15 साल के बच्चे ने बनाया भारत का अपना सोशल सर्च इंजन, गूगल से आगे निकलने का सपना
15 साल के व्हिजकिड (whizkid) अभिक साहा ने एक अनोखा सर्च इंजन तैयार किया है, जिसका नाम है 'ऑरिगन'। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो यूजर्स को उनके सवालों के जवाब ढूंढ़ने में मदद करने के साथ-साथ उन्हें स्पैम और असंगत जवाबों से भी बचाता है।
13वें साल में अभिक के पिता आलोक साहा ने उन्हें पहला स्मार्टफोन दिलाया, जो इस नन्हे टेक्नीशियन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
पहली बार जब अभिक अपने क्लियर 7 नाम के ऐन्टीवायरस को स्कूल लैब में टेस्ट कर रहे थे तो 19 कंप्यूटर एक साथ क्रैश हो गए। लेकिन स्कूल स्टाफ और साथियों के कई बार मजाक उड़ाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी।
जब भी हमें किसी सवाल का ऑनलाइन जवाब चाहिए होता है तो जवाब 'गूगल' के पास होता है। बुनियादी सामान्य ज्ञान से लेकर किसी विषय पर विस्तृत जानकारी के लिए हम शायद ही किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर इतना भरोसा करते हैं। यही वजह है कि 'गूगलिंग' हमारी रोज की शब्दावली का हिस्सा बन चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का अपना भी एक सर्च इंजन है, जिसने यूजर्स को उनके सवालों के अनुकूल जवाबों के लिए एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया है। 15 साल के व्हिजकिड (whizkid) अभिक साहा ने एक ऐसा ही अनोखा सर्च इंजन तैयार किया है, जिसका नाम है 'ऑरिगन' है। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो यूजर्स को उनके सवालों के जवाब ढूंढ़ने में मदद करने के साथ-साथ उन्हें स्पैम और असंगत जवाबों से भी बचाता है।
ऑरिगन, दुनिया के पहले सोशल सर्च इंजन के रूप में खड़ा हुआ है, जो सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन यानी एसईओ के विशुद्ध स्वरूप को शामिल करने के बजाए दुनिया भर के लोगों द्वारा सुझाए गए शीर्ष परिणामों को प्रदर्शित करता है। इस सर्च इंजन से जुड़ी बड़ी बात यह है कि इसे घर पर ही बनाया गया है, लेकिन एक बात आपको चौंका देगी कि यह वेबसाइट एक 15 साल के छात्र द्वारा विकसित की गई है, जिसने हाल ही में कक्षा 10वीं की बोर्ड की परीक्षा पास की है।
पश्चिम बंगाल के चालसा में रहने वाले 15 वर्षीय अभिक साहा ने इस वेबसाइट को इतने बेहतर ढंग से तैयार किया है, मानो यह उनके बाएं हाथ का खेल हो। वैसे अभिक के खाते में सिर्फ ऑरिगन ही नहीं है बल्कि आठ मोबाइल ऐप्स का श्रेय भी है, जो वेबसाइट के निर्माण से लेकर कंप्यूटर प्रोग्रामिंग और लैंग्वेज के लिए निशुल्क प्रशिक्षण सेवाएं प्रदान करती हैं।
अभिक पहली बार 11 साल की उम्र में स्कूल की कक्षा में वेब डिज़ाइनिंग के सिद्धांतों की पढ़ाई के बाद इस ओर आकर्षित हुए थे। हालांकि, शुरूआत अभिक के लिए मुश्किल रही। इस विषय से उनका शुरूआती लगाव होने के बाद भी उस साल कक्षा में अभिक साहा ही ऐसे छात्र थे, जो कंप्यूटर साइंस के यूनिट टेस्ट में फेल हो गए थे। इस तरह रुचि होने के बाद भी अभिक शुरूआत में अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहे। लेकिन यहां से उन्होंने एक नए सफर की शुरूआत की, जिसमें उन्होंने हर मोड़ पर समस्याओं का समाधान खुद निकालने के साथ ही कंप्यूटर और वेब डिजाइनिंग से संबंधित सभी चीजें सीखने कोई कसर नहीं छोड़ी।
अभिक की इस यात्रा की दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने साइबर वर्ल्ड के एक महत्वपूर्ण पहलू से खुद को दूर रखना ही पसंद किया और वह था प्रोग्रामिंग। C++ जैसी कंप्यूटर भाषाएं उन्हें पसंद नहीं थीं, लेकिन एक सॉफ्टवेयर डिवेलपर से मुलाकात के बाद उनकी सोच बदली। तब उन्होंने इसके महत्व और असाधारण क्षमता के बारे में जाना और दो अंक (0 एवं 1) यानी बायनरी कोडिंग की दुनिया को समझा।
शुरूआत में लॉजिकल रीजनिंग के साथ संघर्ष होने के बाद भी युवा मन में प्रोग्रामिंग, दृढ़ संकल्प और सीखने की इच्छाशक्ति ने अभिक को आगे बढ़ाया। अभिक बताते हैं कि साल 2014-15 के बीच आए अप्रत्याशित परिवर्तनों ने उनके सोचने का तरीका बदल दिया, जिससे उनकी प्रोग्रामिंग क्षमताओं और उनके विकसित करने के तरीकों में नए प्रयोग करने की क्षमता पैदा हुई और यही वह कारण है, जिसकी वजह से वह आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं।
13 साल की उम्र तक आते-आते अभिक साहा ने इंटरनेट पर उपलब्ध ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स की मदद से सामान्य सॉफ्टेवयर्स जैसे कि ऐन्टीवायरस, फायरवॉल सिस्टम और वेबसाइट ब्लॉकिंग सिस्टम आदि को तैयार करना सीख लिया था। पहली बार जब अभिक अपने क्लियर 7 नाम के ऐन्टीवायरस को स्कूल लैब में टेस्ट कर रहे थे तो 19 कंप्यूटर एक साथ क्रैश हो गए। लेकिन स्कूल स्टाफ और साथियों के कई बार मजाक उड़ाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और चौथी बार में अपने ऐन्टीवायरस का सफल परीक्षण किया।
13वें साल में अभिक के पिता आलोक साहा ने उन्हें पहला स्मार्टफोन दिलाया, जो इस नन्हे टेक्नीशियन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। ऐंड्रॉयड प्लेटफॉर्म से जान पहचान होने के बाद अभिक अलग-अलग मोबाइल ऐप्स बनाते चले गए और एक अपंजीकृत आईटी कम्पनी के साथ काम करते हुए विभिन्न सॉफ्टवेयर और वेबसाइट बनाने के समाधानों को उपलब्ध कराने के लिए मेहनत करते रहे।
सर्च इंजन 'ऑरिगन' बनाने का ख्याल उस वक्त आया, जब अभिक अपनी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज, लिनो को विकसित करने के लिए प्रयास कर रहे थे। लिनो को तैयार करने के लिए अभिक अपने सवालों के जवाब इंटरनेट पर ही ढूंढ़ रहे थे, लेकिन इस दौरान उन्हें असंगत जवाबों के साथ ही कई स्पैम का सामना करना पड़ रहा था। तब उन्हें महसूस हुआ कि एक ऐसा सर्च इंजन होना चाहिए जो कि यूजर्स को इन समस्याओं से निजात दिला सके।
अभिक ने बताया कि उनका लक्ष्य एक ऐसा सर्च बनाने का था, जो स्पैम और बेमतलब की सामग्री को कम करे या निकाल दे। साथ ही, छोटी वेबसाइट्स से अच्छी सामग्री खोजे। इनकॉर्पोरेटिंग ह्यूमन रैंकिंग सिग्नल्स की सहायता से अभिक ने समझा कि हमारी सोशल नेटवर्किंग साइट्स कैसे काम करती हैं और इस दिशा में काम करते हुए ही 'ऑरिगन' का निर्माण हुआ।
शुरूआत में ऑरिगन C# में विकसित किया गया। यह पिछले साल पहली बार लाइव हुआ। अपनी कमियों से सीखने और अन्य डिवेलपर्स से सलाह लेने के बाद, वेबसाइट को बड़े बदलाव के साथ फिर से बनाया गया। उस दौरान अभिक ने सोशल मीडिया के जरिए उनके कॉन्सेप्ट मॉडल पर निवेश की मांग की। फरवरी में एक निवेशक ने अभिक के कॉन्सेप्ट में रुचि दिखाई। इसके बाद अभिक ने बोर्ड परीक्षाएं पास कीं और मुंबई चले गए, जहां 15 अगस्त को उन्होंने ऑरिगन को लॉन्च किया। अभिक के कॉन्सेप्ट में हर्षित जैन ने निवेश किया और फिलहाल वह वेबसाइट के फाइनैंशल और मार्केटिंग हेड हैं। वह वेबसाइट के लिए वेब डिवेलपर भी काम कर रहे हैं।
अभिक की मां जरूरतमंदों बच्चों को पढ़ाती थीं और उनके लिए वह सबसे बड़ी प्रेरणास्त्रोत थीं। मां के काम को देखकर ही अभिक को समाज के प्रति अपने दायित्वों का अहसास हुआ। हर्षित जैन बताते हैं कि हर बार जब वेबसाइट को 5000 हिट्स मिलते हैं, वे एनजीओ को 10 किलो गेंहू दान करते हैं। हर्षित मानते हैं कि इस तरह छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन वे समाज के प्रति कुछ सकारात्मक तो कर रहे हैं। अभिषेक कहते हैं कि वह गूगल जितनी लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं। वह ऑरिगन को देश का सबसे उम्दा और लोकप्रिय सर्च इंजन बनाना चाहते हैं। उनको उम्मीद है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब उनकी वेबसाइट्स को एक दिन में 10 मिलियन हिट्स मिलेंगे।
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