जलगाँव से लेकर 3 लाख प्लस आउटलेट तक: नीलॉन्स की कहानी
स्टेटिस्टा की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) बाजार 2020 में 110 बिलियन डॉलर का था। रिपोर्ट से पता चला है कि 2012 से यह संख्या तीन गुना हो गई है और आगे जाकर, बाजार के 100 प्रतिशत बढ़कर 2021 में 220 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
1962 में स्थापित, Nilon's, एक ऐसी ही FMCG कंपनी है, जिसने इन सभी वर्षों में सर्वाइव करते हुए और प्रासंगिक बने रहते हुए, इस सेगमेंट को 110 बिलियन डॉलर का उद्योग बनते हुए देखा है।
महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में स्थित, नीलॉन्स की स्थापना सुरेश बी संघवी ने की थी। सुरेश के बेटे और दूसरी पीढ़ी के उद्यमी, दीपक सांघवी बताते हैं कि चूंकि वह किसानों के परिवार से ताल्लुक रखते थे, इसलिए सुरेश के बड़े भाई ने उन्हें खेती के अलावा अन्य रास्ते तलाशने के लिए प्रोत्साहित किया। दीपक आज निलॉन्स के प्रबंध निदेशक हैं।
योरस्टोरी के साथ बातचीत में, दीपक ने 1960 और 1970 के दशक के अंत में व्यवसाय के शुरुआती दिनों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता ने उनके घर की रसोई को एक प्रकार की निर्माण इकाई में और खाने की मेज को एक प्रयोगशाला में बदल दिया, जहाँ सभी इंग्रेडिएंट्स को चखा और परखा गया। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे जब उन्होंने 2004 में फुल टाइम के तौर पर ज्वाइन किया तो कंपनी ने मुख्य रूप से तीन मुख्य आधारों - वितरकों, खुदरा विक्रेताओं और ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करके एक प्रकार के परिवर्तन का अनुभव किया।
शुरुआती दिन
60 के दशक में, सुरेश ने जो पहला उत्पाद लॉन्च किया, वह था स्क्वैश कॉन्संट्रेट, उसके बाद जैम, टूटी-फ्रूटी, रोस्टेड सेवइयां, अचार, डिब्बाबंद फल और बहुत कुछ।
दीपक याद करते हुए कहते हैं, “उस समय हमारे पास दो कारें थीं। जब भी उत्पाद तैयार होते, मेरे पिता और चाचा एक-एक कार लोड करते और बाजारों में उसे बेचने के लिए अलग-अलग दिशाओं में जाते।”
जल्द ही कंपनी ने अपनी तीन विनिर्माण इकाइयां स्थापित कीं और यहां तक कि जापान को निर्यात करना भी शुरू कर दिया।
ऐसा 2001 में सुरेश की असामयिक मृत्यु तक चलता रहा। उस समय इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद में छात्र दीपक ने अपने चाचा के साथ आंशिक रूप से व्यवसाय की बागडोर संभाली।
एक अच्छी रणनीति तैयार करना
उन दिनों को याद करते हुए, दीपक कहते हैं कि जब भी वह अपनी क्लास अटेंड नहीं करते थे तो वह ऑफिस में पार्ट-टाइम काम करते थे। वह कहते हैं, "व्यवसाय ज्यादातर पेशेवरों के एक समूह द्वारा चलाया जा रहा था, जिन्हें मेरे पिता और चाचा ने काम पर रखा था।"
जब वे 2003 में औपचारिक रूप से व्यवसाय में शामिल हुए, तो दीपक के युवा विचारों को पहले से स्थापित टीम से अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली, और उनके सीनियर्स का रवैया अक्सर उनके हौसलों को कम कर देता था। वह कहते हैं, "हर बार जब भी मैंने कोई आइडिया सुझाया, तो मुझे यह कहते हुए चुप करा दिया गया कि इस पर पहले से ही काम किया जा चुका है और यह ठीक साबित नहीं हुआ।"
दीपक कहते हैं कि उन्होंने महसूस किया कि उन्हें अपना स्थान खोजने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, और इसलिए, पूरे 2003 में व्यापार का गहराई से अध्ययन किया। 2004 में, उन्होंने कुछ बदलाव करना शुरू कर दिया।
उन्होंने जो पहला काम किया, वह उन पेशेवरों को नियुक्त करना था जिनका अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों से संपर्क था। उन्होंने संगठन के भीतर एक 'कॉर्पोरेट कल्चर' को पेश करने का भी प्रयास किया। वह कहते हैं, “2004 से पहले, प्रत्येक कर्मचारी ठीक शाम 6 बजे निकल जाता था। एक बार जब मैंने कंपनी में प्रवेश किया, तो मैंने सुनिश्चित किया कि दिन का काम पूरा होने तक कोई भी न जाए।”
दीपक कहते हैं, '2004 में हमारा टर्नओवर करीब 8 करोड़ रुपये का था, जो कि एफएमसीजी जैसे बाजार में बहुत कम था।
फिर उन्होंने तीन प्रमुख हितधारकों - वितरकों, खुदरा विक्रेताओं और ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करके एक कदम-दर-कदम नया दृष्टिकोण अपनाना शुरू किया।
2004-2008 के बीच, टीम ने अधिक से अधिक वितरकों को जोड़ने की कोशिश की, जिन्होंने बदले में उनकी पहुंच का विस्तार करने का काम किया। इससे निलॉन्स के बी2बी (बिजनेस-टू-बिजनेस) बिजनेस को बढ़ाने में मदद मिली, जिसने कुल राजस्व में आधे से ज्यादा का योगदान दिया।
दूसरा, निलॉन्स का लक्ष्य 2008 के बाद खुदरा क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया। दीपक के अनुसार यह वही समय था जब कंपनी ने दिवंगत उद्यमी किरीट पाठक को अपनी इक्विटी का एक हिस्सा बेचकर निवेश बढ़ाया।
इससे Nilon's का विस्तार भी हुआ और अन्य श्रेणियों में विविधता आई। इस रणनीति के बारे में बताते हुए, दीपक कहते हैं, "2008 तक, हम मुख्य रूप से अचार, केचप इत्यादि जैसे ऑन-द-टेबल आइटम बेच रहे थे। धीरे-धीरे, हमने अदरक-लहसुन का पेस्ट, पेय पदार्थ आदि जैसी वस्तुओं का विस्तार किया, ताकि हमारे अधिक आइटम खुदरा स्टोर और किराना पर उपलब्ध हो सकें।”
डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर पहलुओं पर काम करके, कंपनी न केवल भारत में, बल्कि अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व में भी बिक्री शुरू करने में सक्षम थी।
भारतीय बाजार की क्षमता को भुनाना
3,500 वितरकों के नेटवर्क और तीन लाख आउटलेट्स में मौजूदगी के बावजूद, दीपक का कहना है कि भारतीय बाजार में अभी भी काफी संभावनाएं हैं। कंपनी का ध्यान निर्यात पर नहीं है, बल्कि भारतीय बाजार में गहरी पैठ बनाने पर है। निलॉन्स की प्रतिस्पर्धा में किसान, ब्रिटानिया, एचयूएल, आईटीसी, बीएल एग्रो, पंसारी ग्रुप, डाबर आदि शामिल हैं।
दीपक कहते हैं, "भारत की आबादी 1.3 बिलियन है जो एक दिन में तीन बार भोजन करती है, इसलिए टैप करने का अवसर बहुत बड़ा है।"
लेकिन ग्राहकों की नब्ज को समझने वाला एक भारतीय ब्रांड होने के बावजूद उनका कहना है कि यह बाजार ज्यादा कठिन है क्योंकि यह बेहद असंगठित है। वे कहते हैं, "अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यह काफी व्यवस्थित है इसलिए वहां घुसना काफी आसान है।"
यहीं पर दीपक का कहना है कि वह अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा देने और बाजार में गहरी जानकारी हासिल करने के लिए विनिर्माण में डेटा एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का लाभ उठा रहे हैं। वह कहते हैं, "डेटा हमें यह समझने में मदद करता है कि हम अपनी पहुंच और उपस्थिति का विस्तार कैसे कर सकते हैं आदि।"
अगले पांच साल में निलॉन्स का लक्ष्य 1,500 करोड़ रुपये की कंपनी बनने का है। इसे हासिल करने के लिए, यह 10 लाख से अधिक आउटलेट्स तक अपनी पहुंच का विस्तार करने और मार्केटिंग और विज्ञापन में निवेश करने की योजना बना रहा है (हाल ही में, इसने अभिनेता पंकज त्रिपाठी को एक ब्रांड प्रमोटर के रूप में जोड़ा)।
यह मानते हुए कि ऑनलाइन आगे का रास्ता है, ब्रांड ने अपनी खुद की वेबसाइट लॉन्च करके और छह महीने से अधिक समय पहले अमेजॉन, फ्लिपकार्ट आदि जैसे प्लेटफॉर्म पर सूचीबद्ध होकर अपना डी 2 सी (डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर) वर्टिकल भी लॉन्च किया।
Edited by Ranjana Tripathi