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[Techie Tuesday] एक कॉलेज ड्रॉपआउट से क्लाउड टेलीफोनी एस्कपर्ट बनने तक, कुछ ऐसी है कैरिक्स के गुरतेश्वर सिंह की अनोखी कहानी

[Techie Tuesday] एक कॉलेज ड्रॉपआउट से क्लाउड टेलीफोनी एस्कपर्ट बनने तक, कुछ ऐसी है कैरिक्स के गुरतेश्वर सिंह की अनोखी कहानी

Tuesday December 31, 2019 , 12 min Read

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गुरतेश्वर सिंह


आपको अपनी ड्रीम जॉब हासिल करने के लिए क्या चाहिए? कॉलेज में अच्छी ग्रेड या एक या दो डिग्री! लेकिन गुरतेश्वर सिंह के मामले में ऐसा नहीं है। गुरतेश्वर मोबाइल एंटरप्राइजेज इंगेजमेंट प्लेटफार्म कैरिक्स (Karix) में न्यू प्रोडक्ट डेवलपमेंट के निदेशक हैं। चाहे कुछ भी हो लेकिन, गुरतेश्वर की कहानी इस बात का सबूत है कि सफलता के लिए कोई एक सिंगल और स्पष्ट मार्ग नहीं है।


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने सपनों की नौकरी करने के लिए किसी फैंसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए आपको अपनी एक्सपर्टी वाले एरिया के लिए बस एक अटूट जुनून और आकर्षण चाहिए, जैसा कि गुरतेश्वर के मामले में उन्हें टेक्नोलॉजी से प्रेम था। गुरतेश्वर का टेक्नोलॉजी के प्रति प्रेम जल्दी ही शुरू हो गया था। अगर सही उम्र की बात करें तो, नौ वर्ष की आयु में ही वे टेक्नोलॉजी के प्रति आकर्षित थे।


ऐसे समय में जब अधिकांश बच्चों को स्कूल में शानदार प्रदर्शन के लिए साइकिल और चॉकलेट गिफ्ट की जा रही थी, गुरतेश्वर के माता-पिता ने अपने बेटे को कुछ अलग रिश्वत दी: एक कंप्यूटर। यह वही कंप्यूटर था जिस पर गुरतेश्वर ने सबसे पहले कोडिंग सीखी। मात्र 13 वर्ष की आयु में, उन्होंने इंटरनेट की दुनिया की खोज की, इसमें समाहित कई संभावनाओं की खोज की। उसके बाद से वे हमेशा के लिए इसी में डूब गए।


दिलचस्प बात यह है कि इस कॉलेज ड्रॉपआउट के इंटरनेट के प्रति शुरुआती आकर्षण ने ही क्लाउड टेलीफोनी जीनियस के रूप में उनके कैरियर की नींव रखी है। खुद से कोडिंग सीखने वाले गुरतेश्वर को आज क्लाउड टेलीफोनी कंपनी प्लिवो (Plivo) में कोर टेक लेयर बनाने में मदद करने का श्रेय दिया जाता है। वर्तमान में गुरतेश्वर कैरिक्स में प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी को लीड कर रहे हैं। इसके अलावा वे कैरिक्स के प्रोडक्ट, Karix.io - या इसके क्लाउड कम्युनिकेशन प्लेटफॉर्म (CPaas) - को 2018 में हुए मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सफलतापूर्वक ले जाने के लिए भी जिम्मेदार हैं। 


योरस्टोरी के साथ बातचीत में गुरतेश्वर ने जम्मू-कश्मीर के एक मध्यम वर्गीय पंजाबी परिवार के बेटे से लेकर कॉलेज ड्रॉपआउट करने और खुद से कोडिंग सीखने व एक क्लाउड टेलीफोनी जीनियस बनने तक के सफर से बारे में खुलकर बात की।




इंटरनेट की दुनिया

1996 में, इंटरनेट कनेक्शन लेने वाला गुरतेश्वर का घर उनके गृहनगर जम्मू में पहला था। वह उस दिन को ऐसे याद करते हैं जैसे ये कल की ही बात हो। वे कहते हैं,

''मुझे याद है कि बीएसएनएल के इंजीनियर ने हमें बताया था कि (अब हमारे पास इंटरनेट कनेक्शन है) तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने ICQ (एक क्रॉस प्लेटफॉर्म इंस्टेंट मैसेजिंग और वॉयस आईपी क्लाइंट, जिसे आई सीक यू के रूप में भी संदर्भित किया जाता है) खोला और वो ऑस्ट्रेलिया में किसी के साथ बातचीत कर रहा था। इस पूरी बात ने मेरे दिमाग को हिला दिया। मैंने उनसे कई बार पूछा- क्या यह रियल है? जब आप टाइप करते हैं, तो दूसरे छोर पर एक असली इंसान रिप्लाई दे रहा है।"


उस समय, अल्ताविस्टा (Altavista) एकमात्र सर्च इंजन था जो काम करता था। और पहली चीज जो गुरतेश्वर ने ऑनलाइन देखी थी वो था एक WWF रेसलिंग मैच, वह याद करते हैं,

“हमारे पास जो इंटरनेट कनेक्शन था वह 16KBPS था, और मैं कुछ क्रिकेट खेलने के लिए DOS पर सबसे ज्यादा समय बिताता था। इसको लेकर मेरे चाचा लोग और रिश्तेदार हमेशा शिकायत करते रहते थे।"

इस सबसे बाद भी, इंटरनेट इस छोटे बच्चे के लिए जादू की तरह था। लेकिन यह केवल पहला कदम था - टेक्नोलॉजी और कोडिंग की दुनिया की अपार संभावनाओं में एक खिड़की के खुलने जैसा था।


जल्द ही, उन्होंने ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल / इंटरनेट प्रोटोकॉल (टीसी / आईपी) जैसे प्रोटोकॉल के लिए रिक्वेस्ट फॉर कमेंट्स (आरएफसी) के बारे में पढ़ना शुरू कर दिया। वहां से, उनकी रूचि धीरे-धीरे वॉइस नेटवर्किंग की ओर बढ़ी, जिसे उन्होंने बारीकी से अध्ययन करना शुरू किया, खासतौर से - वॉयस चैटिंग का।


वह ज्यादा से जज्यादा प्रोटोकॉल का अध्ययन करना चाहते थे क्योंकि इसको लेकर काम करने और इसे समझने में अधिक जटिलताएं और चुनौतियां हैं। वह कहते हैं कि जब 200ms से अधिक का एंड-टू-एंड लेटेंसी होता है, तो कॉलर बस 'हैलो' कहता रहेगा।




वे कहते हैं,

“इंटरनेट में आवाज के मिश्रण ने मुझ पर जादू भी किया और चुनौती भी दी। मुझे चुनौती लेना मंजूर है और उस समय इस पर कोई काम भी नहीं कर रहा था। दरअसल, अब भी वैसा ही है। भारत में, वॉयस एक्सपर्टीज वाले लोगों को काम पर रखना बेहद कठिन है।”

वे बताते हैं कि उनके स्कूल का इंटरनेट कनेक्शन जम्मू में उनके घर से आया था। उनका स्कूल जम्मू से डायल करके पहली बार कुछ देर के लिए ऑनलाइन गया क्योंकि अभी तक इसे अपने स्वयं के कनेक्शन प्राप्त करने के लिए क्रेडेंशियल प्राप्त नहीं हुए थे। उस समय यह डायलअप था इसलिए वे कहीं भी कॉल कर सकते थे और उन्होंने सबसे पहली कॉल गुरतेश्वर के घर पर लगाने की कोशिश की।


वे कहते हैं,

"जब वायर आया था, तो कोई डायल-अप नंबर नहीं था और मैंने तकनीशियन से जम्मू के रिले कोड 0191 के साथ मेरे खुद के नंबर पर कल करने के लिए कहा और इसने काम किया।"

कोड सीखना

इसके बाद, गुरेश्वर ने कोड लिखना शुरू कर दिया और कॉल के आईपी पैकेट को कैप्चर करना शुरू किया। और इस बेबी स्टेप ने एक होनहार छात्र के लिए बड़े मार्ग का रास्ता प्रसस्त किया। गुरतेश्वर अकैडमिक्स और स्पोर्ट्स दोनों में समान रूप से उत्कृष्ट थे।


स्कूल के बाद, उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग का चयन करते हुए महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एडमिशन लिया, लेकिन उन्होंने जल्द ही बीच में ही छोड़ दिया।


वह इस बारे में बताते हैं,

"मैं केवल वो काम करना चाहता था जिसमें मुझे रुचि थी, लेकिन इंजीनियरिंग में, सभी विषय आपकी रुचि के नहीं थे और मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता था जिसमें मुझे कोई दिलचस्पी न हो।"

उस समय, गुरुतेश्वर ने अपना कोर्स कंप्यूटर साइंस में बदलना चाहा, लेकिन वह सफल नहीं रहे। इसलिए, कॉलेज के दो साल बाद, उन्होंने अपने इंजीनियरिंग कोर्स से ड्रॉपआउट कर लिया और अपने माता-पिता को आश्वस्त किया कि वे डिस्टेंस एजुकेशन से BCA करेंगे। इस सबके दौरान, गुरतेश्वर ने खुद को कोडिंग सिखाना जारी रखा।




वे कहते हैं,

"मैंने वायरशार्क (पैकेट कैप्चर्स पढ़ने का टूल) खोलने के साथ शुरूआत की, और मैं देखना चाहता था कि कॉल इनिशिएशन और कंट्रोल कैसे बनाए गए और उनकी दूसरों के साथ तुलना की।" 

गुरतेश्वर कहते हैं कि केवल एक चीज जो मुझे सीखने की जरूरत थी, वह थी- यह समझना कि सीखना कैसे है। इसके लिए वे ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर कम्युनिटीज को थैंक्स कहते हैं, क्योंकि मालिकाना ज्ञान जैसी कोई चीज नहीं है।


वे कहते हैं, "मैंने ये सब ऑनलाइन खोजा है।" यहां तक कि, जब उनकी बहन 2008 में अपनी हायर एजुकेशन के लिए लंदन गई, तो गुरतेश्वर ने सुनिश्चित किया कि वह अपने माता-पिता के साथ नियमित रूप से बात कर सके। गुरतेश्वर अपनी बहन को एक विशेष नंबर पर कॉल करने के लिए कहते थे, जिसके माध्यम से वह उन्हें अपने माता-पिता से कनेक्ट करते थे।


जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि वे फ्रीलांसिंग के माध्यम से इस तरह से कुछ पैसे कमा सकते हैं। वे कहते हैं,

"तब तक, मुझे पता चला था कि आप सीपीयू और बेसिक इंटरकॉम कॉल जैसे सिस्टम से होटलों में एक बुनियादी कॉल-सेंटर जैसी प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं। मैं लोगों से पीबीएक्स बॉक्स खरीदने के लिए कहता था, और बाद में मैं उसमें सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करता था। मैं उन्हें एक शीट देता था - जिस पर पहला नंबर 1001 और, दूसरा 1002 फोन होता था, और इसी तरह आगे के नंबर होते थे।"

यह 2000 के दशक की शुरुआत में था, और जिपडायल (Zipdial) और एक्सोटेल (Exotel) जैसे प्रोडक्ट पहले से ही बाजार में थे।

स्टार्टअप से सबक

फ्रीलांस से कमाए गए कुछ पैसों से गुरतेश्वर ने अपने स्कूल के दोस्त फतेह सिंग खारा के साथ 2011 में Treehub.in शुरू करने का फैसला किया। वे कहते हैं,

"हम इसे प्रोडक्ट बनाना चाहते थे। ग्राहक हमसे एक वर्चुअल नंबर खरीद सकते थे और कॉल कर सकते थे। आइडिया यह था कि ग्राहक के पास अलग-अलग नंबर्स हों जो विभिन्न मीडिया - प्रिंट, रेडियो और होर्डिंग्स के लिए विज्ञापन कर सकते हों। मिस्ड कॉल के आधार पर, हम उन्हें लीड जनरेट करने में मदद करते, और पता लगाते कि किस चैनल के पास सबसे अच्छा RoI था।”

ट्रीहब के लिए, दोनों ने टीसीएल से एक लाइन ली और ग्रेटर कैलाश में I डेटासेंटर में एक केंद्र बनाया। टीम ने विभिन्न कंपनियों, ग्राहकों और ऑफरिंग पर भी शोध किया।




वे कहते हैं,

“यह हमारा भोलापन और गलती थी। हमने किसी भी वास्तविक ग्राहक से बात किए बिना या बाजार से बात किए बिना ही शुरुआत कर दी। यह एक बुलबुला है जिसमें सबसे ज्यादा तकनीकी लोग हैं। हमारा मानना है कि हमने सबसे अच्छा प्रोडक्ट बनाया है और लोगों को इसे खरीदना चाहिए। लेकिन यह ऐसे काम नहीं करता है।"

इसलिए, जब स्टार्टअप धरातल पर उतरा, तो दोनों ने महसूस किया कि वास्तविक दुनिया अलग थी


वे बताते हैं,

“हमने घर बैठे एक प्रोडक्ट बनाया था और यह मान लिया था कि हम दुनिया को जीत सकते हैं। यह सब तब काफी इजी लगता है जब आप अपनी उम्र के 20वें साल में होते हैं।”

वह स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं कि उन्हें जीरो ट्रैक्शन हासिल हुआ है और उन्होंने प्रोडक्ट से कोई पैसा नहीं कमाया। लेकिन जैसा कहते हैं, हरेक निराशा में भी एक उम्मीद की किरण होती है। कॉलेज छोड़ने के बाद, गुरतेश्वर को नौकरी पाने में मुश्किल हो रही थी। लेकिन यह असफल स्टार्टअप था जिसने अंततः उन्हें 2013 में नौकरी देने में मदद की।


एक सीखता उद्यमी

गुरतेश्वर कहते हैं,

"मुझे पता था कि मेरे पास अच्छी टेक्नोलॉजी एक्सपर्टीज और नॉलेज है, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि एक बिजनेस कैसे काम करता है। इसलिए, मुझे लगा कि मुझे फिर से स्टार्टअप शुरू करने से पहले सीखने की जरूरत है। मैं सीखना चाहता हूं कि सेल्स और मार्केटिंग कैसे करना है।”

जब 2013 में गुरतेश्वर ने प्लिवो को इंटरव्यू दिया, तो वह स्वाभाविक रूप से कंपनी के लिए फिट थे। टीम के पास सीटीओ माइकल रिकोर्डो के अलावा वॉयस कम्युनिकेशन में विशेषज्ञता वाला कोई नहीं था।


गुरतेश्वर बताते हैं,

“कॉल समस्याओं को डीबग करने के लिए, आपको वॉइस पैकेट के निशान में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। यही एकमात्र कारण है कि मुझे काम मिला है।”
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प्लिवो टीम के साथ गुरतेश्वर सिंह

वह याद करते हैं कि वह खुद को साबित करने के लिए रातभर काम करते थे कि वे इस जॉब के लिए योग्य थे। पहले हफ्ते में, टीम ने विलंबता (latency) को आधे से कम करने के लिए पूरे आउटबाउंड कॉलिंग को फिर से लोड किया। उन्होंने कई नए वॉयस फीचर्स के लिए कोड लिखने पर भी काम किया, क्योंकि कई लोग ऐसे नहीं थे जो इसे कर सकते थे।


प्लिवो में, गुरतेश्वर ने एसएमएस प्रोटोकॉल पर भी काम करना शुरू किया। तब टीम के पास केवल दो मार्केट्स की सेवा के लिए इंटीग्रेशन प्वाइंट्स थे - इंग्लैंड और यूएस; गुरतेश्वर ने इसे विश्वव्यापी पेशकश में बदल दिया। उनके आगमन से पहले, एसएमएस और वॉयस का रिवेन्यू हिस्सा क्रमशः पांच प्रतिशत और 95 प्रतिशत था। जब गुरतेश्वर ने छोड़ा तब तक यह 50:50 था।




गुरतेश्वर कहते हैं,

“यह हाथों-हाथ होने वाली और एक चुनौतीपूर्ण भूमिका थी। शुरुआती दिनों में मैं कोडिंग का हर पार्ट खुद से करता था। मैंने बहुत कुछ सीखा, और मुझ पर प्लिवो का बहुत अहसान है।”

प्लिवो में, उन्होंने पहले वॉयस हेड के तौर पर ज्वाइन किया। टेलीफोनी सिस्टम डिजाइन करना थोड़ा अधिक जटिल है। उदाहरण के लिए, यदि सर्वर हांगकांग और लंदन में हैं और आपके पास कोई डेस्टीनेशन नंबर डायल कर रहा है, तो आपको उपयुक्त सर्वर पर कॉल लैंड कराना सुनिश्चित करना होगा नहीं तो ये किसी और जगह चली जाएगी या इसमें काफी देरी होगी।


फिर भी, कन्ज्यूमर-फेसिंग बिजनेस के बारे में अधिक जानने की उनकी इच्छा में, 2016 में गुरतेश्वर ग्रोफर्स (Grofers) में शामिल हो गए। उन्हें सॉफ्टवेयर इंजीनियर टीम लीड के रूप में काम पर रखा गया और उन्हें मार्चेंट-फेसिंग मार्केटप्लेस सिस्टम बनाने के लिए कहा गया। प्लेटफॉर्म पर, किराना स्टोर अपनी इन्वेंट्री को लिस्ट करते हैं और ऑर्डर कन्ज्यूमर-फेसिंग वाले ऐप के माध्यम से पूरा करते हैं।

दिल से टेकी

2017 में, गुरतेश्वर कैरिक्स में न्यू प्रोडक्ट डेवलपमेंट के डायरेक्टर के रूप में शामिल हो गए, जहां वे कंपनी के टेक और प्रोडक्ट लॉन्च को संभालते हैं। आज भी, जब गुरतेश्वर कैरिक्स में कुछ भी कोड नहीं करते हैं, तो वे फ्रेमवर्क और आर्कीटेस्ट पर काम करते हैं। लेकिन टेक्नोलॉजी की व्यावसायिक जरूरतों को समझना उतना ही महत्वपूर्ण है - गुरतेश्वर को लगता है कि कारिक्स में उन्हें इसकी जरूरत है। 

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मोबाइल वर्ल्ड काँग्रेस में कैरिक्स टीम के साथ गुरतेश्वर सिंह

वे कहते हैं,

“मुझे लगता है कि मैं एक विशेष तकनीक की व्यावसायिक जरूरतों को समझ सकता हूं। एक टेक वाले इंसान को व्यावसायिक पहलुओं का सम्मान करना बहुत महत्वपूर्ण है। आखिरकार में, आप एक उपभोक्ता के लिए ही तो कोई प्रोडक्ट बना रहे हैं या टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं। यदि आप व्यावसायिक पहलुओं का सम्मान नहीं करते हैं, तो आप प्रोडक्ट का निर्माण जारी नहीं रख सकते।”

आज, गुरतेश्वर का मानना है कि उन्होंने आखिरकार टेक्नोलॉजी और उत्पादों के कारोबार में तालमेल और संतुलन हासिल कर लिया है, और इसे कैरिक्स में लाने में सक्षम हैं। गुरतेश्वर जो अभी भी स्टार्टअप शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं, वे कोडिंग के प्रति अपने प्यार को भूले नहीं हैं और इसे आगे भी जारी रखना चाहते हैं।


अंत में वे कहते हैं,

"मुझे लगता है कि आपको ऐसा करने के लिए इंजीनियरों की अपनी टीम को कोड या कम से कम निर्देशित तो करना चाहिए। यह किसी भी इंजीनियर की मुख्य-योग्यता है, जिस पर मैं दृढ़ता से विश्वास करता हूं। मैं 13 वर्ष की उम्र से कोडिंग कर रहा हूं, और मेरा इसे रोकने का कोई इरादा नहीं है। मैं बस व्यवसाय के पहलुओं को सीखना चाहता हूं, ताकि जब मैं फिर से स्टार्टअप शुरू करूं, तो पिछली बार के विपरीत, मैं पूरी तरह से तैयार हो जाऊं।"