जो कंपनियां अपनी सप्लाय-चेन व्यवस्था को बेहतर करना चाहती हैं, वो ज्यादा से ज्यादा औरतों को नौकरी पर रखें
अरकांसस और एकरॉन यूनिवर्सिटी की यह रिसर्च कह रही है कि लॉजिस्टिक्स और सप्लाय-चेन व्यवस्था में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा कुशलता और सक्षमता के साथ काम करती हैं.
कंपनियों के सिर पर सप्लाय-चेन की प्रक्रिया को आसान और सक्षम बनाने का बहुत दबाव है. अगर आप ऐसी किसी कंपनी के मालिक हैं और अपनी सप्लाय-चेन व्यवस्था को सुधारना चाहते हैं तो पता है आपको क्या करना चाहिए?
आपको लॉजिस्टिक, प्लानिंग और सप्लाय-चेन के विभिन्न स्तरों पर ढेर सारी महिलाओं को नौकरी देनी चाहिए. इससे आपकी सप्लाय-चेन की प्रक्रिया ज्यादा सक्षम, सुचारू और मजबूत होगी. यह हम नहीं कह रहे. ये कहना है है अरकांसस यूनिवर्सिटी (University of Arkansas) एकरॉन यूनिवर्सिटी (University of Akron) के शोधकर्ताओं का.
इन शोधकर्ताओं की रिसर्च का विषय था कि रीटेलर्स और सप्लायर्स के बीच कोलैबोरेशन को कैसे बेहतर बनाया जाए. सप्लाय-चेन प्रक्रिया को कैसे ज्यादा आसान, सक्षम और सुचारू बनाया जाए. कौन इस काम को ज्यादा दक्षता और सहजता के साथ कर सकता है. 214 लोगों की टीम पर यह शोध किया गया और नतीजा सामने है. लॉजिस्टिक्स की कमान महिलाओं के हाथ में हो तो कंपनियों की सप्लाय-चेन व्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार आ सकता है.
अराकांसस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस रिसर्च प्रोजेक्ट के प्रमुख लेखक डॉ. जॉन अलॉयसिउस कहते हैं कि जेंडर डायवर्सिटी की बात कितने समय से हो रही है. जेंडर बराबरी का तर्क बहुत सारे लोगों के गले के नीचे आसानी से नहीं उतरता. अब यह रिसर्च जेंडर डायवर्सिटी की जरूरत को और भी पुख्ता तरीके से सामने रख रही है.
आपका बराबरी में यकीन न भी हो तो भी अपनी कंपनी की प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने में तो जरूर ही होगा. और रिसर्च कह रही है कि यह काम महिलाएं ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकती हैं.
आमतौर पर सप्लाय-चेन की व्यवस्था में व्यवधान पैदा करने वाले दो प्रमुख कारण होते हैं. जब रीटेलर्स भविष्य की आवश्यकता का जरूरत से ज्यादा अनुमान कर लेते हैं या जब सप्लायर जरूरत से कम प्रोडक्शन करते हैं.
इस रिसर्च के लिए कुछ रैंडम जोड़े बनाए गए और उन्हें दो तरह की भूमिकाएं सौंपी गईं- सप्लायर और रीटेलर की. रीटेलर्स को बताना था कि आने वाले समय में उन्हें कितने प्रोडक्ट की जरूरत होगी और सप्लायर्स को उस जरूरत के हिसाब से यह निर्णय लेना था कि उन्हें कितना उत्पाद बनाना है.
रिसर्च के जो नतीजे सामने आए, उससे शोधकर्ताओं को समझ में आया कि व्यक्ति के जेंडर का उसकी निर्णयक्षमता और कार्यक्षमता के साथ सीधा संबंध है. यह बात सभी क्षेत्रों और सभी कार्यों पर समान रूप से लागू नहीं होती. लेकिन लॉजिस्टिक्स और सप्लाय-चेन की व्यवस्था में जेंडर का प्रभाव साफतौर पर देखने को मिला.
महिला रीटेलर्स पुरुष रीटेलर्स के मुकाबले भविष्य की डिमांड और मांग को लेकर ज्यादा संतुलित नजर आईं. पुरुषों रीटेलर्स के समूह ने मांग को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और वहीं महिलाओं ने इस मामले में ज्यादा संयमित और संतुलित व्यवहार दिखाया.
कुछ ऐसा ही समीकरण सप्लायर्स के समूह में भी दिखाई दिया. पुरुष सप्लायरों ने महिला सप्लायरों के मुकाबले मांग को कम करके आंका और कम मात्रा में प्रोडक्शन किया. वहीं महिला सप्लायरों की मांग को समझने, उसका पूर्वानुमान लगाने और प्रोडक्शन करने की क्षमता में ज्यादा संतुलन दिखाई दिया.
रीटेलर्स और सप्लायर्स का यह समूह भी काफी डाइवर्स था. कुछ भी महिला और पुरुष दोनों थे, कुछ भी सिर्फ महिलाएं और कुछ में सिर्फ पुरुष. डॉ. जॉन अलॉयसिउस कहते हैं कि सिर्फ महिलाओं वाले समूह का डिमांड और सप्लाय, दोनों का आंकलन सिर्फ पुरुषों वाले समूह के मुकाबले बेहतर था. हालांकि महिला और पुरुष वाले समूह का आंकलन भी सिर्फ पुरुषों वाले समूह के मुकाबले बेहतर पाया गया.
डॉ. जॉन अलॉयसिउस कहते हैं कि महिलाओं के साथ समूह में काम करने पर पुरुषों का व्यवहार ज्यादा संतुलित और सहयोगपूर्ण पाया गया. वह कहते हैं कि हमने अपने शोध में पाया कि आपका जेंडर चाहे जो भी हो, यदि आप एक महिला के साथ काम कर रहे हैं तो आपका नजरिया ज्यादा संतुलित होता है और आप उस पर ज्यादा भरोसा करते हैं.
Edited by Manisha Pandey