मिलिए भारत की पहली महिला साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेटर धन्या मेनन से
खुद के काम को ग्लैमरस से काफी दूर मानती हैं भारत की पहली महिला साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेटर धन्या मेनन
पट्टाथील धान्या मेनन भारत की पहली महिला साइबरक्राइम इन्वेस्टिगेटर हैं। वे खुद को भाग्यशाली मानती हैं कि वे इसमें अपना करियर बना पाईं। यह नई सदी की दिशा में शुरुआत थी और तब साइबर सिक्योरिटी व साइबर क्राइम जैसे मुद्दे सामने आ रहे थे जिनसे निपटना जरूरी थी जब धान्या ने इस पेशे को चुना।
धान्या ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय (एप्टेक के माध्यम से) से बीटेक पूरा करने के बाद "नॉर्मल" जॉब करने लगीं। इसके बाद उनकी शादी हो गई और उन्होंने डांस करना भी बंद कर दिया (जो कि वे काफी अच्छा करती थीं), और बाद में अपने पति के साथ व्यापार में भी हाथ आजमाया।
लेकिन व्यवसाय फेल हो गया, वह अपने पति से अलग हो गईं। इस वक्त वे चौराहे पर थीं। यही वह समय था जब उनके दादा जी के भाई ने सुझाव दिया कि वह साइबर कानून का अध्ययन करे। जिसके बाद उन्होंने एशियन स्कूल ऑफ साइबर लॉ, पुणे से साइबर लॉ में एक साल का डिप्लोमा पूरा किया।
साइबर कोड क्रैक करना
उनका पूरा अनुभव किसी घटनाक्रम से कम नहीं था। वे कहती हैं,
“पाठ्यक्रम में शामिल हुए केवल दो महीने ही हुए थे कि, मुझे पुलिस और न्यायिक बिरादरी के लिए साइबर कानून पर सिद्धांत-आधारित कक्षाएं लेने के लिए कहा गया। मैं भीड़ में अकेली महिला थी। पूरा कोर्स सेल्फ लर्निंग में एक एक्सरसाइज थी; हमें लाइव मामले दिए गए जिससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला।"
इसके तुरंत बाद, धान्या ने एक इन्वेस्टिगेटर का सर्टिफिकेट कोर्स भी पूरा किया।
वे कहती हैं,
“मेरे लिए यह तय करना आसान नहीं था कि मैं स्टडी करना चाहती थी या नहीं। लेकिन मेरे दादाजी हर कदम पर मेरे साथ थे, मुझे फीस के साथ मेरी मदद करने और सबसे महंगी किताबों की ज़रूरत को पूरा करने में उन्होंने मेरी मदद की। वह मेरी क्षमताओं से वाकिफ थे और इस विषय पर भी, क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट में एक वकील थे।"
धान्या को एक स्वतंत्र इन्वेस्टिगेटर के रूप में काम मिलना शुरू हुआ, लेकिन यह उनके परिवार की देखभाल करने के लिए पर्याप्त नहीं था। किसी को भी नहीं पता था कि साइबर क्राइम जांचकर्ता का काम क्या है क्योंकि यह क्षेत्र अभी भी नवजात था।
धान्या बताती हैं,
“मैं सिर्फ 24 साल की थी और एक सिंगल मदर भी थी। कुछ स्कूलों ने मेरे बेटे को एडमिशन देने से भी इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें यकीन नहीं था कि मैं उसे अपनी नौकरी से अपने बच्चे को सपोर्ट दे पाऊंगी या नहीं।"
साल 2004-2008 धान्या के जीवन का एक कठिन दौर था। उन्हें नहीं पता था कि उनका कैरियर कहां जा रहा था या वह सही काम कर रही थीं या नहीं। लेकिन उनके दादा का उनकी क्षमताओं के प्रति दृढ़ विश्वास था जिसने उनको आगे बढ़ने में बहुत मदद की।
वे बताती हैं,
“2008 तक, मुझे अपने काम के लिए पहचाना जाने लगा। मैंने विभिन्न क्लाइंट्स के लिए एक सलाहकार के रूप में काम किया, जो धीरे-धीरे वर्षों में और आगे बढ़ा। विस्तारित हुआ।”
धान्या ने शुरुआत में मोबाइल चोरी, जासूसी वाले कैमरों से जुड़े मुद्दे और डेटा चोरी जैसी कॉर्पोरेट जांचों के मामलों को संभाला।इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के प्रसार और सस्ते स्मार्ट फोन की उपलब्धता के साथ, साइबर क्राइम बेहद बढ़ गया है।
धान्या बताती हैं,
“मैं एक महीने में आठ से नौ मुद्दों को निपटाती थी; अब मेरा ऑफिस ही कम से कम 200-300 कॉलों से डील करता है। इनमें साइबर स्टॉकिंग, साइबर बुलिंग, ओटीपी का दुरुपयोग, वित्तीय धोखाधड़ी और बहुत कुछ शामिल हैं। हम ग्राहकों की तरफ से जांच करते हैं और हमें थर्ड पार्टी के डोमेन का उपयोग करने की स्वतंत्रता नहीं है। हां अगर यह पुलिस कंपलेंट होती है और उनकी तरफ से हमें अनुरोध किया जाता है तो हम जांच कर सकते हैं। हम महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, पुलिस बल, चाइल्ड हेल्पलाइन आदि के अनुरोधों के साथ लगातार मदद करते हैं।“
धान्या बताती हैं कि कभी-कभी मामले भावनात्मक रूप से कठिन होते हैं। बिनी किसी खास मामले के बारे में बात किए, वह कहती हैं कि उनकी जॉब के कुछ ऐसे पहलू हैं जिनमें बच्चे और महिलाओं शामिल होती हैं जो बहुत ही परेशान करने वाले हैं, और उन्होंने महसूस किया है कि उनकी व्यक्तिगत समस्याएं उनकी समस्याओं की तुलना में बहुत छोटी हैं।
इंटरनेट पर कोई छिप नहीं सकता
वह इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले सभी लोगों को सावधान करती है कि वे यहां किसी भी गुमनामी के पीछे नहीं पीछ सकते हैं।
वे बताती हैं,
“अगर आपको लगता है कि आप सोशल मीडिया पर कुछ भी कह सकते हैं और इससे दूर हो सकते हैं, तो आप गलत हैं। जो चीज एक बार इंटरनेट पर आ गई, वो हमेशा के लिए इंटरनेट पर रह जाती है। ये आत्मविश्वास कि 'हम तक नहीं आएंगे' अच्छा नहीं है।”
धान्या केरल के त्रिशूर में अपने ऑफिस में काम करती हैं, और एक एनजीओ, साइबर अवेयरनेस प्रोग्राम (सीएपी) भी चलाती हैं, जो साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक के स्कूलों के साथ साझेदारी करती है। वह मानती है कि पहले इस स्पेस को अच्छी तरह से सीखना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा,
“बहुत सारा इंट्रैक्शन और ट्रैफिक होता है इसलिए दुर्घटनाएं होना तय है। इस बात से अवगत रहें कि कौन सा मंच आपके लिए उपयोगी है और केवल उसी का उपयोग करें। भीड़ को फॉलो न करें। याद रखें 99 प्रतिशत जानकारी रद्दी है। इसके अलावा, माता-पिता को भी कम उम्र में ही स्क्रीन (मोबाइल) टाइम को सीमित करने की आवश्यकता है।”
वह कहती हैं कि अध्ययन से पता चलता है कि स्क्रीन की लत पदार्थ की लत से भी बदतर है। वह कहती हैं कि लोग साइबर दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने से हिचकते हैं। बच्चे डरते हैं कि अगर वे साइबर दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करते हैं, तो उन्हें साथियों व अन्य लोगों द्वारा चिढ़ाया जाएगा। धान्या खुश हैं कि साइबर सुरक्षा को अब लोगों और अधिकारियों ने गंभीरता से लिया है।
वह कहती हैं,
“मुझे एक उदाहरण याद है जब हमने एक बार कंप्यूटर जब्त करने के लिए कहा था। तब पुलिस सिर्फ मॉनिटर ले आई और सीपीयू को वहीं छोड़ आई। हालांकि तब से चीजें बहुत बदल गई हैं।”
कुछ भी ग्लैमरस नहीं है
जैसा कि भारत की पहली महिला साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेटर धान्या से अक्सर पूछा जाता है कि क्या उनकी जॉब ग्लैमरस है। वह हंसी के साथ कहती हैं,
“कुछ लोग मुझे फीमेल पेरी मेसन (Perry Mason) कहते हैं। मुझे लगता है कि मेरा एक पुरुष नाम क्यों होना चाहिए; मैं अगाथा क्रिस्टी (Agatha Christie) क्यों नहीं हो सकती?"
वे कहती हैं,
"नौकरी करना उतना आसान नहीं है जितना लोगों को लगता है। कोई फिक्स्ड वर्किंग आवर्स नहीं हैं और मुझे अक्सर ट्रैवल करना पड़ता है।”
भविष्य में वह एक साइबर सुरक्षा अकादमी और शायद एक शोध केंद्र भी खोलना चाहती हैं। वह कहती हैं,
“मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रही थी। पेशे ने मुझे चुना। यह मुझे अधिक जिम्मेदार बनाता है। मैं कुछ अलग करना चाहती थी और भीड़ को फॉलो नहीं करना चाहती थी।"