Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

डेटिंग ऐप्स, सोलमेट की तलाश और एक सिंगल समलैंगिक पुरुष

डेटिंग ऐप्स आपको इतने विकल्प देती हैं कि उसी के कारण आप ‘सिंगल' रह जाते हैं लेकिन ‘सिंगल’ होना आज़ाद होना भी है.

डेटिंग ऐप्स, सोलमेट की तलाश और एक सिंगल समलैंगिक पुरुष

Saturday September 24, 2022 , 6 min Read

बेंगलुरु की एक ऊबड़-खाबड़ सड़क. फ़ॉर्म्युला वन कार की तरह उड़ता एक ऑटोरिक्शा. अपनी जान को गड्ढों और मैनहोल्स के हिचकोलों के बीच बमुश्किल अपने सीने से बांध कर, मैं किसी तरह सीट पर टिके रहने की कोशिश कर रहा था. खुद को संभाले रखना क्या कम मुश्किल काम था जो मैंने मोबाइल की स्क्रीन पर गूगल मैप देखने की मशक़्क़त और शुरू कर दी. अचानक लगा एक लेफ्ट टर्न छूटने को है. हड़बड़ी में मेरे मुंह से निकला, “अन्ना, प्लीज स्वाइप लेफ्ट!”

‘स्वाइप’ शब्द का इस तरह अचानक मेरे मुंह से निकल जाना खुद मुझे थोड़ा हैरान कर गया. डेटिंग एप्स पर मैं क्या इतना वक़्त बिताने लगा हूँ कि मेरा अवचेतन मेरे साथ खेल करने लगे, कि अनजाने ही सही पर मैं एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर से रिजेक्शन की गुज़ारिश कर बैठूं! रिजेक्शन का पता नहीं पर अन्ना मेरी रेटिंग तो ख़राब कर ही सकता है. और यही तो डेटिंग ऐप्स भी मेरी ज़िंदगी के साथ करती आयी हैं.

देश के सबसे मॉडर्न और लिबरल माने जाने वाले इस शहर में एक गे पुरुष के तौर पर मैंने कई बार इस सवाल का सामना किया है, “35 साल का एक कमाऊ लड़का आखिर अबतक सिंगल क्यों है?!

मेरा जवाब एकदम सिंपल है. डेटिंग एप्स की वजह से. और कोई कारण नहीं. कुछ ज़्यादा ही मैच मिलाने वाले आ गए हैं.

ग़लत मत समझिएगा. मुझे डेटिंग ऐप्स पसंद हैं. मैं आदिकाल से इनका इस्तेमाल करता आया हूँ. मैंने जाने कितनों को मैच और अनमैच किया है और कईयों को तो एक डेटिंग एप पर अनमैच करने बाद किसी दूसरी डेटिंग ऐप पर मैच भी किया है. ये थोड़ी अजीब बात लग सकती है मगर मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है क्योंकि किसी को एक ऐपपर अनमैच करके दूसरी पर मैच करने वाला मैं कोई अकेला नहीं हूं.

यक़ीन मानिये, क़सूर मेरा नहीं, इन ऐप्स का ही है.

इन ऐप्स की सुपरपावर जानते हैं क्या है? इनकी सुपरपावर यह नहीं है कि ये आपको प्यार और साथी दिलाने का वादा करती हैं. इनकी सुपरपावर है आपके हाथ में आई सत्ता. किसी को भी महज़ एक स्वाइप से एक्सेप्ट या रिजेक्ट करने की सत्ता.

मैं एक ऐसे शहर में बड़ा हुआ जहां गे होने को स्वीकार करना तो दूर, हमें ‘होमोसेक्शुअल’ और ‘गे’ शब्दों के अर्थ तक नहीं थे. मेरे जैसे व्यक्ति के लिए खुलकर किसी को चाह पाना एक चुनौती थी. और अगर आप किसी पुरुष को चाह भी लेते तो उसको ये बता पाना कि आप उसे पसंद करते हैं, न आसान था न मुझे करना आता था. उन दिनों सबसे ‘अलग’ होने का सीधा मतलब यह लगाया जाता था कि आप ‘नॉर्मल’ नहीं हैं. अंततः आप खुद को समझा लेते थे कि किसी को चाहना ही नहीं है. यानि ‘सिंगल’ रहना है.

मगर अब ज़माना बदल रहा है. डेटिंग ऐप्स के चलते आप अपने जैसे लोगों को खोज सकते हैं, उनसे ‘मैच’ कर सकते हैं.

जब मैंने पहली बार डेटिंग ऐप्स की दुनिया में कदम रखा, मैं खुद के बारे में जान रहा था. मैं किसी भी अन्य गे पुरुष की तरह ‘क्लोज़ेटेड’ था. कहीं भी अपना असली नाम और असली तस्वीर इस्तेमाल नहीं करता था. डेटिंग साइट्स पर रजिस्टर होने के लिए अपने बारे में बताना पड़ता है. मैं अपने बारे में कुछ भी गोलमोल लिख देता था कि रजिस्ट्रेशन हो जाए और मैं अपने जैसे पुरुषों को खोज पाऊँ.

मेरे लिए ये बिल्कुल अलग दुनिया थी. लोगों के बारे में पढ़ो, उनकी तस्वीरें देखो, ‘आदर्श पुरुष’ की जो तस्वीर अपने मन में खींच रखी है, उससे उनकी तुलना करो और फिर उंगली की एक छुअन से अपना फैसला सुना दो. हां, स्वाइप राइट. ना, स्वाइप लेफ्ट.

मगर तकलीफदेह ये है कि जिस तरह आप उन्हें जज कर रहे होते हैं, वो भी आपको जज कर रहे होते हैं. नतीजा ये होता है कि जो आपको पसंद आते हैं वो आपको स्वाइप के इस पार इंतज़ार करता हुआ छोड़ देते हैं. वो भी आपको राइट स्वाइप करें तो बात आगे बढ़े ना. कुछ का इंतज़ार तो मैं आज भी कर रहा हूं.

बस इस एक असुविधा के अलावा, सब चंगा. भला हो इन डेटिंग ऐप्स का कि मैं कई डेट्स पर गया और तमाम मज़ेदार लोगों से मिला. कभी कॉफ़ी, कभी बियर, कभी डिनर और कभी फ़िल्में देखने के लिए. कुछ के साथ मैं आज भी टच में हूं और कुछ की ज़िंदगी से या तो मैं छूमंतर हो गया या वो मेरी ज़िंदगी से ग़ायब हो गए. इन ऐप्स का यूएसपी ही यही है, आपके लिए ‘सही’ मैच खोजना. जब तक वो न मिले, आप राइट स्वाइप करते रहते हैं. सचाई यह है कि कोई और बेहतर भी मिल सकता है इसकी जुनूनी तलाश ही आपको उस एक तक नहीं पहुँचने देती जो आपको लगता है आपके लिए ‘सही’ होगा.

ये क्या विडंबना है न, कि जिस ‘सिंग्लत्व’ से निपटने के लिए आप जिन ऐप्स की शरण में जाते हैं, वही ऐप्स आपके सिंगल होने की वजह बन जाती हैं. हां मैं सिंगल हूं, पर उदास नहीं. हां मैं सिंगल हूं, लेकिन मेरे पास विकल्प हैं.

जैसे ‘सोशल मीडिया एंग्जायटी डिसऑर्डर’ (SMAD) होता है. वैसा ही कुछ ‘डेटिंग ऐप एंग्जायटी डिसऑर्डर’ (DAAD) भी होना चाहिए. जो एक ऐसे एडिक्शन को परिभाषित करे जिसमें आप लगातार एक नोटिफिकेशन की चाह में फोन देखते रहें या तबतक स्वाइप करते रहें जबतक स्वाइप करने को कुछ भी न बचे.

DAAD का ये मामला बड़ा अजीब है. आप ठीक उसी जूनून से स्वाइप करने लगते हैं जिस जूनून से आप ‘क्रेड’ पर कॉइन कलेक्ट करते हैं या अपना क्रेडिट स्कोर बढ़ाने में लगे रहते हैं. कई बार आप इतने सारे लोगों से एक साथ संवाद कर रहे होते हैं कि खुद ही इसमें उलझकर फंस जाते हैं. मेरे जीवन में वो भी दिन आया है जब मैंने किसी को किसी और नाम से पुकार दिया. या फिर बेचारे को उसके एक्स के नाम से पुकार दिया (दरसल, ये एक ऐसे ग्रुप का हिस्सा होने के नुकसान हैं जो अपने आप में बहुत छोटा है). इसलिए, मैं सिंगल हूं.

सिंगल हूं, लेकिन इस सच के साथ कि मैं जानता हूं कि मैं कौन हूं. इस बोध के साथ कि मुझे कौन अच्छा लगता है और कौन नहीं. इस विश्वास के साथ कि मैं आज़ाद हूं.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि डेटिंग ऐप्स ने होमोसेक्शुअल लोगों की मदद की है. ऐप पर महज़ ये ऑप्शन होना कि मैं लड़का होकर लड़के या लड़की होकर लड़की की तलाश में हूं, एक स्वीकार्यता का बोध लेकर आता है. और ये भरोसा दिलाता है कि मुझे कोई ज़रूर मिलेगा.

आख़िर में यही कि हम सब उस आकस्मिक संयोग का इंतज़ार करते रहते हैं जो या तो हमें अचानक-से हमारे ‘सोलमेट’ से मिला देगा या जब हमें किसी से पहली ही नज़र का इश्क हो जाएगा.

यकीन मानिए, राइट स्वाइप से अपना प्रेमी पा जाना भी वैसा ही एक संयोग होता है.