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चार साल में 100 करोड़ की कंपनी बना इंदौर का एग्री बेस्ड स्टार्टअप 'ग्रामोफोन'

चार साल में 100 करोड़ की कंपनी बना इंदौर का एग्री बेस्ड स्टार्टअप 'ग्रामोफोन'

Friday November 22, 2019 , 4 min Read

एग्रो बिजनेस सेक्टर में काम करने वाला स्टार्टअप 'ग्रामोफोन' मध्य प्रदेश और राजस्थान में मोबाइल एप्लीकेशन के ज़रिए किसानों की समस्याओं का समाधान कर चार साल में ही 100 करोड़ की कंपनी बन चुका है। रोजाना 3 हजार किसानों की मुश्किलें आसान कर रहे ग्रामोफोन का अब तक 6 लाख किसान फायदा उठा चुके हैं। 

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ग्रमोफोन के फाउंडर्स

कुछ माह पहले अमेरिकी मैग्जीन 'फोर्ब्स' की लि‍स्ट में इंदौर (म.प्र.) के जिस फर्स्ट एग्री बेस्ड स्टार्टअप 'ग्रामोफोन' की सफलता पहली बार विश्व पटल की सुर्खियों में आई थी, अब वह चार साल के भीतर ही 100 करोड़ की कंपनी बन चुका है। एक सर्वे के ज़रिए फोर्ब्स ने भारत के उभरते 500 स्टार्टअप को चुना और उनमें से जिन चुनिंदा स्टार्टअप्स की सफलता पर अपने एक अंक में प्रकाश डाला, उनमें 'ग्रामोफोन' के अलावा इंदौर का ही एक अन्य स्टार्टअप 'शॉप किराना' भी उल्लेखनीय रहा।


एग्रो बिजनेस सेक्टर में काम करने वाला एकमात्र ग्रामोफोन स्टार्टअप मध्य प्रदेश और राजस्थान में मोबाइल एप्लीकेशन के ज़रिए किसानों को कीटनाशक छिड़काव, मंडी का भाव, मौसम की जानकारी और कृषि उपकरणों की खरीद सहित कई जानकारियां उपलब्ध कराने के साथ उनकी समस्याओं का समाधान भी कर रहा है। 

निशांत वत्स, तौसीफ खान, हर्षित गुप्ता और आशीष सिंह इसके संस्थापक हैं। इन सभी ने आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद जून 2016 में ग्रामोफोन पर काम करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने कृषि क्षेत्र में गहराई से रिसर्च की और छोटी-छोटी जानकारियों को एकत्रित करने का काम किया।


शुरुआती दौर में इस एप्लीकेशन से पांच हजार किसान जुड़े थे, लेकिन तीन साल बाद अब ग्रामोफोन अपनी सेवाओं के जरिए देशभर के लाखों किसानों की मदद कर रहा है। पहले साल में महज दस लाख रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी आज सौ करोड़ रुपए का व्यापार कर रही है। शहर में हेड ऑफिस वाली कंपनी के देशभर में 17 सेंटर्स हैं। कंपनी का लक्ष्य दस लाख किसानों तक पहुंचना है।


ग्रामोफोन के फाउंडर्स ने इंदौर में ऑफिस स्थापित करने के बाद शुरुआत में किसानों को जोड़ने के लिए 50 लोगों की टीम बनाई, जो कृषि भूमि पर रिसर्च के बाद टेक्नोलॉजी के जरिए खेतिहरों को बताती है कि उनकी पैदावार को 20 से 50 प्रतिशत तक कैसे बढ़ाया जा सकता है। किसान ग्रामोफोन के एप्प और टोल फ्री नम्बर की मदद से इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट युक्त यूजर फ़्रेंडली प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं।





ग्रामोफोन को शुरुआत में अघोषित रकम की फंडिंग रवि गरीकीपति (सीटीओ फ्लिपकार्ट), अजीत पाई (डाइरेक्टर ग्रीन अर्थ), संजय रामकृष्णन (हेड प्रॉडक्ट मॉर्केटिंग फ्लिपकार्ट), प्रदीप कुमार मिश्रा (डाइरेक्टर इंजीनियरिंग ट्रिब्यून डिजिटल वेंचर), नितिन अग्रवाल (वीपी वेव क्रेस्ट ग्रुप) और आशुतोष सक्सेना (प्रिंसिपल सॉफ्टवेयर इंजीनियर डीम) से मिली। 


उसके बाद ग्रामोफोन ऊंची उड़ान भरने लगा। पिछले वर्ष 2018 की शुरुआत में इस स्टार्टअप को इन्फो एज से 6.4 करोड़ रुपए की प्री सीरीज-ए फंडिंग मिली। इन्फो एज जोमाटो, शॉपकिराना, पॉलिसी बाजार और उस्तरा जैसी बड़ी कंपनियों की शुरुआती इन्वेस्टर है। हाल ही में इन्फो एज ने बी2बी 'शू मार्केटप्लेस शूकनेक्ट' को 6 करोड़ की शुरुआती फंडिंग की है।


आज ग्रामोफोन कंपनी से 2.5 लाख किसान जुड़ चुके हैं और 6 लाख किसान पिछले तीन वर्षों में इससे फायदा उठा चुके हैं। रोजाना 3000 से ज्यादा किसानों की समस्याओं को सुलझाने वाले इस स्टार्टअप को सीरीज-ए फंडिंग इन्फो एज, रवीन शास्त्री, आशा इम्पैक्ट और बैटर कैपिटल से मिली, जो कि 24 प्रतिशत कंपनी शेयर के लिए 24 करोड़ रुपए की रही। 


तेज रफ्तार से एक सौ करोड़ मार्केट वैल्यू हासिल कर चुकी यह कंपनी अब राजस्थान, मध्य प्रदेश के अलावा भारत के अन्य राज्यों के किसानों को भी अपने साथ जोड़ने में जुटी हुई है। तौसीफ कहते हैं कि ग्रामोफोन की महत्वकांक्षा एक मात्र हल ऐसा माध्यम बनना नहीं, बल्कि किसानों के लिए एक बेहतर जिंदगी की तलाश करना है। ये जानकर खुशी होती है कि पिछले कुछ सालों में यह स्टार्टअप किसानों के लिए एक मात्र समाधान बनकर उभरा है।