मछुआरे के बेटे ने बनाई जलाशय साफ करने की मशीन, देश विदेश से मिली तारीफ
बचपन में ही अपने मछुआरे माता-पिता को खो चुके गोदासु नरसिम्हा की जिंदगी में एक वक़्त ऐसा भी रहा कि एक रिश्तेदार के घरेलू काम-काज से उन्हे अपनी स्कूली फीस के पैसे जुटाने पड़े थे, लेकिन अब उनकी बनाई एक मशीन के लिए विदेशों तक से ऑर्डर मिल रहे हैं। वह अपने इलाके के हीरो हो गए हैं।
आज आंध्र प्रदेश के एक मछुआरा परिवार से आने वाले गोदासु नरसिम्हा किसी परिचय के मोहताज नहीं, उन्होंने पूरे विश्व में पहली बार जलाशयों से जलकुंभी की सफाई करने वाली एक ऐसी मशीन बनाई है, जिसे बाहरी मुल्कों के इंजीनियर तक उसे देखने, खरीदने के लिए आने लगे हैं। अपने इस अनोखे काम से नरसिम्हा लोगों के लिए एक बड़ा प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। उनकी यह सस्ती मशीन खरीदने के अब विदेशों तक से ऑर्डर मिलने लगे हैं। आंध्रा का गांव पोचमपल्ली साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है तो गोदासु नरसिम्हा गांव मुक्तापुर मछलियों का शिकार करने के लिए।
मुक्तापुर के लोग यहां के तालाबों की मछलियां बेचकर ही अपना गुजारा करते हैं लेकिन बरसात के दिनो में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उस समय जलकुंभियों से सारे जलाशय ढक जाते हैं। वर्ष 2012 के बाद से उनकी यही मुश्किल हमेशा के लिए दूर कर दी मछुआरा परिवार के ही पेशे से टीचर गोदासु ने। उन दिनो गोदासु को बरसात के दिनो में इसीलिए बार बार छुट्टियां लेनी पड़ती थी। इसके लिए उन्हे कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने नोटिस भी दिए तो उनके दिमाग में आइडिया आया कि क्यों ने वह इन जलकुंभियों से निपटने का कोई स्थायी हल ढूंढें। उनके दिमाग पर हर वक़्त उन जलकुंभियों की सफाई का जुनून सा सवार रहने लगा।
वर्ष 2012 में गोदासु नरसिम्हा ने एक ऐसी मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया, जिससे खरपतवार को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जा सके। नरसिम्हा की मशीन जलकुंभियों का जड़ से सफाया करने लगी तो मछुआरों की रोजी रोटी भी संभल गई। मशीन बनाने पर कुल लागत आई मात्र साठ हजार रुपए, जबकि ऐसी ही विदेशी मशीन की कीमत एक करोड़ रुपए तक है। मशीन बनाने में उन्हे अपने गांव के सरपंच और ग्रामीणों से भी बीस हजार रुपए की मदद मिली। शुरू में गोदासु ने कटिंग मशीन बनाई, जो तालाब के अंदर कारगर नहीं हो पा रही थी।
उसकी ब्लेड की रफ्तार पानी से उलझ कर रुक जाती थी। उसके अपने एक रिश्तेदार से तीस हजार रुपए कर्ज लेकर गोदासु ने उसे लिफ्टिंग मशीन का आकार दे दिया। यद्यपि उन्हे मशीन को अंतिम रूप देने में अभी दस हजार रुपए और चाहिए थे। आखिरकार पास के एक दूसरे गांव के लोगों ने ये पैसा भी उन्हे जोड़-जुटाकर दे दिया। अब पूरी तरह तैयार मशीन जैसे ही तालाब में उतारी गई, वह जलकुंभियों का दनादन सफाया करने लगी और इससे पूरे इलाके के मछुआरा परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई। गरीबी में आटा गीला करने की तरह अब हर बरसात में मजदूरों से जलकुंभियों की सफाई कराने पर लाखों रुपए खर्च करन देने की मुश्किल भी हमेशा के लिए दूर हो गई। गोदासु अपने इलाके के हीरो हो गए।
ऐसे जीवट वाले गोदासु का घरेलू जीवन भी कुछ कम मुसीबतों भरा नहीं रहा है लेकिन वह शुरू से ही इनोवेशन को लेकर गंभीर बने रहे थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। बड़े भाई ने उन्हे पाल-पोषकर बड़ा किया। गोदासु बताते हैं कि स्कूली दिनो में उनके घर वालों के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह फीस जमा कर सकें तो अपने एक रिश्तेदार के यहां घरेलू काम-काज के बदले फीस के पैसे जुटाकर पढ़ने लगे। गोदासु को बचपन से ही मशीनी चीजों से खेलने, उन्हे तोड़ने-फोड़ने, फिर से बनाने का शौक रहा है। वह बड़े होकर मैकेनिकल इंजीनियर बनना चाह रहे थे लेकिन टीचर बन कर रह गए। यद्यपि कॉलेज में उन्हे सिविल इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया था। वह डिप्लोमा करना चाहते थे लेकिन मन नहीं लगा और उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी।
उसके बाद गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने लगे। उससे उतना पैसा नहीं मिल पाता था कि घर खर्च चल सके। मछलियां बेचकर वह भी अपना घर-परिवार चलाना चाहे तो जलकुंभियों ने रास्ता रोक लिया। जब उन्होंने जलकुंभियां साफ करने वाली मशीन का आविष्कार किया, मीडिया में छा गए।
उस मशीन के लिए उनके पास हैदराबाद, पुणे ही नहीं, विदेशों से भी ऑर्डर आने लगे। पहली बार 'पल्ले सृजना' संगठन के लोग उनसे मिले। उन्ही के सहयोग से गोदासु नरसिम्हा को अपनी मशीन राष्ट्रीय मंच पर दिखाने का मौका मिला। वर्ष 2015 में राष्ट्रपति भवन में भी उनकी मशीन की नुमायश हुई। उसके बाद उनको हैदराबाद नगर निगम की ओर से वहां के जलाशयों के खर-पतवार की सफाई का पहला ऑर्डर मिला। उन्होंने हैदराबाद के नौ-दस तालाबों और झीलों की साफ़-सफाई कर डाली है।
अब तो उन्होंने ओडिशा के एक पॉवर प्लांट के साथ ही किसानों के लिए और भी कई मशीनें बनाई हैं। एक बेहतर कटिंग मशीन बनाने पर तीस लाख तक की लागत आ सकती है। उन्हें पुणे, चेन्नई और विशाखापट्टनम से भी मशीन बनाने के ऑर्डर मिलने लगे। उनकी कबिलियत की सूचना जब केन्या के सिंचाई मंत्री सलमो ओरिम्बा को मिली, उन्होंने भारत सरकार से संपर्क कर एक साथ दस मशीनें भेजने का उनको ऑर्डर दे दिया।