साइंस और टेक में भारत के इतिहास को किया जाएगा संकलित, ICHR और ISRO ने उठाई जिम्मेदारी
November 29, 2022, Updated on : Tue Nov 29 2022 09:33:01 GMT+0000

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भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) ने भारतीय अंतरिक्ष अनंसुधान संगठन (इसरो) के सहयोग से ‘भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास’ संकलित करने की परियोजना पर काम शुरू कर दिया है. परिषद के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.
आईसीएचआर के सदस्य सचिव प्रो. उमेश अशोक कदम ने कहा, ‘‘इस बारे में इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के साथ चर्चा हुई है और जल्द ही इस संबंध में ‘कंसेप्ट नोट’ (परिकल्पना दस्तावेज) भेजा जायेगा.’’ कदम ने कहा, ‘‘भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इतिहास का संकलन छह खंडो में तैयार किया जायेगा, जिसमें से दो खंड प्राचीन इतिहास, दो खंड मध्ययुगीन और दो खंड आधुनिक काल से जुड़े होंगे.’’
उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत अगले पांच महीने के लिये शिक्षा मंत्रालय से 25 लाख रुपये की राशि मंजूर हो गयी है तथा इस परियोजना में वैज्ञानिकों, इतिहासकारों के अलावा विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों को शामिल किया जा रहा है.
इस बीच, कदम ने यह भी बताया कि आईसीएचआर ने भारतीय परिप्रेक्ष्य में ‘भारत का समग्र इतिहास’ लिखने की एक व्यापक परियोजना शुरू की है, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों में तथा स्थानीय भाषाओं में मौजूद सामग्रियों, संदर्भों एवं जानकारियों को शामिल किया जायेगा.
उन्होंने कहा कि भारत का एक समग्र इतिहास अभी मौजूद है, लेकिन इस पर मध्याकालीन इस्लामिक एवं औपनिवेशिक तथा आजादी के बाद के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का प्रभाव है.
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे में भारत का समग्र इतिहास लिखने की परियोजना शुरू की गई है. इस परियोजना पर पांच करोड़ रुपये लागत आएगी. इसके लिये शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में पांच महीने के वास्ते 22 लाख रूपये जारी कर दिया है.
कदम ने बताया, ‘‘इसे कई खंडों में तैयार किया जायेगा. इसका पहला खंड अगले पांच महीने में तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है. पहला खंड 22 मार्च 2023 को जारी करने का लक्ष्य लेकर इस पर काम किया जा रहा है.’’
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत शुक्रवार को कहा था कि भारत अपनी विरासत का जश्न मनाकर और औपनिवेशिक काल के दौरान साजिश के तहत लिखे गए इतिहास के पन्नों में खोए अपने गुमनाम बहादुरों को याद करके अपनी पिछली गलतियों को सुधार रहा है.
कदम ने बताया कि परिषद ‘भारतीय संस्कृति एवं इतिहास से संबंधित स्थानीय भाषा स्रोतों पर डिजिटल ग्रंथालय’ तैयार करने पर भी काम कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत के अनेक कस्बों में स्थानीय भाषाओं में इतिहास से जुड़ी समृद्ध जानकारी, संदर्भ और सामग्री मौजूद है. ये प्राचीन तेलुगू, तमिल, प्राकृत, मगही, कश्मीरी, ब्रज सहित अनेक स्थानीय भाषाओं में मौजूद हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ निजी संगठनों एवं पुस्कालयों के पास भी ऐसी सामग्रियां उपलब्ध हैं और ऐसे में इन सभी को एकत्र करके डिजिटल रूप में आईसीएचआर की वेबसाइट पर डाला जायेगा ताकि भविष्य के लिये संदर्भ रहें.
आईसीएचआर के सदस्य सचिव ने बताया कि परिषद ने इस उद्देश्य के लिये सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज ऑन मराठा, शिवाजी विश्वविद्यालय, चौपासनी शिक्षा समिति, जोधपुर, मिथिक सोसाइटी बेंगलुरू सहित कुछ अन्य संस्थानों के साथ आशय पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं.
उन्होंने कहा कि इतिहास लेखन में असम के अहोम राजवंश, दावणगेरे के यादव राजवंश, राष्ट्रकूट राजवंश, कदम राजवंश, चेर राजवंश, मराठा एवं कश्मीर से जुड़े राजवंश के विभिन्न कालखंड के इतिहास पर खास ध्यान दिया जा रहा है. कदम ने बताया कि इसमें आईसीएचआर की भूमिका राजनीतिक नहीं है बल्कि अकादमिक दृष्टि से वास्तविकता को पेश किया जा रहा है.

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Edited by Vishal Jaiswal
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