हाजी सरदार मोहम्मद के लिए तो उदयपुर की झील ही मां गंगा जैसी
गंगा तेरा पानी अमृत। हमारे देश के लिए गंगा मां है लेकिन उदयपुर के हाजी सरदार मोहम्मद के लिए तो उनके शहर की झील ही मां गंगा सरीखी। वह पिछले डेढ़ दशक से 'झील हितैषी नागरिक मंच' गठित कर अपने शहर की झीलों की सफाई में जुटे हैं। हर संडे सुबह से वह जलकुंभियां साफ करने के लिए झीलों में उतर जाते हैं।
हाजी सरदार मोहम्मद खां के लिए उदयपुर की झील ही मां गंगा है, जिसे साफ-सुथरा रखने का वह पिछले चौदह वर्षों से बीड़ा उठाए हुए 'झील हितैषी नागरिक मंच' को यहां के जन-जल-जीवन का सबसे जरूरी अस्त्र बना चुके हैं। हर संडे की सुबह वह नाव में बैठकर झील के कचरे साफ करने में जुट जाते हैं। यह नाव उनको भारत विकास परिषद की ओर से मिली है। हाजी सरदार मोहम्मद के अलावा झील हितैषी नागरिक मंच में कमलेश पुरोहित, सोहनलाल कल्याणा, किशोर गहलोत, बद्रीलाल, प्रकाश परिहार, हाजी नूर मोहम्मद, अनवर शेख, भवरलाल शर्मा आदि भी शामिल हैं, जो उदयपुर की झीलों में श्रमदान से सफाई करते रहते हैं। झील पर पसरी जलकुंभियों की सफाई न हो तो ये अम्बापोल पुलिया के नीचे बने मोखो से रंगसागर, तीरामंगरी, चांदपोल, बाहरीघाट, इमलीघाट, नई पुलियाव, स्वरूप सागर तक छा जाती है।
झीलों का शहर उदयपुर पहाड़ी मनोरमता के साथ पूरी दुनिया में अपनी झीलों के लिए मशहूर है। कभी महाराणाओं ने इन झीलों का निर्माण किया था। बारहो मास विश्वभर के सौ-दो सौ नहीं, बल्कि लाखों सैलानी यहां की झीलों का आनंद लेने पहुंचते हैं। सरकारी राजस्व में यहां का पर्यटन उद्योग एक मुख्य किरदार की तरह है और शहर के पर्यटन की खूबसूरती निखारने में एक अहम रोल है सरदार मोहम्मद और झील हितैषी नागरिक मंच का।
उदयपुर शहर के बीच लहराते सैलानियों से गुलजार जिस झील के चारों तरफ गिर्वा पहाड़ियों के नज़ारे देश-विदेश के पर्यटकों को लुभाते रह ते हैं और जिसके बूते यहां का होटल व्यवसाय फल-फूल रहा है, उसकी सेहत के सबसे बड़े फ्रिक्रमंद हैं सरदार मोहम्मद। इस झील में तैरता जलकुंभियों का कचरा सैलानियों की आँखों में तिनके की तरह खटकने लगता है।
आंखों-आंखों में 73 वर्षीय हाजी सरदार मोहम्मद सैलानियों से भी अपनी इस गंगा माँ को साफ-सुथरा बनाए रखने की गुहार लगाते रहते हैं। वह उदयपुर वासियों को भी आगाह करने से परहेज नहीं करते कि वे ही उनके श्रमदान की पहली वजह हैं, वे क्यों नहीं, अपने शहर की इस सबसे महान बरकत को जल प्रदूषण से बचाने में आलस नहीं करते हैं।
हाजी सरदार मोहम्मद बताते हैं कि पहली बार 2005 में उन्होंने इस झील की सफाई का बीड़ा उठाया था, फिर तो एक-एक कर लोग उनके साथ जुड़ते गए और कारवां बनता गया। उस साल मूसलाधार बारिश से सारी झीलें उफन पड़ी थीं। चारो तरफ उनका चेहरा कचरे से ढंक गया था। उनका घर झील के किनारे है तो सबसे ज्यादा वे ही उस कचरे से घंटों रूबरू होते रहे, फिर तय किया कि अब तो उन्हे खुद ही उदयपुर की गंगा मां की सफाई की पहल करनी होगी।
उसके बाद उन्होंने अपने दोस्त जमनाशंकर दशोरा की मदद से दस ट्यूब की नाव बनाई और जलकुंभी साफ करने के लिए झील में उतर पड़े। उसके बाद उनके प्रयासों से ही आगे झील हितैषी नागरिक मंच का गठन हुआ। अब यही मंच हर सप्ताह रविवार सुबह से ही उदयपुर की झीलों से कचरा और जलकुम्भी साफ करने निकल पड़ता है। अब तक यह मंच शहर की झीलों से सैकड़ो टन कचरा साफ कर चुका है।
हाजी सरदार मोहम्मद कहते हैं कि यदि समय रहते उदयपुर की झीलों को साफ नहीं किया गया तो शहर की शान कहे जाने वाले ये मनोहर दृश्य देखने को हमारी आने वाली पीढ़ियां तरस जाएंगी। वह बताते हैं कि यहां आने वाले पर्यटक भी अपने पीछे झील किनारे भारी कचरा छोड़ जाते हैं। कभी हिम्मत न हारने वाले हाजी कहते हैं कि जब तक लोग कचरा डालते रहेंगे, हम साफ़ करते रहेंगे।
मोहम्मद बताते हैं कि झील सफाई के दौरान उनको कई बार लोगों के ताने-उलाहने भी खामोशी से हजम करने पड़ते हैं। एक बार एक आदमी ने झील में कचरे से भरी थैली फेक दी। जब उन्होंने उसे टोका तो वह बिफरने लगा कि फूल की मालाएं हैं, तुम्हें इससे क्या मतलब? उसके बाद वह खुद झील में उतर कर वह थैली पानी से निकाल लाए, जिसमें एक माला के अलावा सिगरेट के खाली पैकेट्स और शराब की बोतल मिली।