ये लड़की चलाती है लड़कों के लिए ‘ब्यूटी पार्लर’
कृति को लगा कि दुनिया बदल रही है. अब वो पुराना क्लीशे नहीं रहा कि लड़की सुंदर और लड़का अमीर होना चाहिए. अब लड़कियां भी पैसे कमा रही हैं और लड़कों को भी आकर्षक दिखने की चाह है.
अपने 25वें जन्मदिन पर कृति सेठ लोनावाला में परिवार के साथ सेलिब्रेट कर रही थीं. मुंबई में पैदा हुई और पली-बढ़ी कृति अब तक इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बैचलर्स और टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट में एमबीए कर चुकी थीं. अच्छी नौकरी और सैलरी सब थी. लेकिन सिर्फ 25 की उम्र में कृति सोच रही थीं, “25 साल बाद मैं 50 की हो जाऊंगी. तो क्या तब तक भी मैं नौकरी ही करती रहूंगी.” अचानक उन्हें ऐसा लगा कि मानो उम्र हाथ से फिसली जा रही है. वक्त तेजी से भाग रहा है और अगर दूसरों की चाकरी के अलावा जिंदगी में कुछ और करना है तो यही वक्त है.
ठीक 3 साल बाद कृति ने अपनी मेहनत और सेविंग के पैसों से मुंबई के खार रोड में एक सलून खोला और नाम रखा- ‘द लेयर.’ लेकिन ये सलून बाकी सलून जैसा नहीं था. इसकी खासियत ये थी कि ये सिर्फ पुरुषों के लिए था- मेन्स एक्सक्लूसिव सलून. लेकिन लोनावाला में अपने 25वें जन्मदिन की शाम से लेकर द लेयर की शुरुआत तक की कहानी इतनी सीधी भी नहीं है. बीच में लंबे तीन साल हैं, ढेर सारी मेहनत है, तैयारी है और शुरू होते ही गाज की तरह गिरा पैनडेमिक है. कहानी थोड़ी लंबी है.
नौकरी छोड़ अपना बिजनेस करने की धुन
जन्मदिन के अगले दिन लोनावाला से लौटने के बाद कृति ने काफी सोचा और इस नतीजे पर पहुंची कि वो जो भी बिजनेस करेंगी, वो हॉस्पिटैलिटी से जुड़ा होगा. तो क्यों ने हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट का कोर्स कर लिया जाए. कोर्स करने का ख्याल आया तो यूनिवर्सिटीज की तलाश शुरू हुई.
कृति ने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया कि हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट के कोर्स में दुनिया की किन यूनिवर्सिटीज का नाम है. दो यूनिवर्सिटीज में अप्लाय किया- स्विटजरलैंड की यूनिवर्सिटी Les Roches और अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी. दोनों जगह एडमिशन भी मिल गया, लेकिन कृति ने कॉर्नेल जाने का फैसला किया.
प्रोफसर टैरेलो की क्लास
कॉर्नेल में एक प्रोफेसर थे नील टैरेलो, जो आंत्रप्रेन्योरशिप की क्लास लेते थे. कृति ने उनकी क्लास में एडमिशन लिया. प्रोफेसर टैरेलो के पढ़ाने में कुछ ऐसा जादू था कि उनकी क्लास से निकले 70 फीसदी लोगों ने बाहर दुनिया में जाकर नौकरी करने की बजाय अपना खुद का कुछ बिजनेस किया. ये अपने आप में एक रिकॉर्ड था कि आंत्रप्रेन्योरशिप की क्लास अटेंड करने वाले 70 फीसदी लोग खुद भी आंत्रप्रेन्योर बनते थे.
प्रो. टैरेलो का कृति पर काफी गहरा असर पड़ा. कृति ने अपनी इच्छा उन्हें बताई. अपना संकोच और डर भी. संकोच और डर उन्होंने दूर कर दिया. प्रो. टैरेलो की एक बात कृति के दिमाग में अटक गई थी, “तुम्हारी वायरिंग में आंत्रप्रेन्योरशिप है. तुम आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए ही पैदा हुई हो.”
ऐसा सलून हो जो सिर्फ पुरुषों के लिए हो
ग्रेजुएट होने में 3 महीने बाकी थे. इंडिया लौटकर ये सोचना था कि अब क्या बिजनेस करना है. एक दिन मार्केटिंग की क्लास में कृति ने मेन्स बार्बर शॉप के बारे में सुना. आइडिया क्लिक कर गया. अपने साथ के लड़कों से पूछा, बॉयफ्रेंड से पूछा, पापा से पूछा, “एक मेन्स एक्सक्लूसिव सलून के बारे में क्या ख्याल है.”
कृति को लगा कि दुनिया बदल रही है. अब वो पुराना क्लीशे नहीं रहा कि लड़की सुंदर और लड़का अमीर होना चाहिए. अब लड़कियां भी पैसे कमा रही हैं और लड़कों को भी आकर्षक दिखने की चाह है. ऐसा नहीं होता तो मेन्स फेयरनेस क्रीम का इतना बड़ा बाजार नहीं होता.
इतने सारे लड़कों और पुरुषों से बात करके कृति को एक बात तो समझ में आ गई थी कि लड़के सलून में सिर्फ बाल कटाने और दाढ़ी बनाने ही नहीं जाते. वो आईब्रो भी बनवाते हैं, थ्रेडिंग भी करवाते हैं, फेशियल और मसाज भी. लेकिन उनके साथ दिक्कत कुछ और ही थी.
तकरीबन सभी लड़कों और पुरुषों का एक ही जवाब था- “यूनीसेक्स तो ठीक है, लेकिन बड़ा अजीब लगता है कि आप सलून में जाओ और बगल की कुर्सी पर कोई लड़की चेहरे पर मास्क लगाकर बैठी है और मिरर में से आपको देख रही है. लड़कों को लगता है कि पार्लर जाने वाले लड़कों को लड़कियां थोड़ा जज करती हैं.” कृति के लिए ये जानना भी रोचक था कि लड़कों को भी जजमेंट का डर सताता है.
कुल मिलाकर निष्कर्ष ये निकला कि लड़के ज्यादा सहज महसूस करेंगे, अगर वे एक ऐसे स्पेस में हों, जहां उनके जैसे और लड़के ही हों.
इस तरह शुरुआत हुई द लेयर की
ये तय होने के बाद कि मेन्स एक्सक्लूसिव सलून खोलना है, अगला स्टेप था कहां और कैसे. जगह की तलाश शुरू हुई. बजट बनाया, बिजनेस प्लान तैयार किया. खोज शुरू हुई कि कहां-कहां से फंडिंग मिल सकती है. बैंकों के चक्कर लगने शुरू हुए. कुछ कृति की अपनी सेविंग थी, कुछ उनकी बहन ने इंवेस्ट किया. जब बाकी बचे पैसों के लिए वो बैंक से लोन लेने जा रही थीं तो पापा ने ऑफर कर दिया, “मुझसे ले लो, मुझे ही इंटरेस्ट समेत चुका देना.”
सिर मुड़ाते ओले पड़े
इतनी मेहनत और अरमानों से शुरू हुआ सलून शुरू होते ही बंद होने की कगार पर पहुंच गया था. फरवरी, 2020 में मुंबई के खार रोड में द लेयर की शुरुआत हुई और अगले ही महीने मार्च में लॉकडाउन लग गया. खार में जो जगह सलून के लिए ली थी, उसका किराया दो लाख रुपए था. इसके अलावा 4 स्टाफ की सैलरी एक लाख रुपए. हर महीने 3 लाख रुपए जेब से जा रहे थे और कमाई जीरो थी.
लगभग दिसंबर तक यही हाल रहा. मई में लॉकडाउन खुला भी तो लोग इतने डर चुके थे कि कोई भी पब्लिक स्पेस में जाने की हिम्मत नहीं करता था. सड़कों पर बिलकुल सन्नाटा रहता. कभी दो घंटे में कोई एक इंसान जाता दिखाई देता.
एक समय तो ऐसा भी आया कि उन्हें लगा कि अब इसे बंद ही करना पड़ेगा. सब तैयारियां भी हो गई थीं. जो महीना उन्होंने सोचा था कि आखिरी होगा, पता चला उसी महीने ढेर सारे लोग आए. 10 दिन के भीतर 90 हजार का काम मिला. एक उम्मीद जगी.
कृति कहती हैं, “हमारी सबसे बड़ी ताकत ये थी कि हमारा रीटेंशन रेट 100 फीसदी था. जो भी एक बार आता तो दोबारा लौटकर जरूर आता. मेरे सारे कस्टमर धीरे-धीरे लॉयल कस्टमर में बदल गए. और यही मेरी ताकत थी.”
बुरा वक्त अभी खत्म नहीं हुआ था. एक बार सलून अपने पैरों पर खड़ा होना शुरू हुआ कि दोबारा लॉकडाउन हो गया. इस बार कोविड की स्थिति पहले से ज्यादा भयावह थी. डेथ रेट बहुत ज्यादा था और लोगों में फैला डर भी.
सफलता की ओर बढ़ते कदम
लेकिन कोविड की दूसरी लहर के बाद जब दोबारा सलून खुला तो कृति ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया. शुरू के 8 दिनों में ही 80,000 का बिजनेस हुआ. अभी सलून को ढंग से दोबारा शुरू हुए एक साल ही हुआ है और अब हर महीने 5 से 6 लाख का बिजनेस हो रहा है. कृति का प्रोजेक्शन है कि आने वाले क्वार्टर में यह बिजनेस 10 लाख तक पहुंच जाएगा.
हालांकि उनका सपना तो और बड़ा है. द लेयर की और भी चेन खोलनी है और सिर्फ मुंबई तक सीमित नहीं रहना है. अभी कृति सिर्फ 28 साल की हैं और ये सोचकर खुश हैं कि अगले 25 साल उन्हें किसी और की नौकरी नहीं करनी पड़ेगी. 22 साल बाद जब वो 50 साल की होंगी तो शायद देश के हर बड़े शहर में एक मेन्स एक्सक्लूसिव सलून होगा, जिसका नाम होगा- ‘द लेयर.