रोजगार की नई लीक पर फूड डिलीवरी वुमन मेघना दास और जननी राव
एक ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि स्किल्ड होने के बावजूद 88 लाख महिलाओं की नौकरी चली गई। ग्लोबल जेंडर गैप भी महिलाओं के लिए चौंकाने वाला है। ऐसे में मंगलुरु सिटी की मेघना दास और हैदराबाद की जननी रॉव फूड डिलीवरी वुमन के रूप में अपनी राह चल पड़ी हैं। मेघना तो सिटी कॉरपोरेशन का चुनाव भी लड़ रही हैं।
कर्नाटक में एक कंपनी की फूड डिलीवरी वुमन मेघना दास अब कांग्रेस के टिकट पर मन्नागद्दा वार्ड (वार्ड संख्या 28) से मंगलुरु सिटी कॉरपोरेशन का चुनाव लड़ रही हैं। वह गत 31 अक्टूबर को अपना नामांकन भी दाखिल कर चुकी हैं। मेघना कहती हैं, उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी कि चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिल जाएगा। वह फूड डिलीवरी के लिए खूब ट्रैवल करती हैं। इसलिए उन्हें लोगों की समस्याएं पता हैं। वह निर्वाचित जन प्रतिनिधि के रूप में अपने शहर के लोगों की समस्याएं दूर करना चाहती हैं।
इस समय मेघना दास अपने वार्ड में घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर रही हैं। उनको चुनाव जीतने का पूरा भरोसा है। तेजी से बदलते समय में आज महिलाएं पुरुषों से किसी भी मामले में पीछे नहीं रहना चाहती हैं। मेघना की तरह ऐसी ही हैं हैदराबाद की एक अन्य युवा उत्साही, जननी राव, जिनकी अब फूड डिलीवरी वुमेन की पहचान बन चुकी है। वह ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म 'स्वीगी' में डिलीवरी एजेंट का काम संभाल रही हैं।
गौरतलब है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दो छात्रों रशल लेवनसन और लायला ओ केन के ताज़ा 'जेंडर इन्क्लूजन इन हायरिंग इंडिया' अध्ययन के मुताबिक, इस समय हमारे देश में समान योग्यता रखने के बावजूद महिलाओं की बेरोजगारी दर पुरुषों के मुकाबले दोगुनी है। शहरों में काम करने योग्य शिक्षित महिलाओं में से 8.7 प्रतिशत बेरोजगार हैं जबकि इसकी तुलना में केवल चार प्रतिशत पुरुषों के पास काम नहीं है।
आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले कुछ ही समय में देश में लगभग 1 करोड़ 10 लाख नौकरियां खत्म हो गईं, इनमें से 88 लाख तो नौकरीशुदा महिलाएं थीं। महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ ब्रेकथ्रू की प्रेजीडेंट सोहिनी भट्टाचार्य ने ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में महिलाओं की भागीदारी को लेकर हाल में ही आयोजित एक कार्यक्रम में ये आंकड़े पेश किए।
एक ओर जॉब में महिलाओं के लिए सूखा पड़ता जा रहा है, दूसरी तरफ मेघना दास और जननी रॉव जैसी महिलाएं भी हैं, हिम्मत न हारते हुए पुरुषों के वर्चस्व वाले काम-काज संभालती हुई देश की बेरोजगार आधी आबादी के लिए नज़ीर बन रही हैं। हैदराबाद की फूड डिलीवरी वुमन जननी रॉव पिछले ढाई महीने से महिलाओं के रोजगार के लिए नई राह स्थापित कर रही हैं।
वह कहती हैं कि उन्हें यह काम बेहद दिलचस्प और मजेदार लगता है। उन्हे सभी ग्राहकों से मिलना अच्छा लगता है। सभी ग्राहक उनके काम की तारीफ करते हैं। उन्हें इस जॉब में देख कर काफी खुश होते हैं क्योंकि इस तरीके की जॉब समाज में महिलाओं के लिए कमतर दृष्टि से देखा जाता है।
वैसे भी हैदराबाद दूसरा सबसे सुरक्षित शहर है, इसलिये इसमें उनको डरने वाली कोई बात नहीं लगती है। वह महिलाओं से अपील करती रहती हैं कि वे बाहर निकलें और वो करें जो करना चाहती हैं। कोई जॉब छोटा या बड़ा नहीं होता। नौकरी, नौकरी होती है।
वैसे भी इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के एक अध्ययन के मुताबिक, इस समय दुनियाभर में काम करने वालों में पुरुषों की हिस्सेदारी जहां 75 फीसदी है, वहीं महिलाएं 49 फीसदी ही हैं। खासकर पेड वर्क फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी तेजी से घटी है, जबकि उनका स्किल बढ़ा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमिक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं में बेरोजगारी की दर प्रति 100 महिलाओं पर जहां 15.7 महिलाएं हैं, वहीं पुरुषों में यह दर 5.4 देखी गई है।
इसी कड़ी में 1 करोड़ 10 लाख नौकरियां जाने का सबसे अधिक नुकसान महिलाओं को हुआ, क्योंकि इन खोई नौकरियों में उनकी तादाद 88 लाख रही। अब सवाल उठता है कि महिलाओं को स्किल्ड होने के बावजूद नौकरियों से दूर क्यों किया जा रहा है?
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की एक स्टडी के मुताबिक, ग्लोबल जेंडर गैप के मामले में 135 देशों की सूची में भारत का नंबर 87 है। जरूरी योग्यता के बाद भी सीनियर लेवल पर सिर्फ 10 फीस ही महिलाएं पहुंच पा रही हैं।