ये 5 महिलाएं सोशल मीडिया के जरिए कर रही हैं सुरक्षित समाज का निर्माण
मेंटल हेल्थ अवेयरनेस, मीटू जैसे अभियान और भी न जाने कितनी चीजों के लिए सोशल मीडिया परिवर्तन का वाहक बना। योरस्टोरी ने ऐसी पांच महिलाओं तक पहुंचने और उनसे बात करने की कोशिश की, जो सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने का काम कर रही हैं।
अक्सर सोशल मीडिया पर जब बॉडी पॉजिटिविटी की बात होती है तो एक खास आकार वाली महिला की छवि पेश की जाती है जिसका शरीर सुडौल होता है। हम किसी ऐसी महिला की बात क्यों नहीं करते जिसका शरीर एक खास ढांचे के मुताबिक नहीं होता।
दुनिया के डिजिटल हो जाने के बाद लोगों की जिंदगी सोशल मीडिया वायरल वीडियो, मीम, पोस्ट और फोटोज पर लाइक्स और शेयर करते बीत रही है। सोशल मीडिया लोगों का मनोरंजन करने के साथ-साथ सकारात्मक कार्यों के लिए भी एक मजबूत हथियार के रूप में उभर कर सामने आया है। मेंटल हेल्थ अवेयरनेस, मीटू जैसे अभियान और भी न जाने कितनी चीजों के लिए सोशल मीडिया परिवर्तन का वाहक बना। योरस्टोरी ने ऐसी पांच महिलाओं तक पहुंचने और उनसे बात करने की कोशिश की, जो सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने का काम कर रही हैं।
अर्जमा बख्शी
मैंने हाल ही में यूथ लीडर्स ऐक्टिव सिटिजनशिप द्वारा इंस्टाग्राम के साथ आयोजित एक फेलोशिप में हिस्सा लिया। इससे मुझे कला के माध्यम से जागरूकता और सकारात्मकता फैलाने का तरीका सीखने को मिला। मैंने धीमी शुरुआत की थी और धीरे-धीरे मुझे मानसिक स्वास्थअ, बॉडी पॉजिटिविटी और समानता के बारे में जानने को मिला। आखिर में मुझे लगा कि सबका संघर्ष अलग होता है फिर भी वे बदलाव कर सकते हैं, फिर मैं क्यों नहीं कर सकती?
फेलोशिप के समाप्त होने के बाद भी मैंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट @shareerspeak का प्रयोग करना जारी रखा। मैंने जीवन भर अपने शरीर को लेकर शर्मिंदा महसूस किया था, लेकिन अब मैं इस समस्या से ग्रस्त दूसरे लोगों की मदद करना चाह रही थी। मैं ऐक्टिविस्ट बन गई क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि कोई भी अपने संघर्ष में अकेला महसूस करे। आर्टवर्क और सहयोग के जरिए मैंने बॉडी पॉजिटिविटी के संदेश को फैलानी की कोशिश की है। मैं लोगों को बताती हूं कि वे सुंदर हैं। मैं चाहती हूं कि लोग अपनी कमियों को गले लगाएं और जैसे हैं वैसे ही खुद को स्वीकार भी करें।
काव्या शंकर
मुझे लगता है कि मैं शर्मिंदा होने के लिए ही बनी थी। समाज मुझसे लड़कियों की तरह व्यवहार करने की अपेक्षा करता था, लेकिन वक्त बीतने के साथ ही मुझे ऐसा लगा कि मैं ऐसा करके अपने आप को चोट पहुंचा रही थी, इसके बाद मैंने उन सारी चीजों को भूलना शुरू किया जिस पर मुझे जबरन विश्वास कराया जा रहा था।
हालांकि जब मैंने फिटनेस इंडस्ट्री में अपना करियर शुरू किया तो किसी ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए मैंने अपनी बात कहने और लोगों से इस पर चर्चा के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। मुझे लगा कि लोग शायद मुझे वहां सपोर्ट करेंगे, लेकिन मेरे घरवाले और दोस्तों ने मेरी आलोचना की।
इस मानसिक आघात से उबरने के लिए मैंने खुद की कंपनी खोलने का फैसला किया। अब मैं बॉडी पॉजिटिविटी के संदेश पर काम कर रही हूं। मैं उन लोगों की सराहना करती हूं जो मेरे साथ खड़े रहे और मुझे एक बदलाव के वाहक के तौर पर देखना चाहते हैं। मैं अपने अनुभवों को इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे माध्यमों पर साझा करती हूं और वहां अपने आपको सुरक्षित महसूस करती हूं। इतना ही नहीं अगर किसी को लगता है कि उसकी कहानी मेरे जैसे ही है और उसको मदद की जरूरत होती है तो मैं उसकी मदद भी करती हूं।
नीलाक्षी सिंह
अक्सर सोशल मीडिया पर जब बॉडी पॉजिटिविटी की बात होती है तो एक खास आकार वाली महिला की छवि पेश की जाती है जिसका शरीर सुडौल होता है। हम किसी ऐसी महिला की बात क्यों नहीं करते जिसका शरीर एक खास ढांचे के मुताबिक नहीं होता। मैं चाहती हूं कि ऐसी महिलाओं को भी सामने लाया जाए जिनके शरीर की आकृति इससे अलग भी हो। जैसे जिनका पेट निकला हुआ हो, जो मोटी हों और जो उस कर्वी फ्रेम से बाहर आती हों। मैं स्वास्थ्य संबंधी कुछ चीजों के चलते पिछले 11 सालों से ओवरवेट हूं। इन सालों में मैंने अपनी मां से सीखा कि कैसे नए-नए कपड़ों को पूरे संवेदनशीलता से पहना जाए।
फैशन के बारे में पढ़ने से मुझे समझ आया है कि कौन सी बॉडी पर कैसे कपड़े अच्छे लगते हैं और मुझे लगता है कि शरीर का साइज, शेप, रंग कुछ भी हो, लोग सुंदर दिख सकते हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि भारत में इस मुद्दे को लेकर कभी आवाज उठेगी, लेकिन सोशल मीडिया ने आवाज उठाने का सही मौका दिया। मैंने ब्लॉगिंग के जरिए महिलाओं को जोड़ने का फैसला किया था और मुझे काफी सकारात्मक रिस्पॉन्स मिला। मैं हर उस सोच को बदलना चाहती हूं जो खूबसूरती को किसी खास सांचे में जोड़कर देखती है। मैं उस दिन की कल्पना करती हूं जब किसी के शरीर के आकार, रंग रूप के बगैर उसे खूबसूरत कहा जाएगा।
लेयरे गराटी
सोशल मीडिया एक दिलचस्प और प्रभावी माध्यम है जिसके जरिए हम खुद को संसाधनों से युक्त और सक्षम पाते हैं। लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारी एक वास्तविक दुनिया भी है जहां हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना है। महिलाओं के लिए ये जरूरी है कि वे एकजुट हों, सपोर्ट नेटवर्क बनाएं और ए दूसरे की मदद करें। हम तब सशक्त हो पाएंगे जब हम ऑनलाइन एकजुट रहेंगे और असल जिंदगी में भी एक दूसरे के लिए खड़े रहेंगे। इससे हम और अधिक सशक्त हो पाएंगे।
मेरी त्वचा का रंग उजला है और मैं बेंगलुरु में रहती हूं। लेकिन मैं नहीं मानती कि मैं किसी के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही हूं। मैं जितना हो सकता है उतना इस मुद्दे पर लोगों के साथ खड़े रहना चाहती हूं। मैं अपनी सोशल मीडिया पोस्ट्स को निजी रखती हूं। मैं अपने मेंटल हेल्थ और संघर्ष के बारे में लिखती हूं। मैं जितना हो सके सच्ची रहना चाहती हूं इसलिए मैं अपने बारे में लिखकर अपने जानने वालों से साझा करती हूं। मेरा मानना है कि चाहे ऑनलाइन हो या ऑफलाइन हम सबके लिए हमारे अधिकार महत्वपूर्ण हैं। यह हमारा अधिकार है कि हम अपनी आवाज उठाएं और एक सुरक्षित समाज का निर्माण करें।
विजया अश्वनी
एक कलाकार होने के नाते सोशल मीडिया मेरे लिए अपना पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए और काम खोजने के लिए पहला माध्यम है। मैंने जब सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज की थी तो मेरा मकसद भी यहबी था। लेकिन वक्त बीतने के साथ ही मुझे यह अहसास हुआ कि यहां काफी कुछ किया जा सकता है। यहां अपनी कहानियां साझा की जा सकती हैं और एक दूसरे से काफी कुछ सीखा जा सकता है।
एक फ्रीलांसर होने के नाते मुझे नेटवर्क बनाने और मेरे काम को समझने वाले लोगों को खोजने में मुझे वक्त लगा। मुझे पुरुष क्लाइंट्स से मिलने में डर लगता था, लेकिन सोशल मीडिया ने मुझे वह ताकत दी। #MeToo अभियान से निकली कहानियों के बारे में सुनकर दिल दुखता है, लेकिन मुझे खुशी है कि महिलाएं, लड़कियां सामने आ रही हैं और अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। इससे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक तरह से सुरक्षित समाज का निर्माण हो रहा है। मुझे उम्मीद है कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमें इन सब चीजों के लिए लड़ने की जरूरत नहीं रहेगी। सोशल मीडिया में तमाम तरह की खामियां हैं, लेकिन फिर भी यह मजबूत हथियार है।
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