1 सफदरजंग रोड-1 अकबर रोड के बीच इंदिरा गांधी का आखिरी दिन..
अपने फौलादी इरादों के लिए विख्यात और बड़े से बड़ा फैसले लेने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 31 अक्टूबर 1984 को उनके आवास पर तैनात गार्ड्स ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली और उसके बाद 1980 में दोबारा इस पद पर पहुंचीं और 31 अक्टूबर 1984 को पद पर रहते हुए ही उनकी हत्या कर दी गई.
बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान को हराने के बाद इंदिरा गाँधी बहुत ताकतवर बनकर उभरी थीं. आपातकाल के बाद 1977 में हुई चुनावी हार के बाद दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए इंदिरा डटकर लड़ीं और तीन साल बाद उन्हें इसमें कामयाबी हासिल हुई.
कहा जाता है पंजाब में विपक्षी सरकार को कमज़ोर करने की कोशिश और सत्ता में क़ाबिज़ अकाली दल का विरोध करने के लिए संत जरनैल भिंडरावाले को प्रोत्साहित किया. भिंडरावाले ने पैंतरा बदलते हुए उनकी सत्ता को ही चुनौती दे डाली- जिसके परिणामस्वरूप स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप इंदिरा की हत्या हुई.
इंदिरा की हत्या उनके ही सुरक्षा गार्ड सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह ने की थी.
31 अक्टूबर का दिन इंदिरा गाँधी के लिए यह काफी बिजी शेड्यूल वाला दिन था. उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव (Peter Ustinov) आए हुए थे. दोपहर में पूर्व ब्रिटिश PM जेम्स कैलाहन के साथ मीटिंग तय थी. इसके बाद राजकुमारी ऐनी के साथ डिनर का प्रोग्राम था.
पीली नारंगी साड़ी पहने इंदिरा काली सैंडल में और लाल कपड़े का थैला लिए अपने सरकारी आवास 1 सफदरजंग रोड से अपने ऑफिस, बगल के बंगले 1 अकबर रोड पर जाने को उठीं, जहां पीटर उस्तीनोव उनका इंतजार कर रहे थे. 1 सफदरजंग रोड-1 अकबर रोड को जोड़ने वाले रास्ते पर तैनात गार्ड्स को उन्होंने नमस्ते कहने के लिए हाथ जोड़े और तभी उनपर रिवॉल्वर की गोली चली. सेकेंडों की खामोशी के बीच बेअंत सिंह फायर करता रहा. सुबह का वक़्त था. इतनी गोलियां लगने के बाद इंदिरा जमीन पर गिर जाती हैं. उनपर फिर सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन से फायरिंग करना शुरू कर देता है. कुल 30 गोलियां चलाई गईं.
कुछ ही सेकंड में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) गोलियों की आवाज सुनकर सफदरजंग रोड हाउस से भागकर बाहर आईं. प्रधानमंत्री आवास पर ड्यूटी में तैनात की गई एंबुलेंस का ड्राइवर मौजूद नहीं होने के कारण खून में लथ-पथ इंदिरा गांधी को एक सरकारी कार में एम्स ले जाया गया. गाड़ी में इंदिरा का सिर गोद में लिए सोनिया भी सवार थीं. राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) इस वक्त पश्चिम बंगाल के चुनावी दौरे पर थे. एम्स के टॉप सर्जन और डॉक्टरों ने लगभग पांच घंटे तक उन्हें बचाने की कोशिश की. उन्हें 80 यूनिट से ज्यादा खून चढ़ाया गया. पर कुछ किया न जा सका.
गोली लगने के लगभग चार घंटे बाद 2 बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया.
तब तक ऑल इंडिया रेडियो या दूरदर्शन पर कोई खबर नहीं दी गई थी.
संवैधानिक मानदंडों के अनुसार, जब एक प्रधानमंत्री की कार्यालय में किसी वजह से मौत हो जाती है, तो दूसरे को तुरंत शपथ लेनी पड़ती है, नहीं तो सरकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. इसलिए ऑल इंडिया रेडियो को राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने से कुछ मिनट पहले ही घोषणा करने की अनुमति दी गई थी.
इंदिरा की इस हत्या से देश सन्न हो गया था. एम्स में सैकड़ों लोग जुट चुके थे. धीरे-धीरे यह खबर भी फैल गई कि इंदिरा गांधी को दो सिखों ने गोली मारी है. माहौल बदलने लगा. शाम होते होते कुछ इलाकों में तोड़फोड़ की घटनाएं शुरू हो चुकी थीं. अगले कुछ ही दिनों में देश भर में सिख विरोधी दंगे भड़कने लगे. सिखों के लिए बेहद खतरनाक समय था. पश्चिमी दिल्ली से शुरू होते होते धीरे-धीरे पूरी दिल्ली सिख दंगों की आग में झुलस गई थी. अगले कुछ दिनों में दिल्ली समेत देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़के जिसे हम सन ’84 के रूप में जानते हैं.
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