कैसे बनी कहानियां कहने की कला रैप म्यूजिक? जानिए भारत में कब और कैसे आया रैप
रैप संगीत निर्विवाद रूप से आज अमेरिका सहित पूरी दुनिया में सबसे लोकप्रिय शैलियों में से एक है. रैप ने कई नई उप-शैलियों को जन्म दिया है, जैसे मम्बल रैप, रैपमेटल और रैपकोर. रैप ने बोली जाने वाली कविता और वाद्य यंत्रों के बीच की खाई को पाट दिया. आप डिस्को सुनें, जैज़ या रेगेटन सुनें, आपको वहां भी रैप की घुसपैठ मिलेगी. तो चलिए बात करते हैं रैप म्यूजिक के इतिहास की.
क्या है रैप?
रैप व्यापक हिप-हॉप संस्कृति का एक हिस्सा है. यह एक ख़ास डिलीवरी शैली है जिसमें तुकबंदी, ताल और बोली जाने वाली भाषा शामिल होती है, जो आमतौर पर एक ताल पर गाया जाता है.
रैप के तत्व क्या हैं?
रैप के गाने के बोल कि क्या कहा जा रहा है; उसका प्रवाह यह है कि यह कैसे तुकबंदी करता है; डिलीवरी वह स्वर और गति है जिसमें वह बोली जाती है. कह सकते हैं कि रैप एक गायन शैली है जिसमें गाने को चाल के साथ कविता जैसा गाते हैं.
रैप गायकों को रैपर भी कहा जाता है.
रैप संगीत शैली की शुरुआत कहाँ हुई?
पूर्व-ऐतिहासिक रैप संगीत की शुरुआत
यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि रैप संगीत की शुरुआत सदियों पहले पश्चिम अफ्रीका में हुई थी. इतिहासकारों का मानना है कि उस वक़्त लोग ढोल की साधारण ताल पर गाँव-गाँव जाकर अतीत की लयबद्ध कहानियाँ सुनाया करते थे, और वहीँ कैरेबियन लोक कलाकार तुकबंदी में कहानियां सुनाया करते थे. रैप के जन्म की नींव यहीं रखी गई.
जैसा की बताया गया है रैप व्यापक हिप-हॉप संस्कृति का एक हिस्सा है. हिप-हॉप, उत्पीड़ितों के संगीत का पर्याय है, जो न्यूयॉर्क, फिलाडेल्फिया और अमेरिका के अन्य क्षेत्रों में ब्रोंक्स क्षेत्र में विकसित हुआ, जिसमें अधिकांश अफ्रीकी-अमेरिकी लोग थे.
इन गीतों के बोल इस बारे में अधिक होते थे कि कैसे अफ्रीकी-अमेरिकी लोग अमेरिका में नस्लवाद के कारण, गरीब होने के कारण किस तरह की परेशानियों का सामना करते थे. नस्लवाद, गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण ये अपने अधिकांश साथियों को नशीली दवाओं की लत की बीमारी में गिरते हुए देखते थे, गैंग-वार में उलझे होते थे, और उनके लिए रैप शायद एकमात्र तरीका था, जिससे वे अपने समुदाय को परेशान करने वाले सभी मुद्दों से गुजरते हुए अपनी भावनाओं और अपने गुस्से को व्यक्त कर सकते थे.
रैप अपने गुस्से को व्यक्त करने के साथ-साथ विरोध गीतों को गाने का नाम है. जब शब्द विफल हो जाते हैं - या अथॉरिटी द्वारा जानबूझकर म्यूट कर दिए जाते हैं - और जहां असहमति के नागरिकों के अधिकारों को बाधित किया जाता है, वहां लोग संगीत का सहारा ले अपनी बात कहते हैं. रैप संगीत शैली की शुरुआत ऐसे ही हुई.
रैप संगीत का स्वर्णिम काल
रैपिंग की लोकप्रियता डीजेइंग के आने के बाद खूब बढ़ी. डीजेइंग '80 के दशक में विकसित हो चूका था और उसके साथ रैपिंग का विकास जारी रहा. इसलिए '80 के दशक के मध्य युग को हिप-हॉप के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है, जिसमें रन डीएमसी और राकिम जैसे कलाकारों ने कला के रूप की सीमाओं को आगे बढ़ाया और रैप को एक नया रूप देने में मदद की.
भारत में रैप की शुरुआत कब हुई?
बाबा सहगल ने 1990 में भारत में हिप-हॉप की शुरुआत की, और जबकि कई संगीतकारों ने उनसे पहले अपनी किस्मत आजमाई थी. बाबा सहगल के "ठंडा ठंडा पानी" गीत ने बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित किया.
2000 के दशक की शुरुआत में, बोहेमिया ने भारत को अपनी पहली महत्वपूर्ण रैप क्रांति दी. बोहेमिया की "पैसा नशा प्यार" और "स्कूल दी किताब" सोलो अल्बम ने भारतीय हिप-हॉप स्वर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पहुंचाई.
इंग्लैंड में भारतीय मूल के कलाकार जैसे हार्ड कौर, पंजाबी एमसी और कई अन्य की सफलता ने भारत में हिप-हॉप दृश्य के लिए प्रारंभिक नींव रखी. पंजाबी एमसी की 'मुंडियां तू बचके' के जे जेड के सहयोग से बने रीमिक्स संस्करण ने धूम मचा दी थी. संभवत: यह पहली बार था कि गैर-भारतीय दर्शकों को भारत के एक गीत से परिचित कराया गया, जो न तो शास्त्रीय था, न ही फिल्मी गीत. इस गीत ने हिप-हॉप में भंगड़ा को इंट्रोड्यूस किया था जो बेहद लोकप्रिय हुआ था.
इधर, पांच व्यक्तियों का एक समूह, यो यो हनी सिंह, लिल गोलू, बादशाह, रफ़्तार, और इक्का, जिन्हें एक साथ "माफिया मुंडेर" के रूप में जाना जाता है, ने बोहेमिया की लोकप्रियता से प्रभावित होकर रैप उद्योग में कदम रखा. रफ़्तार, यो यो हनी सिंह और बादशाह ने अपार सफलता पाई, इनके गाने ब्लाकबस्टर साबित हुए, बॉलीवुड द्वारा अत्यधिक फीस देकर खरीदी गई. और यही दौर था जब भारत में रैप व्यावसायिक भी हो चला था. और व्यावसायिकरण के साथ जो दिक्कतें आती हैं, रैप में भी आईं, जैसे आपत्तिजनक बोल इत्यादि.
एक दशक बाद, हम देखेंगे कि गल्ली-बॉय के साथ भारत में रैप का मिजाज़ बदलता हुआ दिखता है.
Edited by Prerna Bhardwaj