Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

जानिए कैसे आस पड़ोस के किसानों की मदद कर दिल्ली के खतरनाक प्रदूषण से लड़ रही हैं दो 17 साल की लड़कियां

जानिए कैसे आस पड़ोस के किसानों की मदद कर दिल्ली के खतरनाक प्रदूषण से लड़ रही हैं दो 17 साल की लड़कियां

Wednesday July 24, 2019 , 6 min Read

हर साल सर्दियां आते ही दिल्ली का प्रदूषण स्तर काफी बढ़ जाता है। वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण इसका एक बड़ा कारण है, लेकिन फसलों के अवशेष जलाने से भी दिल्ली में प्रदूषण का लेवल कई गुना बढ़ जाता है। केंद्र संचालित वायु गुणवत्ता तथा मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पिछले साल हुए प्रदूषण में पंजाब और हरियाणा में जलाई गई पराली का भी अत्यधिक प्रभाव रहा। पिछले साल दिल्ली में कुल प्रदूषण का 32 प्रतिशत प्रदूषण पराली जलाए जाने की वजह से हुआ था। जहां हम में से कई लोग हैं जो इस प्रदूषण से बचने के एक तरीके के तौर पर मास्क लगा लेते हैं लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस व्यापक समस्या के समाधान की तलाश में एक कदम आगे जा रहे हैं।


Delhi pollution

हरियाणा में महिला किसानों के साथ श्रुति और केतकी (दाएं)



कक्षा 12 की दो 17 वर्षीय छात्राएं केतकी त्यागी और श्रुति सूद ने 'हैप्पी सीडर, हैप्पी लंग्स' नामक एक क्राउडफंडिंग अभियान शुरू करके इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण का मुकाबला करने का बीड़ा उठाया है। दिल्ली की इन दो लड़कियों ने इस पहल के माध्यम से 2018 में तीन महीनों के अंदर 3.5 लाख रुपये से अधिक जुटाने में कामयाबी हासिल की है। उन्होंने इस पैसे का इस्तेमाल ऐसी मशीनों को खरीदने के लिए किया है जो स्टबल यानी पराली को उर्वरक में बदल सकती हैं। इन मशीनों को उन्होंने झज्जर, हरियाणा में किसानों को डिस्ट्रीब्यूट कर दिया। फसल अवशेषों को खत्म करने के लिए ईको-फ्रेंडली सलूशन प्रदान करने के अलावा, इन दोनों छात्राओं ने जागरूकता सेशन का भी आयोजन किए और किसानों को पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित किया।


केतकी ने सोशल स्टोरी से कहा, “मुझे और श्रुति को कई किसानों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, और वे आगामी फसल के मौसम में हैप्पी सीडर मशीन का उपयोग करने के लिए तैयार हैं। यदि इस पद्धति का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है, तो मुझे यकीन है कि प्रदूषण का स्तर काफी हद तक कम हो जाएगा।”


यह सब शुरू कैसे हुआ


केतकी और श्रुति दिल्ली में एक ही आवासीय कॉलोनी में पली-बढ़ी हैं। हालांकि वे दोनों अलग-अलग स्कूलों में पढ़ रही थी। जहां केतकी संस्कृत स्कूल में तो वहीं श्रुति ब्रिटिश स्कूल चाणक्यपुरी में पढ़ रही थीं। वे अक्सर मिलते थे और अच्छे दोस्त बन गए। केतकी को फुटबॉल से बहुत ज्यादा प्यार है और उन्होंने अंडर -14 टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। वहीं श्रुति तैराक हैं। ये 17 साल के बच्चे किसी भी अन्य टीनेजर की तरह ही हैं - क्यूरियस, फन लविंग, और एंथूजियास्टिक। फर्क सिर्फ इतना है कि वे किसी समस्याओं को लेकर शिकायत नहीं करना चाहते; वे उस समस्या का समाधान खोजना चाहते हैं। 


श्रुति कहती हैं, “हम दोनों ने दिल्ली में हवा की खराब गुणवत्ता के बारे में काफी बातचीत की। जैसा कि हमने गहराई से देखा, हमें पता चला कि मुख्य कारणों में से एक पराली जलाना था। और तभी हमने इस पर काम करने का फैसला किया। हमने इसके समाधान की तलाश शुरू कर दी और कुछ दिनों के बाद, हम हैप्पी सीडर डिवाइस तक पहुंच गए। लेकिन मशीन महंगी थी। जिसके बाद, हमने फंड जुटाने, खरीदने और किसानों को वितरित करने का फैसला किया।




पराली जलाने का अंत


2018 में, केतकी और श्रुति ने केटो (Ketto) प्लेटफॉर्म पर तीन मशीनों की खरीद के लिए एक क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया। दोनों ने हैप्पी सीडर तकनीक को सर्दियां के दौरान जलाई जाने वाली पराली की समस्या से निपटने के तौर पर देखा। 2001 में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में CSIRO ग्रिफिथ के इंजीनियरों के एक समूह द्वारा विकसित की गई मशीन, मिट्टी से फसल के अवशेषों को काटती है, इसे गलाती है और यहां तक कि इसके स्थान पर नए बीज भी बोती है। सभी किसानों को अपने ट्रैक्टर पर डिवाइस लगानी होती है और उसे चलाना होता है। 


केतकी कहती हैं, “रिसर्च के दौरान, हमने काफी खोजबीन की जिसका हमें फायदा मिला। इस मशीन ने कई समस्याओं को हल किया है। इसने न केवल पराली को जलाने से रोकने के लिए एक कुशल और टिकाऊ तरीका पेश किया, बल्कि गेहूं की फसलों की समय पर बुवाई भी सुनिश्चित की, जिससे प्रारंभिक चरण में मिट्टी की सिंचाई करने की आवश्यकता समाप्त हो गई। इसके अलावा, किसानों ने यह भी महसूस किया कि चूंकि मशीन अवशेषों को गीली घास में परिवर्तित करने में सक्षम थी, इसलिए फसलों के लिए उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।"


हालांकि, सबसे बड़ी समस्याओं में एक मशीन की कीमत थी। कई किसान एक मशीन के लिए 1.7 लाख रुपये खर्च नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, हैप्पी सीडर्स के उपयोग से पारंपरिक तरीकों की तुलना में थोड़ा कम लाभ हुआ।


उदाहरण के लिए, जिन खेतों में इस मशीन का उपयोग किया गया वहां गेहूं की औसत उपज 43.3 क्विंटल / हेक्टेयर (ha) थी, जबकि पारंपरिक तरीकों का उपयोग करने वाली औसत उपज लगभग 43.8 क्विंटल / हेक्टेयर थी। हैप्पी सीडर्स का उपयोग करके बुवाई के लिए खेत तैयार करने की औसत लागत 6,225/ हेक्टेयर थी। दूसरी ओर, पारंपरिक तरीकों को लागू करने पर इसकी कीमत 7,288 रुपये / हेक्टेयर थी। इस प्रकार, किसान प्रभावी रूप से केवल 1,000 / हेक्टेयर की ही बचत कर सकते थे।


श्रुति कहती हैं, “हमें लगा कि इन बाधाओं को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि किसानों को मुफ्त में हैप्पी सीडर मशीन दे दी जाए। इसके अलावा उन्हें पर्यावरण के लाभ के लिए प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए भी राजी करना होगा। और हमने ठीक वैसा ही किया।” 



स्वच्छ वायु का मार्ग प्रशस्त करना


केतकी और श्रुति ने क्राउडसोर्सिंग के जरिए लगभग 3.5 लाख रुपये जुटाए। उन्होंने अलग-अलग विक्रेताओं से तीन हैप्पी सीडर मशीन खरीदने के लिए इस पैसे का इस्तेमाल किया। केतकी कहती हैं, “हमने हरियाणा के झज्जर में मातनहेल ब्लॉक के ग्राम संगठन को मशीनें देने का निर्णय लेने से पहले बहुत सारे रिसर्च किए। इस ब्लॉक में कुल 53 गाँव शामिल थे। इन गांवों में ज्यादातर किसान महिलाएं हैं। हमने किसानों से थोड़ा भुगतान लेकर मशीनों को कुछ विशेष दिनों के लिए किराए पर देने का मकैनिज्म पेश किया। इसके बाद किसानों से हमें जो प्रतिक्रिया मिली, वह अभूतपूर्व थी।"


दोनों लड़कियों ने गाँवों में पराली के जलने के कारण होने वाले प्रदूषण के बारे में जागरूकता सेशन आयोजित किए। साथ ही लोगों को ये भी समझया कि हैप्पी सीडर मशीन इसे रोकने में कैसे मदद कर सकती है। उनके प्रयास अंततः सफल हुए, और आज केतकी और श्रुति ने 3,600 एकड़ भूमि को पराली जलाने से मुक्त बना दिया है।


श्रुति कहती हैं, “शुरू में, हमें अपना टाइम मैनेज करने में दिक्कत होती थी। हम दोनों को अपने अकैडमिक्स और कैम्पेन को मैनेज करना था। हमारे काम में गहन शोध, फॉलोअप और काफी ट्रैवल शामिल था। हालांकि, मुझे लगता है कि इतनी बड़े समस्या के लिए ये सब करना तो बनता था। हम इस साल और मशीनें खरीदने के लिए एक बार फिर से राउंड फंडिंग की योजना बना रहे हैं।"


केतकी भविष्य में मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हैं, जबकि श्रुति पर्यावरण इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने का सपना देख रही है। हालांकि, दोनों ने अपने प्रयास को जारी रखने की योजना बनाई है। उनका अंतिम उद्देश्य: देश भर में जलती हुई पराली की प्रथा को समाप्त करना है।