हर जोर-जुल्म के टक्कर में IAS अॉफिसर बी.चंद्रकला
अनाथ बच्चों की "डियर मम्मी" हैं ये IAS अॉफिसर
ईमानदार महिला आईएएस बी चंद्रकला अपने कुछ ही वर्षों के प्रशासनिक सफर में किंवदंति सी बन चुकी हैं। सोशल मीडिया पर उनकी लोकप्रियता इस कदर है, कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी पीछे छूट चुके हैं। आईये एक नज़र डालें इस दबंग, दुस्साहसी महिला अॉफिसर के जीवन पर...
हमारे समाज में एक कामयाब स्त्री को लेकर जितनी तरह की दुश्वारियां जूझनी पड़ती हैं, बी चंद्रकला उनसे कत्तई न तो नावाकिफ हैं, न उनसे निपटने में रत्ती भर कमतर। यद्यपि मेरठ जिलाधिकारी के पद से प्रतिनियुक्ति पर वह देश की राजधानी दिल्ली जा चुकी हैं और केंद्र सरकार में उपसचिव पेयजल का ओहदा संभाल रही हैं।
अपनी दबंग छवि, दुस्साहस की हद तक भ्रष्टाचार की मुखालफत करने वाली आईएएस बी चंद्रकला अपने कुछ ही वर्षों के प्रशासनिक सफर में किंवदंति सी बन चुकी हैं। उनकी लोकप्रियता का एक सच यह भी है कि वह सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पीछे छोड़ चुकी हैं। उनके कठिन जीवन संघर्षों का कथानक जितना जटिल रहा है, सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौरान और उसके बाद की यात्रा उससे कुछ कम मुश्किलों भरी नहीं रही है।
हमारे समाज में एक कामयाब स्त्री को लेकर जितनी तरह की दुश्वारियां जूझनी पड़ती हैं, बी चंद्रकला उनसे कत्तई न तो नावाकिफ हैं, न उनसे निपटने में रत्ती भर कमतर। यद्यपि मेरठ जिलाधिकारी के पद से प्रतिनियुक्ति पर वह देश की राजधानी दिल्ली जा चुकी हैं और केंद्र सरकार में उपसचिव पेयजल का ओहदा संभाल रही हैं लेकिन इससे पूर्व यूपी के चार जिलों हमीरपुर, मथुरा, बुलंदशहर और मेरठ में प्रथम प्रशासक के रूप में जिस तरह भ्रष्टाचारी बड़े-बड़ों को धूल चटा चुकी हैं, आम लोगों की जहन से आज भी उनकी 'लेडी सिंघम' की छवि मिटी नहीं है। उनकी प्रतिनियुक्ति पर भी जितने मुंह, उतनी बातें तैरती रहती हैं, कोई कहता है कि उनकी कार्यप्रणाली से आजिज दबंगों के दुष्प्रयास ने उन्हें दिल्ली जाने के लिए विवश किया तो एक सच यह भी लोगों को विश्वास दिलाता है कि केंद्रीय शासन में जुझारू अफसर की जरूरत के चलते प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर उन्हें प्रतिनियुक्ति पर यूपी से दिल्ली भेजा गया है।
तेलंगाना के करीमनगर जिले के गांव गरजाना पल्ली में अनुसूचित जनजाति परिवार में जन्मीं बी चंद्रकाल छात्र जीवन से ही संघर्षशील और अत्यंत मेधावी रही हैं। घर-परिवार की विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने केंद्रीय विद्यालय से बारहवीं की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद बीए करने के लिए कोटि वीमेंस कॉलेज में दाखिला लिया। अभी सेकंड इयर चल ही रहा था कि परिवार वालों ने डिप्टी एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर रामुलू से उनकी शादी रचा दी। चंद्रकला की नजर तो अपने मजबूत भविष्य पर टिकी थी, सो उन्होंने पढ़ाई नहीं रोकी। ग्रेजुएशन के लिए हैदराबाद के कोटि वुमन्स कॉलेज में एडमिशन लिया था।
इस सपने में उनके पति का भी लगातार पूरा सहयोग मिलता गया। उन्होंने पत्राचार के माध्यम से अर्थशास्त्र में एमए उत्तीर्ण किया और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गईं। उन दिनो वह संतानवती हो चुकी थीं। उनके परिवार में पति और बच्ची के अलावा दो भाई और एक बहन भी है। बिटिया की देखभाल का जिम्मा पति रामुलू पर छोड़ वह जीवन-संघर्ष में जुटी रहीं और आखिरकार जीवट रंग लाया, आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उन्हें पहला स्थान मिला। इतने पर भी चैन कहां, बी चंद्रकला भला इतने से ही कहां निश्चिंत थमने वाली थीं! मन में सपना तो आईएएस बनने का ठाने हुई थीं, जुटी रहीं किताबी मशक्कत में और अंततः एक दिन वह भी आ गया, जब अपनी चौथी बार की कोशिश में वह सिविल सेवा परीक्षा के 409वें अंक के साथ 2008 बैच की यूपी कैडर की आईएएस चुन ली गईं।
अप्रैल 2012 में उनको उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में हमीरपुर जिले का डीएम तैनात कर दिया गया। यहां शुरू हुआ उनका वह जिंदगीनामा, जो उनके काम-काज के तौर-तरीकों से उत्तरोत्तर नजीर बनता चला गया। वर्ष 2014 में उन्हें जिलाधिकारी के रूप में मथुरा भेज दिया गया। वहां महज 129 दिन रहीं और तबादला हो गया बुलंदशहर। हमीरपुर और मथुरा की तरह यहां भी उन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ठेकेदारों ही नहीं, भ्रष्ट अधिकारियों से भी उनका जबर्दस्त टकराव हो चला। यही के कुछेक वाकयों ने उन्हें लौह महिला बना दिया।
वर्ष 2015-16 में अपने बुलंदशहर के कार्यकाल के दौरान कुछ दिन तक उन्होंने पुलिस लाइन में एंटी-रॉइट ड्रिल में दंगा निरोधक हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया था। बीच-बीच में औचक मुआयनों पर भी जाती रहीं। कभी स्कूल पहुंचकर बच्चों के सामने टीचर की क्लास ली तो अपने दफ्तर के बरामदे में जनता दरबार लगाकर पीड़ितों, दुखियानों की आपबीती सुनने लगीं।
कभी निर्माण कार्यों में घटिया सामग्री के इस्तेमाल पर मौके का जायजा लेने निकल पड़ीं तो एक दिन नगरपालिका के अफसरों, ठेकेदारों और पालिका चेयरमैन पिंकी गर्ग की करतूतों का कच्चा चिट्ठा उत्तर प्रदेश शासन को भेजने के साथ ही तीन ठेकेदारों के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया। इस दौरान बुलंदशहर के गांव कमालपुर में जब वह ग्रामीणों की मीटिंग ले रही थीं, फरहान नामक युवक ने उनके साथ सेल्फी लेने की कोशिश की। डीएम ने ऐसा करने से मना किया। वह नहीं माना तो मीटिंग से बाहर कर दिया। जब उससे कहा गया कि मोबाइल से फोटो हटा दो, वह सुरक्षाकर्मियों से हाथापाई करने लगा। आखिरकार उसे जेल भेज दिया गया।
बी चंद्रकला ने इस घटना पर ट्विट भी किया - अठारह साल का एक लड़का अचानक उनके साथ सेल्फी लेने लगा। कहा गया कि बिना परमिशन वह ऐसा नहीं कर सकता। उसे वहां से बाहर ले जाया गया और फोटो डिलीट करने को कहा गया तो उसका जवाब था- 'यह मेरा कैमरा है, मेरी मर्जी। बाद में उसे माफ कर दिया।'
कहते हैं कि हमीरपुर की लड़कियां ही नहीं, प्रदेश के मीडिया वाले भी उन्हें 'डीएम दीदी' कहने लगे। बताते हैं कि मथुरा से बुलंदशहर के लिए उनका तबादला हुआ था, इसके दो दिन पहले वह छुट्टी पर दुबई चली गई थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आदेश पर उन्होंने दुबई में रहते हुए ही फैक्स-ईमेल पर बुलंदशहर डीएम का चार्ज लिया। बी चंद्रकला के जुझारूपन पर एक कवि की चार लाइनें याद आती हैं-
आंधियों में भी दिवा का दीप जलना जिंदगी है,
पत्थरों को तोड़ निर्झर का निकलना जिंदगी है,
सोचता हूं मैं, किसी छाया तले विश्राम कर लूं,
किंतु कोई कह रहा, दिन-रात चलना जिंदगी है।
(सभी तस्वीरें सोशल मीडिया से साभार हैं...)
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