स्कूल में प्लास्टिक जुटा रहे बच्चों को फीस, पाठ्य पुस्तकें, खाना-कपड़ा मुफ़्त
"पीएम नरेंद्र मोदी की जलवायु आपदा विरोधी स्वच्छता मुहिम से तरह-तरह के पॉजिटिव साइड इफेक्ट सामने आने लगे हैं। बड़े होकर देश का आदर्श नागरिक बनने के लिए असम और बिहार के निर्धन परिवारों के स्कूली बच्चे फ़ीस के बदले प्लास्टिक जमा कर रहे हैं। बदले में उनकी फीस, पुस्तकें, खाना, कपड़ा फ्री कर दिया गया है।"
पीएम नरेंद्र मोदी का प्लास्टिक विरोधी देशव्यापी अभियान कितने तरह से रंग ला रहा है, इस मुहिम को सफल बनाने के लिए देश के जागरूक नागरिक कैसे-कैसे प्रयोग कर रहे हैं, अब एक-एक कर ऐसी कई एक साइलेंट परफॉर्मेंस सामने आने लगी हैं। बड़े होकर देश का आदर्श नागरिक बनने के लिए असम और बिहार के स्कूली बच्चे फ़ीस के बदले प्लास्टिक जमा कर रहे हैं। इंफाल (मणिपुर) में सदोक्पम इटोबी सिंह और उनके पिता सदोक्पम गुणाकांता तो बेकार प्लास्टिक से करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं।
पूरे असम में भारी पैमाने पर प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। दिसपुर (असम) की परमिता सरमा ने न्यूयॉर्क में रह रहे अपने पति मजीन मुख्तार के साथ एक ऐसा प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसके तहत 'अक्षर फोरम' स्कूल के बच्चे हर हफ्ते फीस के बदले प्लास्टिक की 20 चीजें अपने घर और आसपास के इलाके से जुटाकर जमा करते हैं। पिछले साल तक इस स्कूल में पढ़ाई बिल्कुल मुफ्त थी लेकिन अब स्कूल ने प्लास्टिक 'फी' वसूलने की योजना शुरू की है। इससे पहले स्कूल प्रबंधन बच्चों के अभिभावकों से प्लास्टिक की रिसाइकिल योजना में शामिल होने की बार-बार गुहार लगाता रहा लेकिन उन्होंने कोई ने ध्यान नहीं दिया। उसके प्रबंधन ने निर्देश जारी कर दिया कि अगर कोई अपने बच्चे को इस स्कूल में मुफ्त पढ़ाना चाहता है तो फीस के रूप में प्लास्टिक देनी होगी। साथ ही शपथ लेनी पड़ेगी कि वे कभी प्लास्टिक नहीं जलाएंगे।
अब इस स्कूल के बच्चे घर-घर जाकर प्लास्टिक मांगने लगे हैं। दस लाख की आबादी वाले दिसपुर में हर दिन 37 टन कचरा पैदा होता है। बच्चों द्वारा जमा किए जा रहे प्लास्टिक को स्कूल के छात्र प्लास्टिक की थैलियां बोतलों में भर कर इको ब्रिक बना रहे हैं, जिसे स्कूल भवन के विस्तार में इस्तेमाल किया जाएगा। इसी तरह गया (बिहार) के सेवाबीघा गाँव में पद्मपनी गिव्स स्कूल के ढाई सौ बच्चे निःशुल्क पढ़ाई के लिए रोजाना प्लास्टिक जमा करते हैं। इसके बदले में उनकी फीस माफ है, साथ ही उन्हे यूनीफॉर्म, उनके पाठ्यक्रम की पुस्तकें, स्टेशनरी के सामान और मुफ्त में भोजन भी दिया जाता है।
स्कूल के संस्थापक मनोरंजन प्रसाद समदरसी बताते हैं कि उनके यहां पढ़ रहे गरीब परिवारों के बच्चों और उनके अभिभावकों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए यह मुहिम शुरू की गई है। बच्चे रोजाना प्लास्टिक इकट्ठे कर स्कूल की डस्टबिन में डाल देते हैं। अब स्कूल के आसपास दूर दूर तक कही प्लास्टिक का कचरा नजर नहीं आता है। इतना ही नहीं, ये बच्चे अपने स्कूल तक आ रही सड़क को भी हमेशा साफ-सुथरा रखने लगे हैं। वे कचरे में जमा प्लास्टिक की बोतलों में पौधे लगाते हैं। वे अब तक स्कूल आने वाली सड़क के इर्द-गिर्द लगभग दो हजार ऐसे पौथे रोप चुके हैं। इन पौधों को सलामत रखने की जिम्मेदारी भी वह खुद उठा रहे हैं। बड़े होकर देश का आदर्श नागरिक बनने के लिए ये छात्र आगामी दो वर्षों में अपने आसपास के गांवों में पांच हजार पौधे रोपने का संकल्प ले चुके हैं।
चंबा (हिमाचल प्रदेश) में स्थानी जिला प्रशासन की पहल पर प्लास्टिक की बोतलें कमाई का जरिया बन रही हैं। एक से दो लीटर तक की बोतलों में पॉलीथीन भरकर जमा करने पर प्रति बोतल बीस रूपए दिए जा रहे हैं। निर्धारित केंद्रों में जमा हो रहीं प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल पार्कों में कुर्सियां, बैंच, टेबल, डिजाइन, मॉडल और गमले बनाने में किया जाएगा।
इंफाल (मणिपुर) में सदोक्पम इटोबी सिंह और उनके पिता सदोक्पम गुणाकांता तो बेकार प्लास्टिक से करोड़ों कमा रहे हैं। पहले उन्होंने प्लास्टिक के कचरे को जमा कर दिल्ली और गुवाहाटी भेजना शुरू किया। बाद में खुद का रीसाइकल प्लांट लगा लिया। वह बाकायदा जेएस प्लास्टिक्स नाम से कंपनी बनाकर पिछले कुछ वर्षों में डेढ़ करोड़ रुपए कमा चुके हैं।