93 साल पहले कैसे हुई थी Parle की शुरुआत, आज है भारत के हर घर का हिस्सा
पारले की कन्फैक्शनरी बनाने की पहली फैक्ट्री की शुरुआत 1929 में केवल 12 लोगों से हुई थी.
भारत में पारले (Parle) किसी के भी लिए अनजान नाम नहीं है. हर घर में इसका कोई न कोई प्रॉडक्ट मिल ही जाएगा, फिर चाहे वह टॉफी हो, बिस्किट हो, केक हो, पानी हो या फिर फ्रूटी या एप्पी जैसे ड्रिंक्स. पारले प्रॉडक्ट्स की ओरिजिनल कंपनी 'हाउस ऑफ पारले' (House of Parle) थी, जिसकी शुरुआत 1928 में हुई लेकिन कन्फैक्शनरी बनाने की पहली फैक्ट्री 1929 में शुरू हुई. बाद में ओरिजिनल कंपनी तीन अलग-अलग कंपनियों में बंट गई. पारले पहली भारतीय फूड कंपनी है, जिसे लगातार 4 सालों तक मॉन्डे सिलेक्शन अवॉर्ड्स मिले. आइए जानते हैं इसी पारले के सफर के बारे में....
हाउस ऑफ पारले को मोहनलाल दयाल चौहान ने 1928 में शुरू किया था. वह स्वदेशी मूवमेंट से काफी प्रभावित थे. चौहान फैमिली सिल्क के व्यापार में थी. लेकिन फिर मोहनलाल ने कन्फैक्शनरी बिजनेस में उतरने का फैसला किया. मोहनलाल, कन्फैक्शनरी मेकिंग की कला को सीखने के लिए जर्मनी भी गए थे, जब वह लौटे तो उनके साथ जरूरी मशीनरी भी थी, जिसे वह 60000 रुपये में इंपोर्ट करके भारत लाए थे.
केवल 12 लोगों से शुरू की फैक्ट्री
पारले की कन्फैक्शनरी बनाने की पहली फैक्ट्री की शुरुआत 1929 में केवल 12 लोगों से हुई थी. दरअसल एक पुरानी फैक्ट्री को मोहनलाल ने खरीदकर रिफर्बिश किया था. जिन 12 लोगों से शुरुआत हुई, वे फैमिली मेंबर ही थे. अपनी क्षमता और योग्यता के अनुरूप इनमें से कोई इंजीनियर था, कोई मैनेजर था और कोई कन्फैक्शनरी मेकर था. फैक्ट्री मुंबई के विले पार्ले में थी, इसलिए इसी इलाके के नाम पर कंपनी का नाम पारले रखा गया. कंपनी का पहला प्रॉडक्ट एक ऑरेंज कैंडी थी.
1938 में आया पहला बिस्किट
पारले ने साल 1938 में अपना पहला बिस्किट पारले ग्लूको लॉन्च किया. पारले ग्लूको बिस्किट लगातार 12 वर्षों तक भारत में बेस्ट सेलिंग बिस्किट रहा. बाद में यही बिस्किट 'पारले जी' कहलाया. कंपनी ने 1981-85 के बीच बिस्किट का नाम बदला. पारले जी में 'जी' का मतलब है ग्लूकोज. 1982 में Pare-G का पहला टीवी कमर्शियल आया. 2001 में पहली बार कंपनी, पारले-जी को कागज की पैकिंग के बजाय नई प्लास्टिक रैपर पैकिंग में लेकर आई.
मोनैको, किसमी और पॉपिन्स की एंट्री
1941-45 के बीच पारले ने अपना पहला सॉल्टेड क्रैकर मोनेको लॉन्च किया. 1946-50 के बीच पारले ने भारत का सबसे लंबा ओवन क्रिएट किया. यह 250 फीट लंबा था. इसके बाद 1956 में चीजी स्नैक्स चीजलिंग्स को लॉन्च किया गया और 1963 में किसमी ने मार्केट में दस्तक दी. यह टॉफी आज भी बिक रही है. इसके बाद 1966 में कंपनी पॉपिन्स को लेकर आई. इसके बाद 1966-70 के बीच पारले जेफ्स को उतारा गया.
जब तीन हिस्सों में बंटी ओरिजिनल पारले
ओरिजिनल पारले कंपनी, आज तीन अलग-अलग कंपनियों में बंटी हुई है. ये तीन कंपनियां हैं- पारले प्रॉडक्ट्स, पारले एग्रो और पारले बिसलेरी. इनका स्वामित्व चौहान परिवार के लोगों के पास ही है. बिसलेरी, वेदिका, Limonata, Fonzo, Sypci, बिसलेरी सोडा आदि पारले बिसेलरी के ब्रांड हैं. Maaza, थम्स अप, लिम्का, सिट्रा और गोल्ड स्पॉट भी पहले पारले बिसेलरी के ही ब्रांड थे. 1993 में कोका कोला ने इन्हें खरीद लिया. पारले बिसलेरी कंपनी का नाम पहले पारले ग्रुप था.
वहीं एप्पी फिज, बी फिज, फ्रूटी, बैले, स्मूद आदि पारले एग्रो के ब्रांड हैं. पारले प्रॉडक्ट्स के प्रॉडक्ट्स में पारलेजी, 20-20 कुकीज, क्रैकजैक, मोनैको, हैप्पी हैप्पी, मिलानो, पारले आटा, पारले रस्क, हाइड एंड सीक, मिल्क शक्ति, जिंग, कच्चा मैंगा बाइट, किसमी, मैलोडी आदि शामिल हैं.
भारत की पहली मैंगो कैंडी
पारले प्रॉडक्ट्स को पहली बार 1971 में मॉन्डे सिलेक्शन अवॉर्ड मिला. 1972 में कंपनी अपना स्वीट व सॉल्टी बिस्किट क्रैकजैक लेकर आई. 1983 में पारले ने चॉकलेटी मेलोडी को लॉन्च किया और 1986 में मैंगो बाइट को. मैंगो बाइट भारत की पहली मैंगो कैंडी थी. इसके बाद 1996 में पारले ने हाइड एंड सीक चॉको चिप कुकी लॉन्च किया. 1991-2000 के दौरान कंपनी भारत के बाहर भी ग्रो करने लगी. इसके बाद साल 2000 में पारले ने 20-20 बटर कुकीज और मैजिक्स लॉन्च किए. साल 2011 में पारले प्लैटिना ने मार्केट में दस्तक दी. इसके बाद साल दर साल पारले प्रॉडक्ट के कई अन्य प्रॉडक्ट्स ने बाजार में दस्तक दी.
कंपनी की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, कंपनी की भारत के बाहर कैमरून, नाइजीनिया, घाना, इथोपिया, केन्या, आइवरी कोस्ट, मैक्सिको और नेपाल में भी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं. इस वक्त पारले प्रॉडक्ट्स की 150 से ज्यादा प्रॉडक्ट रेंज हैं और कंपनी 21 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट करती है. पारले प्रॉडक्ट्स के उत्पाद अमेरिकी, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और मध्य पूर्व में बिक रहे हैं.
पारले बिसलेरी का सफर
पारले बिसलेरी यानी पारले ग्रुप की कमान 1949 में अस्तित्व में आने के बाद जयंतीलाल चौहान के हाथ में आई. उन्होंने सॉफ्ट ड्रिंक बनाना शुरू किया. 1951 में गोल्ड स्पॉट, 1971 में लिम्का, 1974 में माजा, 1978 में थम्स अप को उतारा गया. 1969 में कंपनी ने इटैलियन एंटरप्रेन्योर Signor Felice Bisleri से बिसलेरी लिमिटेड को खरीद लिया. 1991 में बिसलेरी को 20 लीटर पैक में लॉन्च किया गया. साल 2000 में इसकी 1.2 लीटर बोतल लॉन्च हुई और पैकेजिंग 2006 में ब्लू से ग्रीन की गई. 2011 में क्लब सोडा, 2012 में वेदिका और 2016 में Limonata, Fonzo, Sypci और पिना कोलाडा को लॉन्च किया गया. 2018 में कंपनी ने मिनरल वॉटर के लिए दुनिया का पहला वर्टिकल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लॉन्च किया. 2020 में बिसलेरी की ऑर्डर ऑनलाइन और डोरस्टेप डिलीवरी सर्विस को शुरू किया गया. 2021 में कंपनी ने हैंड प्योरिफायर्स उतारे. इस वक्त पारले बिसलेरी, Bisleri International के नाम से जानी जाती है.
पारले एग्रो
पारले एग्रो ने अपने ऑपरेशंस 1984 में शुरू किए. कंपनी ने बेवरेजेस से शुरुआत की और बाद में बॉटल्ड वॉटर, प्लास्टिक पैकेजिंग और कन्फैक्शनरी में बिजनेस को डायवर्सिफाई किया. पारले एग्रो का पहला उत्पाद फ्रूटी था, जिसे 1985 में लॉन्च किया गया. इसके बाद 1986 में एप्पी क्लासिक, 2005 में एप्पी फिज को उतारा गया. कंपनी का Bailley सोडा 2010 में आया, वहीं Bailley पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर भी मार्केट में है. 2008 में बेक्ड स्नैक्स हिप्पो को लाया गया.
पारले एग्रो की एक्सपोर्ट डिवीजन कनाडा, अमेरिका, कोस्टा रिका, नॉर्वे, ब्रिटेन, आयरलैंड, जॉर्डन, घाना, कैमरून आदि समेत 50 से ज्यादा देशों को पैट बॉटल्स की सप्लाई करती है. इस वक्त कंपनी की 84 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट और 18 लाख आउटलेट हैं.
पारले ब्रांड को लेकर झगड़ा भी हुआ
वैसे तो ओरिजिनल पारले से अस्तित्व में आईं तीनों कंपनियों की प्रतिस्पर्धा एक दूसरे से नहीं रही लेकिन पारले ब्रांड के इस्तेमाल को लेकर विवाद रह चुका है. तीनों कंपनियां फैमिली ट्रेडमार्क पारले का इस्तेमाल कर रही हैं. विवाद तब पैदा हुआ, जब पारले एग्रो ने कन्फैक्शनरी बिजनेस में डायवर्सिफाई किया और पारले प्रॉडक्ट्स की प्रतिद्वंदी बन गई. फरवरी 2008 में पारले प्रॉडक्ट ने पारले एग्रो के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया कि वह कन्फैक्शनरी प्रॉडक्ट्स में प्रतिस्पर्धा करने के लिए पारले ब्रांड का इस्तेमाल कर रही है. मुकदमे के बाद पारले एग्रो ने ऐसे नए डिजाइन के साथ कन्फैक्शनरी प्रॉडक्ट लॉन्च किए, जिसमें पारले ब्रांड नेम नहीं था. इसके बाद 2009 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि पारले एग्रो, पारले ब्रांड नाम के तहत या पारले कॉन्फी के तहत अपने कन्फैक्शनरी ब्रांड की बिक्री कर सकती है, लेकिन शर्त यह रहेगी कि स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित रहे कि प्रॉडक्ट एक अलग कंपनी से ताल्लुक रखता है, जिसका पारले प्रॉडक्ट्स से कोई लेनादेना नहीं है.
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