषक श्रीनिवासन नटराजन के पुत्र नटराजन चंद्रशेखरन अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद तकनीकी पढ़ाई-लिखाई के लिए कोयंबटूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिल हो गए। वहां से एम्प्लाइड साइंस में स्नातक शिक्षा लेने के बाद तिरुचिरापल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में उन्हे मास्टर डिग्री मिली।
सन 1987 में वह टीसीएस में एक सॉफ्ट वेयर इंजीनियर के रूप में जुड़े और वर्ष 2002 आते-आते वह टीसीएस के ग्लोबल सेल्स हेड बन चुके थे। इस दौरान उन्होंने कंपनी के तौर-तरीकों में एक तकनीकी बदलाव किए। प्रतिफल ये हुआ कि टीसीएस देश की आईटी कंपनियों की सिरमौर बन गई। आज उनकी पहचान देश के शीर्ष सफल उद्यमियों में है। आज टीसीएस 100 अरब डॉलर की मार्केट वैल्यू हासिल करने वाली देश की पहली कंपनी बन गई है। इसी के साथ यह साबित हो चुका है कि सही रणनीति और बेहतर परफॉर्मेंस व्यक्ति को किसी भी शिखर तक पहुंचा सकता है। एक तरह से यह कामयाबी अभ चंद्रशेखरन के अतीत का हिस्सा बन चुकी है, जब वह टीसीएस के चेयरमैन रहे थे।
अब तो वह टाटा सन्स के चेयरमैन हैं। सजग, सुयोग्य और तकनीकी ज्ञान से लैस चंद्रशेखरन की विशेषता रही है कि वह जिस कामयाबी को छूने का प्रण ले बैठते हैं, उसकी दुनिया उनकी मुट्ठी में आ ही जाती है। उनकी कामयाबी के सफर से जुड़ा एक वाकया बताया जाता है। टीसीएस के पूर्व वाइस चेयरमैन एस रामादोराई ने सन् 1993 में 'चंद्रा' (नटराजन चंद्रशेखरन) की प्रतिभा की सबसे पहले पहचान की। इसके बाद वर्ष 1996 में उन्होंने चंद्रशेखरन को अपना एग्जिक्यूटिव असिस्टेंट बना लिया। उस दौरान रामादोराई को चंद्रशेखरन के सम्बंध में बेहतर फीडबैक मिला था। तब उन्हें पता चला था कि चंद्रशेखरन में तो वर्ल्ड क्लास टीम और वैल्यू सिस्टम बनाने की काबिलियत है।
उसके बाद टीसीएस में ये मजाक फैलता रहा कि टीसीएस का मतलब है, 'टेक चंद्रा सीरियसली'। वर्ष 1999 में चंद्रशेखरन ने ई-बिजनेस यूनिट शुरू की और उसे पांच साल के भीतर ही पचास करोड़ डॉलर तक पहुंचा दिया। इसके बाद 2002 में उन्हें जीई से 10 करोड़ डॉलर की डील की कामयाबी मिली। किसी भारतीय कंपनी को मिली ये पहली सबसे बड़ी डील थी। जब 2009 में रामादोराई पदमुक्त हुए, चंद्रशेखरन टीसीएस के सीईओ नियुक्त कर दिए गए। उनके नेतृत्व में कंपनी का रेवेन्यू 6.3 अरब डॉलर से बढ़कर 16.5 अरब डॉलर हो गया। नटराजन चंद्रशेखरन की जिंदगी की कामयाबियों का सिलसिला अभी यहीं पर नहीं थम गया।
टीसीएस के फॉर्मर सीएसएफओ एस महालिंगम बताते हैं कि चंद्रशेखरन की नेतृत्व क्षमता को शुरू से ही कंपनी में तभी पहचान लिया गया था, जब वह सन् अस्सी के दशक में कंपनी से जुड़े थे। वही नहीं, उस दौरान और भी कई ऐसे सहकर्मी टीसीएस जुड़े थे, जिनमें नेतृत्व क्षमता थी लेकिन चंद्रशेखरन सबको पीछे छोड़ते हुए आखिरकार फरवरी, 2018 में पूरे टाटा समूह के मालिकाना शीर्ष पर पहुंच गए। इतनी बड़ी कामयाबी भारत में शायद ही किसी किसान के बेटे को मिली हो! वर्ष 1963 में तमिलनाडु में जन्मे चंद्रा पत्नी ललिता और बेटे प्रणव के साथ अब मुंबई में रहते हैं।
यह भी पढ़ें: उदयपुर से शुरू हुए इस स्टार्टअप ने सिर्फ़ 3 सालों में 150 देशों तक फैलाया अपना बिज़नेस