एक समय सुसाइड करने के बारे में सोच रहा था कपल, आज कर रहा 2 करोड़ से अधिक का कारोबार
गले तक कर्ज में डूबने वाले इस कपल के स्टार्टअप का आज है 2 करोड़ का टर्नओवर....
मिलें उस शादीशुदा जोड़े से, जो इको-फ्रेंडली बंबू (बांस) से घर और रीसाइकल प्लास्टिक के कचरे से फुटपाथ बनाता है। पर्यावरण के मोर्चे पर अच्छा काम करने के साथ-साथ ये किसानों और कारीगरों को रोजगार भी दे रहा है। अच्छी बात तो ये है कि बंबू हाउस इंडिया 2 करोड़ रुपये का कारोबार भी कर रहा है।
सब दिन होत न एक समाना, यह बात प्रशांत और अरुणा पर एकदम फिट बैठती है। एक समय सुसाइड तक करने की सोचने वाले इस कपल के स्टार्टअप का आज कारोबार 2 करोड़ रुपये से अधिक है। बात कुछ इस तरह से शुरू होती है, प्रशांत लिंगम और अरुणा कपागंटुला शादी के बाद घर बसाने का सामान खरीद रहे थे। उन्हें इको-फ्रेंडली फर्नीचर की तलाश थी। यहीं से उन्हें 2006 में बंबू हाउस इंडिया शुरू करने का आइडिया आया।
यह शादीशुदा जोड़ा इको-फ्रेंडली बंबू (बांस) से घर और रीसाइकल प्लास्टिक के कचरे से फुटपाथ बनाता है। पर्यावरण के मोर्चे पर अच्छा काम करने के साथ-साथ यह इस प्रक्रिया में शामिल किसानों और कारीगरों को रोजगार भी दे रहा है। आज बंबू हाउस इंडिया 2 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है।
सफलता की मुश्किल राह
हालांकि, प्रशांत पुराने दिनों को याद करके बताते हैं कि उनका यह सफर आसान तो कतई नहीं रहा है। प्रशांत और अरुणा को शुरुआत में अपना कारोबार शुरू करने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वे राज्य के सख्त कानूनों के चलते आसानी से बांस नहीं खरीद सकते थे। इसके कारण उनका कारोबार 2010 तक उनकी उम्मीदों के मुताबिक उड़ान भी नहीं भर रहा था।
उस वक्त पति-पत्नी पर बहुत कर्ज हो गया और वे एक समय के खाने तक के मोहताज थे। उन्हें एक वक्त के खाने का जुगाड़ करने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। प्रशांत अपनी दुखभरी दास्तान बताते हुए कहते हैं कि इस दौरान उनके परिवार में कुछ लोगों का स्वर्गवास हो गया था। उन्हें तीन वर्षों तक कोई कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं मिला। इन सबके चलते उनके सिर पर 60 लाख रुपये का कर्ज हो गया।
प्रशांत और अरुणा इतने परेशान हो गए थे कि वे आत्महत्या तक करने की सोचने लगे थे। हालांकि, उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगाकर आखिरी कोशिश करने का फैसला किया। अरुणा ने अपने गहने बेच दिए। उनके पास जो भी संपत्ति बची थी, उसे पैसे उधार लेने के लिए गिरवी रख दिया। इस बार किस्मत ने उनका साथ दिया और जल्द ही चीजें बदलने लगीं।
हैदराबाद में एक स्कूल के प्रिंसिपल ने बंबू पेंटहाउस बनाने के अनुरोध के साथ प्रशांत और अरुणा से संपर्क किया। इस काम की वजह से कपल की कई लोगों से भी जान पहचान बढ़ी। बंबू की क्वॉलिटी और शिल्प कौशल को देखकर कई लोग ऑर्डर देने लगें।
खुशहाल भविष्य
13 साल पुरानी बंबू हाउस इंडिया ने जब एकबार कामयाबी की राह पर चलना शुरू किया तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्रशांत और अरुणा ने कंपनी को पूरे देश में पहचान दिलाई। बांस के घर कंक्रीट के मुकाबले सस्ते भी पड़ते हैं।
उदाहरण के लिए, बांस का घर बनाने में प्रति वर्ग फुट जहां 500-700 रुपये खर्च होते हैं, वहीं कंक्रीट का घर बनाने में प्रति वर्ग फुट 1500–2500 रुपये तक की लागत आती है। इसके अलावा बांस का घर एयर कंडीशनिंग की जरूरत भी खत्म कर देता है क्योंकि इसमें तापमान तीन से चार डिग्री तक नीचे चला जाता है।
प्रशांत और अरुणा ने प्लास्टिक खतरे के खिलाफ भी मजबूत रुख अपनाया है। वे इसका इस्तेमाल आम लोगों के आधारभूत सुविधाओं (शौचालय, बाथरूम) के साधन बनाने में करते हैं। मिसाल के तौर पर, उन्होंने 2013 में हैदराबाद में प्लास्टिक की बोतलों के साथ एक पूरा घर बनाया था।
अपनी पहल के बारे में द न्यूज मिनट से बात करते हुए प्रशांत ने बताया,
'हमने 2018 में एक पार्क के लिए कुकटपल्ली में एक ऑफिस बनाया था। उसे बनाने में आधे प्लास्टिक और आधे बांस का इस्तेमाल किया गया था। यहां तक कि हमने ऑफिस का फ्लोर यानी फर्श भी प्लास्टिक से बनाया था। इसके बाद हमने मियापुर में पार्किंग काउंटर पर मेट्रो स्टाफ के लिए एक घर बनाया, जहां फर्श को छोड़कर पूरा स्ट्रक्चर प्लास्टिक से बना था। हमारे आइडिया से लोग प्रभावित हो रहे हैं और इसे हाथोंहाथ ले रहे हैं। हालांकि, कई लोग ऐसे घरों के टिकाऊपन को लेकर शंका करते हैं।'
फिलहाल, बंबू हाउस इंडिया आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु पर फोकस कर रहा है। हैदराबाद में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास में उनका काम देखा जा सकता है। प्रशांत और अरुणा ने हैदराबाद के गूगल ऑफिस में एक बोटहाउस भी बनाया है। दोनों ने हाल ही में महाराष्ट्र में काम करना शुरू किया है।
इस कपल का मकसद एक स्थायी भविष्य का निर्माण करना है। यह कपल रीसाइकल होने लायक प्लास्टिक पर भी फोकस करके कचरा बीनने वालों की मदद कर रहा है।
प्रशांत कहते हैं,
'हम स्कूल-कॉलेजों में लेक्चर देने के अलावा युवाओं से अपील करके जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।'
प्रशांत रीसाइकल्ड प्लास्टिक से वॉशरूम, फर्नीचर और ऑफिस बनाने की भी योजना बना रहे हैं।