बुकर विजेता 'मिल्कमैन' है एक युवती की दर्दभरी दास्तान
आयरिश लेखिका एना बर्न्स को इस साल का बुकर पुरस्कार उनके उपन्यास 'मिल्कमैन' को दिया गया है। पुरस्कार चयन समिति के चेयरमैन क्वामे एंथनी एपिया बताते हैं कि इस उपन्यास की हैरानी भरी कहानी इसमें डूब जाने को विवश करती है।
लगातार चौथे साल ऐसा हुआ है कि किसी स्वतंत्र प्रकाशक ने मैन बुकर पुरस्कार जीता है। लंदन के गिल्डहॉल में एक रात्रिभोज में क्वामे एंथनी एपिया ने एना बर्न्स की जीत का ऐलान किया। डचेज ऑफ कॉर्नवॉल कैमिला ने एना को एक ट्रॉफी जबकि मैन ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ल्यूक हिल्स ने उन्हें 50,000 पाउंड की राशि भेंट की।
आयरलैंड की लेखिका एना बर्न्स को उनके उपन्यास 'मिल्कमैन' के लिए प्रतिष्ठित मैन बुकर अवॉर्ड-2018 से सम्मानित किया गया है। इस उपन्यास में उत्तरी आयरलैंड में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक युवती की एक शादीशुदा व्यक्ति से प्रेमालाप की आपबीती लिखी गई है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। यह उपन्यास उस युवती की दर्दभरी दास्तान के एक मोकम्मल दस्तावेज जैसी है, जो ताकतवर प्रेमी के हाथों शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित होती रहती है। पुरस्कार विजेता तय करने वालों में से एक अध्यक्ष क्वामे एंथनी एपिया बताते हैं कि उनमे से किसी ने भी इससे पहले ऐसी पुस्तक नहीं पढ़ी थी। एना बर्न्स की बिल्कुल ही अलग आवाज परंपरागत सोच को चुनौती देती है। इसकी हैरानी भरी कहानी इसमें डूब जाने के लिए विवश करती है। इस उपन्यास की कहानी निष्ठुरता, यौन अतिक्रमण के प्रतिरोध की व्यथा-कथा है, जिसे सम्मानित लेखिका एना बर्न्स ने व्यंग्य मिश्रित हास्य से बुना है। इसे अपने ही खिलाफ बंटे समाज की पृष्ठभूमि में रचा गया है। बर्न्स ने अपनी इस किताब में प्रेमिका के दर्द का बखूबी अहसास कराया है।
एना बर्न्स कहती हैं, एक अनाम शहर की पृष्ठभूमि में लिखे ‘मिल्कमैन’ में उन्होंने बताने की कोशिश की है कि युद्ध से जूझ रहे शहर में किसी महिला पर कितना खतरनाक और जटिल प्रभाव पड़ता है। इस किताब की खास बात है कि इसमें पात्रों के नाम की बजाय पदनाम (डेजिग्नेशन) दिए गए हैं। एना बताती है कि उनके उपन्यास में नाम नहीं हैं। शुरुआती दिनों में उन्होंने कुछ समय तक नामों को लेकर कोशिश की, लेकिन उपन्यास में यह ठीक नहीं लगा। ऐसा करने पर कहानी भारी-भरकम और बेजान हो जाती। यह उपन्यास केवल नामों को ही नहीं बताता है। यह ताकत और वातावरण से निकलकर एक अलग ही दुनिया से रूबरू कराता है। यह उपन्यास 1970 के समय काल में उत्तरी आयरलैंड में रहने वाली एक 18 वर्षीय लड़की के इर्द-गिर्द घूमता है जिसमें लड़की एक रहस्यमयी और उम्र में उससे कहीं बड़े एक व्यक्ति से संबंध बनाने के लिए मजबूर होती है।
एना एक आइरिश लेखिका हैं। वह 1987 से लंदन में रह रही हैं। उनकी पहली किताब 'नो बोंस' थी। उनके बाकी उपन्यासों में 'लिटिल कंस्ट्रक्शंस' और 'मोस्टली हीरोज' हैं। पाठकों के बीच वह अपनी अद्भुत लेखन शैली के लिए जानी जाती हैं। यह पुरस्कार जीतने वाली वह पहली उत्तरी आइरिश लेखिका हैं। बेलफास्ट में जन्मीं और ईस्ट ससेक्स में रहने वाली 56 साल की बर्न्स इससे पहले दो किताबें लिख चुकी हैं- नो बोंस और लिटिल कंसट्रक्शंस। वर्ष 2011 में वह विनिफ्रेड होल्टी मेमोरियल प्राइज जीत चुकी हैं। वह 2002 में ऑरेंज प्राइज में फिक्शन के लिए शॉर्टलिस्टेड भी हो चुकी हैं। एना ने डेजी जॉनसन (27) की किताब ‘एवरीथिंग अंडर’, रॉबिन रॉबर्टसन की ‘दि लॉंग टेक’, एसी एडुग्यन की ‘वॉशिंगटन ब्लैक’, रैशेल कुशनर की ‘दि मार्स रूम’ और रिचर्ड पॉवर्स की ‘दि ओवरस्टोरी’ को पीछे छोड़कर ‘मिल्कमैन’ के लिए पुरस्कार जीता। फेबर एंड फेबर पब्लिसिंग ने ‘मिल्कमैन’ का प्रकाशन किया है।
लगातार चौथे साल ऐसा हुआ है कि किसी स्वतंत्र प्रकाशक ने मैन बुकर पुरस्कार जीता है। लंदन के गिल्डहॉल में एक रात्रिभोज में क्वामे एंथनी एपिया ने एना बर्न्स की जीत का ऐलान किया। डचेज ऑफ कॉर्नवॉल कैमिला ने एना को एक ट्रॉफी जबकि मैन ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ल्यूक हिल्स ने उन्हें 50,000 पाउंड की राशि भेंट की। एना को अपनी किताब का डिजाइनर बाउंड संस्करण और शॉर्टलिस्ट होने के लिए 2,500 पाउंड की अतिरिक्त धनराशि भी देय रही।
वर्ष 1969 से दिया जाने वाला दुनिया का श्रेष्ठ 'बुकर पुरस्कार' साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कारों के बाद सबसे बड़ा लेखकीय सम्मान माना जाता है। यह पुरस्कार बुकर कंपनी एवं ब्रिटिश प्रकाशक संघ द्वारा संयुक्त रूप से हर साल दिया जाता है। यह पुरस्कार किसी एक कथाकृति के लिये राष्ट्रमंडल देशों के कथाकारों को केवल अंग्रेजी उपन्यासों के लिए दिया जाता है। पहला मान बुकर पुरस्कार अल्बानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था। यह पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय मान बुकर पुरस्कार से अलग है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मान बुकर पुरस्कार हर दो साल में विश्व के किसी भी उपन्यासकार को दिया जाता है जबकि मानबुकर पुरस्कार हर साल केबल राष्ट्रमंडल देशों के कथाकारों को मिलता है। अब तक अरुंधती राय के अलावा किरण देसाई (2006), अरबिंद अडिगा (2008) के अलावा भारतीय मूल के बी एस नायपाल (1971) और सलमान रश्दी (1981) को भी यह पुरस्कार मिल चुका है।
गौरतलब है कि अपने पहले उपन्यास 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' के लिए 22 साल पहले प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार 'मैन बुकर' पाने वाली लेखिका अरुंधति रॉय पिछले साल अपने दूसरे उपन्यास 'मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस' के लिए भी इस पुरस्कार की सूची में सबसे आगे रहीं। इस साल मैन बुकर पुरस्कार के लिए चयनित सूची में पुलित्जर, कोस्टा, बेलीज, फोलियो और इम्पैक जैसे बेहद प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार शामिल रहे, लेकिन अरुंधति एकमात्र ऐसी साहित्यकार रहीं, जो पहले भी यह पुरस्कार पा चुकी हैं। पिछले वर्ष अमेरिकी लेखक पॉल बीटी को उनकी पुस्तक 'द सेलआउट' के लिए बुकर पुरस्कार प्रदान किया गया था। पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद से बीटी के उपन्यास की तीन लाख साठ हजार से अधिक प्रतियां कुछ ही दिनो में बिक गईं।
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