स्वतंत्रता दिवस विशेष: मिलें इन 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं से, जिनके प्रयासों से समाज में आ रहा है बड़ा बदलाव
आइये जानें ऐसे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के बारे में जो अपने अथक प्रयासों के जरिये समाज में बड़े बदलाव की नींव रख रहे हैं।
देशवासी आज स्वतंत्रता का 74वां जश्न मना रहे हैं और इसी के साथ सभी के मन में एक यह उम्मीद भी है कि इस स्वतंत्रता का असली प्रभाव देश के अंतिम नागरिक तक बना रहे। देश की स्वतंत्रता के साथ संविधान के दायरे में रहते हुए अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता हम सभी को प्यारी है, लेकिन बावजूद इसके हमारे ही देश में तमाम ऐसे लोग हैं जो या तो इन अधिकारों से वंचित हैं, या फिर वे अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। इनमें से अधिकतर लोग या तो मासूम बच्चे हैं या फिर वह किसी अन्य प्रताड़णा के शिकार हैं, जिनका जीवन आज़ाद भारत में भी किसी नरक से कम नहीं है। आज हम भले यह कह सकें कि हमारे पास स्वतंत्रता के साथ जीवन को जीने मौका है, लेकिन यह बात उनके लिए उतनी प्रभावी नहीं है।
अपने मूल अधिकारों से वंचित व अन्य तरह से पीड़ित लोगों की मदद के लिए हमारे देश में कई ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हरसंभव प्रयास किए हैं और अपनी इस मुहिम के लिए उन्होने जान के खतरे को भी मोल लिया है। आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के बारे में जो अपने अथक प्रयासों के जरिये समाज में बड़े बदलाव की नींव रख रहे हैं।
कैलाश सत्यार्थी
नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश बाल श्रम के खिलाफ 1980 के दशक से लगातार प्रयास कर रहे हैं और वे करीब 80 हज़ार से अधिक बच्चों को इस दलदल से बचाने में कामयाब रहे हैं। गौरतलब है कि कैलाश सत्यार्थी पर बाल श्रमिकों को छुड़ाने की मुहिम के दौरान कई बार हमले भी हुए हैं। करीब 9 साल पहले मार्च 2011 में भी दिल्ली की एक कपड़ा फैक्ट्री में और साल 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल श्रमिकों को छुड़ाने की मुहिम के दौरान भी उन पर जानलेवा हमला हुआ था।
कैलाश सत्यार्थी को नोबल के अलावा भी दुनिया भर के तमाम बड़े पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है, नोबल पुरस्कार को उन्होने पाकिस्तान की मलाला युसुफजई के साथ साझा किया था। कैलाश आज ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ नाम की एक मुहिम चलाते हैं, जिसके तहत बाल श्रमिकों को आज़ाद कराने और उन्हे भविष्य को सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।
लक्ष्मी अग्रवाल
साल 2005 में जब लक्ष्मी ने एक युवक के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो उस युवक ने सरेराह लक्ष्मी पर एसिड फेंक दिया, जिसके बाद लक्ष्मी की जान तो बच गई, लेकिन उनका चेहरा बुरी तरह झुलस गया। इस घटना के बाद लक्ष्मी को एक कठिन दौर से गुज़रना पड़ा, लेकिन ऐसा किसी अन्य एसिड अटैक सर्वाइवर के साथ ना हो इसके लिए उन्होने छाँव फाउंडेशन की स्थापना की।
इतना ही नहीं लक्ष्मी ने एसिड की खुले आम बिक्री को रोकने के लिए पीआईएल भी दाखिल की और जीती भी। सुप्रीम कोर्ट ने उसी पीआईएल के चलते एसिड की बिक्री पर लगाम लगाने के लिए आदेश भी पारित किए। लक्ष्मी को कई अवार्ड से नवाजा जा चुका है, जिसमें 2014 में अमेरिका की तत्कालीन प्रथम महिला मिशेल ओबामा के हाथों मिला इंटेरनेशनल वीमेन ऑफ करेज अवार्ड और एनडीटीवी इंडियन ऑफ द ईयर अवार्ड भी शामिल है।
बेजवाड़ा विल्सन
हाथ से मैला ढोने और सीवर सफाई करने वाले कर्मियों के अधिकारों और उनके जीवन को नरक से बाहर लाने के उद्देश्य से वेज़वाड़ा विल्सन साल 1986 से एक लड़ाई लड़ रहे हैं। खुद दलित परिवार में जन्मे विल्सन मैला ढोने की प्रथा को मानवता पर कलंक बताते हैं और उनकी इस मुहिम को देश भर में सहयोग मिल रहा है।
मैला ढोने की प्रथा के अंत को लेकर विल्सन हमेशा मुखर होकर अपनी बात रखते आए हैं। विल्सन कहते हैं कि देश में भले ही तमाम आविष्कार हो रहे हों या वैज्ञानिक रोज़ नई खोज कर रहे हों, लेकिन आज भी 1 लाख 60 हज़ार लोग देश में ऐसे हैं जो अपने हाथों से मैला ढोने का काम करते हैं।
सुनीता कृष्णन
बचपन से ही समाजसेवा को अपना जुनून मानने वाली सुनीता कृष्णन के कामों को देखते हुए इस ‘पुरुष प्रधान’ समाज को ऐसी चिढ़ हुई कि सुनीता को इसी समाज में व्याप्त दरिंदों ने अपना शिकार बना लिया। सुनीता ने हार नहीं मानी और एक भीषण काले दौर से उबरते हुए महिलाओं और लड़कियों की तस्करी को रोकने के लिए एक संस्था की स्थापना की।
अपने भाई जोश वेटिकाटिल के साथ साल 1996 में सुनीता ने प्रज्ज्वला नाम की एक संस्था की शुरुआत की थी और अब तक वे 25 हज़ार के करीब महिलाओं और लड़कियों को यौन तस्करी से आज़ाद करवाने में सफलता हासिल कर चुकी हैं। कुछ साल पहले सुनीता ने यह बताया था कि उनके इस काम के चलते उनपर 17 से अधिक बार जानलेवा हमले भी हो चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके सुनीता अपने बुलंद हौसलों के साथ लगातार आगे बढ़ रही हैं।
अशोक राव कवि
देश में आज भी जहां समलैंगिकता को एक अभिशाप की तरह देखा जाता है, वहीं समलैंगिक समुदाय को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने की लड़ाई अशोक राव कवि बड़े लंबे समय से लड़ रहे हैं। देश के बड़े मीडिया हाउस में लंबे समय तक पत्रकारिता कर चुके अशोक को कार्यस्थलों पर भी उनके समलैंगिक होने के चलते भी बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ा।
समलैंगिकों की मदद के लिए अशोक ने ‘हमसफर’ ट्रस्ट की स्थापना की है, जिसके जरिये वे इस समुदाय की सीधे तौर पर मदद कर रहे हैं, इसी के साथ वे समलैंगिकों की मदद कर रहे अन्य संस्थानों की भी सीधे तौर पर समर्थन करते रहते हैं।