सिर्फ छह देश से आता है उत्तरी प्रशांत महासागर में 90 प्रतिशत से अधिक प्लास्टिक का कचरा
शोधकर्ताओं ने 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण का दस्तावेजीकरण करना शुरू किया था. 2000 के दशक की शुरुआत में इस मुद्दे में सार्वजनिक और वैज्ञानिक रुचि बढ़ने लगी और विश्व के वैज्ञानिकों का ध्यान ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच की ओर आकर्षित हुआ. वक़्त के साथ यह भी पता लगा कि दक्षिण प्रशांत, उत्तर और दक्षिण अटलांटिक और हिंद महासागर में भी प्लास्टिक के कचरे के अधिक पैच बन रहे हैं. प्लास्टिक गार्बेज पैच समुद्र में एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां महासागर की धाराएं तैरते हुए प्लास्टिक कचरे को हजारों मील की दूरी पर भंवर की शक्ल में जमा करती जाती हैं.
समुद्र में अप्रत्याशित तरीके से व्याप्त प्लास्टिक के खतरे से हम सब वाकिफ हैं. यह समुद्री प्रजातियों के जीवन के लिए खतरनाक है. उसके साथ ही यह मानव स्वास्थ्य के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खतरनाक है. बहुत से देशों में वे समुद्री जीवों के खान-पान का हिस्सा हैं.
एक नए अध्ययन में उत्तरी प्रशांत महासागर में तैर रहे प्लास्टिक के पैच के स्त्रोत का पता लगाने का प्रयास किया गया है. यह शोध नीदरलैंड में ‘ओशन क्लीनअप प्रोजेक्ट और वैगनिंगन यूनिवर्सिटी’ के नेतृत्व में किया गया है.
शोधकर्ताओं को पता चला है कि नॉर्थ पैसिफिक गारबेज पैच (एनपीजीपी) में पाया जाने वाला 90 प्रतिशत से अधिक पहचाना गया कचरा सिर्फ छह देशों से आ रहा है. जिनमें से सभी प्रमुख औद्योगिक रूप से मछली पकड़ने वाले राष्ट्र हैं.
इस शोध की खोजों के आधार पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि एनपीजीपी में दसियों हजार टन कचरा है, जिसमें से अधिकांश प्लास्टिक है, जो लाखों वर्ग किलोमीटर में फैला है.
यह एक मेहनत भरा प्रयास है. क्यूंकि शोध का लक्ष्य कचरे के स्रोत पता लगाना था, शोधकर्ताओं ने उस क्षेत्र में पाए गए प्लास्टिक के कचरे से 6,000 टुकड़ों को एकत्र कर उनका अध्ययन किया यानि उन्होंने मलबे पर छपे शब्दों की भाषा या कंपनियों के लोगो सहित पहचानने योग्य सभी प्रतीकोंको इस्तेमाल करके पता लगाया कि कचरा आया कहाँ से है, कौन इसके लिए ज़िम्मेवार हैं.
शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके कचरे के लगभग एक तिहाई टुकड़े अज्ञात थे, वे यह पता नहीं लगा सके कि उन्होंने किस तरह के उद्देश्यों की पूर्ति की होगी या वे कहां से आए होंगे. शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि एनपीजीपी में कचरे के स्रोतों में भूमि आधारित गतिविधियों की तुलना में मछली पकड़ने के कार्यों से जुड़े उपकरणों से आने के आसार 10 गुना अधिक थे. जिससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उनके काम में पहचाने गए शीर्ष छह देशों में से सभी नियमित रूप से बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने के कार्यों से जुड़े हुए हैं.
एक साल पहले लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट और मिंडेरू फाउंडेशन के कंसोर्टियम द्वारा किये रीसर्च से यह बात सामने आई थी कि दुनिया भर में निकलने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे का 90% सिर्फ 100 कंपनियां पैदा कर रही हैं. वहीं दुनिया के आधे से ज्यादा कचरा सिर्फ 20 कंपनियां पैदा कर रही हैं और इन सभी का पेट्रोकेमिकल से जुड़ी होने की बात सामने आई थी.