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IIT हैदराबाद ने किया बड़ा अविष्कार, दिल की बीमारियों का जल्दी से पता लगाएगा ये बायोसेंसर

IIT हैदराबाद ने किया बड़ा अविष्कार, दिल की बीमारियों का जल्दी से पता लगाएगा ये बायोसेंसर

Tuesday August 27, 2019 , 3 min Read

"IIT हैदराबाद ने हाई स्पीड, सेंसिटिविटी और रिलायबिलिटी के साथ हृदय रोग का पता लगाने के लिए एक बायोसेंसर डिवाइस विकसित की है।"



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सांकेतिक फोटो



भारत में हेल्थकेयर हमेशा चिंता का विषय रहा है। 1.3 बिलियन से अधिक आबादी वाले भारत देश में बुनियादी स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना काफी चुनौती भरा रहता है। डेटा से पता चलता है कि 2015 में भारत में अकेले दिल के दौरे के कारण 2.1 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। सीवीडी या हृदय रोग (cardiovascular) एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसका अगर प्रारंभिक अवस्था में पता चल जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है।


इस समस्या से निपटने और सीवीडी व दिल से जुड़ी अन्य बीमारियों के शुरुआती चरणों का पता लगाने के लिए, IIT हैदराबाद ने हाई स्पीड, सेंसिटिविटी और रिलायबिलिटी के साथ हृदय रोग का पता लगाने के लिए एक बायोसेंसर डिवाइस विकसित की है।


यह रिसर्च दुनिया भर के विभिन्न संस्थानों के सहयोग से की गई थी। आईआईटी हैदराबाद के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रमुख प्रोफेसर रेणु जॉन इस रिसर्च की हेड थीं। अन्य बीमारियों का पता लगाने के लिए भी इस रिसर्च को आगे बढ़ाया जा सकता है। यह बायोमार्कर / एंटीबॉडी के प्रकार को अलग करके प्राप्त किया जा सकता है, जो बायोसेंसर में इंटीग्रेटेड नैनोस्फेयर से जुड़ा हुआ है।


शोध पर बात करते हुए, प्रोफेसर रेणु ने कहा,

“बायोमार्कर जैविक अणु हैं जो स्वास्थ्य और रोग अवस्था के बारे में बताते हैं। वे स्पेसिफिक केमिकल होते हैं जो शरीर की किसी खास अवस्था में खास किस्म के जैविक अणुओं का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, ह्रदय से जुड़ी बीमारी होने पर ‘कार्डियक ट्रोपोनिन’ या cTns नाम के जैविक अणुओं का निर्माण होता है। ‘कार्डियक ट्रोपोनिन’ अणु हमारे खून में मौजूद एंडीबॉडीज से जुड़े रहते हैं। इनकी मौजूदगी ह्रदय से जुड़ी बीमारी का सबूत है।"


वह बताती हैं,

"बायोसेंसर वे उपकरण होते हैं जो एक ट्रांसड्यूसर के साथ सेंसिंग एलिमेंट (जैसे एंटीबॉडी) को संयोजित करते हैं जो एंटीबॉडी के इंट्रैक्शन को एक इलेक्ट्रिकल या ऑप्टिकल हलचल में परिवर्तित करता है और इससे बीमारी की स्थिति का पता चल जाता है। परम्परागत बायोसिंग में एलिसा (ELISA), केमिलामाइनसेंट इम्युनोसे, और रेडियोम्युनोसे जैसी तकनीक शामिल हैं।"


ये बायोसेंसर हमारी रोज की इस्तेमाल की जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस में इंटीग्रेट पारंपरिक सेंसर की तरह नहीं हैं। बल्कि ये वो बायोसेंसर हैं जो करोड़ों लीटर के तरल पदार्थ की एक छोटी मात्रा से भी निपट सकते हैं। ये माइक्रोफ्लुइड-बेस्ड बायोसेंसर नैनो मैटेरियल्स के साथ इंटीग्रेट होते हैं जो मनुष्य के एक बाल की मोटाई से लाखों गुना छोटे होते हैं।


ये नैनो मैटेरियल बायोसेंसर को एक ऑप्टिकल या इलेक्ट्रिकल सिग्नल में जैव रासायनिक प्रतिक्रिया में परिवर्तित करने में सक्षम बनाती हैं, जिससे यह हृदय रोगों का पता लगाने के लिए एक प्रभावी उपकरण बन जाता है।