सोनीपत से जींद के बीच दौड़ेगी देश की पहली Hydrogen से चलने वाली ट्रेन, रेलवे ने ग्रीन एनर्जी की ओर उठाया बड़ा कदम
रेल की पटरियों पर दुनिया की पहली रेलगाड़ी ब्रिटेन के स्कॉटलैंड में चली थी, वह रेलगाड़ी 1 डिब्बे वाली ट्राम के समान थी जिसे घोड़े खींच रहे थे. भाप के इंजन से चलने वाली पहली रेलगाड़ी भी ब्रिटेन में ही चली थी. फिर आई बिजली से चलने वाली पहली गाडी- पर ब्रिटेन में नहीं, जर्मनी में. जर्मनी में ही पहला डीजल इंजन भी बनाया गया था. उस ज़माने से अब तक रेल ने हम सब का बहुत साथ दिया है.
पर आज यातायात और परिवहन का ये माध्यम जलवायु के लिए खतरनाक सिद्ध हो रहा है. बदलते परिवेश के साथ, अब मांग ऐसे वाहनों, रेलगाड़ियों, विमानों की हो रही है जो ग्रीन एनर्जी (green energy) से चलते हों. हाइड्रोजन गैस को वह एनर्जी माना जा रहा है जो हमारे समय के सभी यातायात और परिवहन साधनों को जलवायुसम्मत बना देगा.
कार्बन उत्सर्जन से मुक्त इस ट्रेन को डीजल ट्रेनों का विकल्प माना जा रहा है. हाइड्रोजन-पावर्ड ट्रेन में ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है, जिससे जीवाश्म ईंधन (डीजल, पेट्रोल, कोयला) पर निर्भरता कम होती है और वायु प्रदूषण में भारी कमी आती है. जर्मनी ने हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली ट्रेन को लॉन्च करके इसकी शुरुआत कर दी है. जापान, पोलैंड, फ़्रांस भी अपने रेलवे में यह बदलाव लाने की प्रक्रिया में हैं.
अब जल्द ही भारत में भी हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन पटरी पर उतरेगी. पेरिस वातावरण समझौता 2015 के अंतर्गत ग्रीनहाउस गैसेस को कम करने और रेलवे द्वारा जीरो कार्बन उत्सर्जन मिशन के अंतर्गत 2030 तक लक्ष्य प्राप्ति के लिए हरियाणा में ‘सोनीपत-जींद’ रेलखंड (89 किलोमीटर) पर दो डीएमयू (DMU) रैक को फ्यूल सेल पावर हाइब्रिड सिस्टम से चलाने का फैसला लिया गया है. पर्यावरण संरक्षण के लिए हरित ऊर्जा के इस्तेमाल के क्षेत्र में भारतीय रेल का यह बड़ा कदम होगा.
अगर आपने ट्रेन के इंजन पर गौर किया होगा तो आपने 2 तरह के इंजन देखे होंगे. पहला- डीजल इंजन और दूसरा इलेक्ट्रिक इंजन. डीजल इंजन और इलेक्ट्रिक इंजन के कारण ही कई रूट्स में पैसेंजर ट्रेनों को डीएमयू (DMU) और ईएमयू (EMU) कहा जाता है. लेकिन अब इन इंजनों में बड़ा बदलाव दिखेगा. ये इंजन हाइड्रोजन फ्यूल से चलाए जायेंगे.
जींद से सोनीपत के बीच 89 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन पर हाइड्रोजन से से डीएमयू चलाए जायेंगे जिसके लिए करीब 336 करोड़ रुपए से विद्युतीकरण और ट्रायल के लिए इलेक्ट्रिक इंजन के साथ ट्रेन चला कर देखे जाने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है.
हाइड्रोजन से डीएमयू चलाने से प्रत्येक वर्ष ईंधन पर खर्च होने वाले 2.3 करोड़ रुपये की बचत होगी. इसके साथ ही प्रत्येक वर्ष 11.12 किलो टन कार्बन फुटप्रिंट और 0.72 किलो टन पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन भी रुकेगा. अगर यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहता है तो उम्मीद है आने वाले दिनों में अन्य डीएमयू को इस तकनीक से चलाने के लिए काम किया जाएगा.