अडानी की कंपनी से गुजरात सरकार को हुआ 58 करोड़ का घाटा, गलत तरीके से जमीन ट्रांसफर का आरोप
गुजरात की लोक लेखा समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि गुजरात सरकार को नुकसान हुए पैसे की कंपनी से तीन महीने में भरपाई कराई जाए और जमीन का अनुचित वर्गीकरण करके राज्य सरकार को नुकसान और कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
अडानी ग्रुप की एक कंपनी को गलत तरीके से जंगल की जमीन ट्रांसफर किए जाने का आरोप लगा है और इससे गुजरात सरकार को 58 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. गुजरात की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है.
बुधवार को गुजरात विधानसभा में पेश की गई अपनी पांचवीं रिपोर्ट में PAC ने कहा कि वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा मुंद्रा पोर्ट और एसईजेड के लिए कच्छ में अडानी केमिकल्स को ट्रांसफर वन भूमि के अनुचित वर्गीकरण के कारण, कंपनी ने राज्य सरकार को 58.64 करोड़ रुपये कम का भुगतान किया.
PAC ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि गुजरात सरकार को नुकसान हुए पैसे की कंपनी से तीन महीने में भरपाई कराई जाए और जमीन का अनुचित वर्गीकरण करके राज्य सरकार को नुकसान और कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
कांग्रेस विधायक पुंज्य वंश की अध्यक्षता वाली PAC ने अपनी रिपोर्ट में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला दिया है. CAG ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जमीन के अनुचित वर्गीकरण के कारण कंपनी को 58.64 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा है.
PAC की रिपोर्ट के अनुसार, अडानी केमिकल्स लिमिटेड के एक प्रस्ताव के संबंध में, केंद्र सरकार ने 2004 में कच्छ जिले के मुंद्रा और ध्राब गांवों में क्रमशः 1,840 हेक्टेयर और 168.42 हेक्टेयर भूमि आवंटित करने की सैद्धांतिक मंजूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च, 2008 के एक फैसले में, भारत के जंगलों को छह स्थितिजन्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया. इसके साथ ही, कोर्ट ने इसका शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPV) भी तय किया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2009 में, राज्य सरकार ने मेसर्स अदानी की एक नई प्रस्तावित योजना को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के सामने पेश किया और केंद्र सरकार ने फरवरी 2009 में सैद्धांतिक मंजूरी दे दी.
वन भूमि की 6 कैटेगरीज के अनुसार, NPV तय करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, कच्छ में Eco Class II (7.30 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के एनपीवी के साथ) और Eco Class IV (4.30 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के एनपीवी के साथ) के तहत वर्गीकृत किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2008 में, भुज के वन संरक्षक ने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में पाया था कि विचाराधीन भूमि मिट्टी की थी और क्रीक क्षेत्र मैंग्रोव से भरा था. इसके बावजूद उप वन संरक्षक (कच्छ पूर्व) ने इस भूमि को Eco Class IV के तहत माना था और कंपनी से 2008.42 हेक्टेयर वन भूमि के एनपीवी के रूप में 87.97 करोड़ रुपये वसूल किए थे.
Edited by Vishal Jaiswal