International Tea Day: मेरा 'चाय' संग 'रोमांस' और ये मेरी Love @ First Sip कहानी
मेरा बाल विवाह (Child Marriage) हुआ था; चाय के साथ. लेकिन ये ज़बरन नहीं था, जैसा कि आमतौर पर ये होता है. ये मेरी लव मैरिज थी. और आज हमारी 29वीं सालगिरह है. तो आइए मैं आपको अपनी Love @ First Sip कहानी बताता हूं...
मेरा नाम है रविकांत. जितना सीधा और मासूम आज मैं हूं, दरअसल बचपन में, मैं उतना ही शरारती और जिद्दी हुआ करता था. मेरी उम्र के दूसरे बच्चों से... कुछ ज्यादा ही. अभी मुझे जाननेवालों को शायद इस बात पर यकीन न आए, मगर हां, ये सच है.
मुझे मेरे बचपन में ही प्यार हो गया था, जैसा कि अक्सर हो जाता है. लेकिन मेरे प्यार की दास्तान ज़रा लंबी है, क्योंकि मुझे बचपन के भी बचपन में प्यार हुआ था. मेरा मतलब बचपन के उस पड़ाव से है, जब मैं तुतलाकर बोला करता था. वो साल 1992 की सर्दी के मौसम की पहली सुबह थी, जब मैंने पहली बार उसे देखा. उस वक्त घर के आंगन में टिक-टिक करती अजंता (कंपनी) की घड़ी में यही कोई 7 बजे होंगे. और यही वो वक्त था जब उसके संग पहली बार मेरी नज़रों की अठखेली थी.
उसकी महक, उसके रंग, इठलाते हुए हवा में ऊपर उड़ती उसकी लहरों की अदाओं, और उसकी खूबसूरती का मैं कायल हो गया. मुझे य़कीन नहीं आ रहा था. ऐसा लग रहा था, मानों मैं कोई ख़्वाब देख रहा हूं. लगा जैसे उस नीले आसमान से रास्ता भूली कोई अप्सरा, जमीं पर, मेरे घर के आंगन में उतर आई हो.
ज़रा देर तक उसे तकने के बाद, मैंने उसे छूना चाहा. मैंने जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया, तभी मां ने चिंताभरी आवाज़ में, हल्के लहजे में डांटते हुए कहा, "नहीं, नहीं... ये चाय है, बहुत गरम है. तुम्हारा हाथ जल जाएगा. इसे नहीं छुओ."
ये सुनकर मेरे चेहरे की रंगत उड़ गई. जिद्द तो थी कि इतना निहारने के बाद, उसे छूकर महसूस करूं, और खुद को य़कीन दिला दूं कि भई ये कोई ख़्वाब नहीं, हक़ीकत है... मगर मां के हाथ की चमाट पड़ने के डर ने रोक लिया. मैं ज़रा मायूस हुआ.
ख़ैर, पहली मुलाकात थी, खूब रही. नाम पता लग गया था. ये भी पता लग गया था कि वो रहती कहां है; रसोई में, खोली का नाम है — पतीली.
अब, वक्त-दर-वक्त बढ़ती हुई ज़िंदगी संग हमारी मुलाकातों का ये सिलसिला यूं ही कुछ और दिन तक चलता रहा. निगाहों की अठखेलियां चलती रहीं, उसकी अदाओं के सितम भी जारी रहे. मैं, बस उसे निहारते हुए आहें भर लेता था. वक्त झरने सा बहता हुआ जा रहा था. दोनों तरफ दिल की वादी में अब चाहत का मौसम रुख़ लेने लगा था. धिरे-धिरे इक-दूजे को समझने के बाद, अब वो मेरी महबूबा बन चुकी थी.
फिर एक दिन, जब वो आई, तब घर में सिर्फ हम दो ही थे. वो मेरे सामने थी, हमने इक-दूजे को आदाब़ कहा. वो शर्मो-ओ-हया से नज़रें झुकाएं स्टील के गिलास में खड़ी थी. दोनों के दिलों में शोले उमड़ रहे थे. किसी एक को पहल करनी थी. जैसा कि पहल मर्द करते हैं, मेरे व्याकुल मन के मिलन की आतूरता ने न आव देखा न ताव... बस एक चुंबन (kiss) दे डाला. उसकी मिठास भरी हामी को मेरे दिल ने भांप लिया. इसमें उसकी रज़ामंदी थी. और इस तरह हमारी प्रेमकहानी Love @ First Sip शुरू हुई.
वो जब भी घर आती, घरवालों से छुपकर मैं किसी न किसी तरह उससे मिल लेता और हमारे चुंबन जारी रहे. लेकिन हमारा यूं चोरी-छिपे मिलना और चुंबन करना ज्यादा दिनों तक घरवालों से छिप न सका. और एक दिन हमारी मुहब्बत की दास्तान घरवालों को पता लग गई.
अब जैसा कि शीरीं-फरहाद, हीर-रांझा से लेकर, सिमरन और राज तक... सभी प्रेम कहानियों में हुआ है. घरवालों को चाय संग मेरी मुहब्बत नागवार थी. मां-बाउजी की समझाइस शुरू हो गई. पर मैं मानने को तैयार न था. मां-बाउजी का मुझे मनाना जारी रहा, लेकिन मैंने एक न सुनी. फिर, जैसा कि मुहब्बत इंसान को बगावत सिखा देती है... और मैं तो जिद्दी था ही; ब़ागी बन गया.
मां-बाउजी से मैंने एक टूक कह दिया — मुहब्बत है तो सिर्फ चाय से ही, किसी और से नहीं.
लेकिन, फिर एक वक्त बाद, जैसा कि बच्चों की जिद्द के आगे, हर मां-बाप हार मान लेते हैं, मेरे भी मां-बाउजी राज़ी हो गए. उन्होंने चाय को बतौर बहू हामी दे दी. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. मैंने रसोई की तरफ दौड़ते हुए, पतीली का दरवाज़ा खटखटाया. जैसे ही चाय ने दरवाज़ा खोला, मैंने झट से उसे गले लगाया और माथे को चूम लिया. मैंने उसे बताया कि मां-बाउजी राज़ी हो गए हैं. ये सुनकर वो भी खुशी से झूम उठी. हम दोनों की आंखों में आंसू थे; खुशी के. फिर मैंने और मेरी महबूबा... चाय ने, मिलकर मां-बाउजी का शुक्रिया अदा किया. और इस तरह हमारी मुहब्बत मुकम्मल हुई. फिर मां-बाउजी ने चट मंगनी पट ब्याह करा दिया. और हम सब मिलकर हंसी-खुशी से ज़िंदगी बसर करने लगे.
कुछ साल बाद... तारीख़ — 12 नवंबर, 2004
ये दिन हमारे लिए बेहद खास है. इस दिन हमारी ज़िंदगी में एक और खुशी आई. हमारी प्यारी बेटी: वीर-ज़ारा (Veer-Zaara). बेटी ने हमारी ज़िंदगी में नए रंग भर दिए. ज़िंदगी अब और भी हसीन हो गई. इस तरह हमारा परिवार पूरा हो गया.
लेकिन, ज़नाब कहानी यहीं पूरी नहीं होती...
हमने अप्रैल, 2015 का वो मनहूस वक्त भी देखा है. जब मेरे और मेरी बीवी, चाय के बीच किसी बात को लेकर थोड़ी गलतफहमी हो गई थी. हमने पूरे तीन दिन तक एक-दूसरे से बात नहीं की. बड़ी बात ये है कि हम दोनों को ही नहीं पता था कि गलती किसकी है, तो जाहिर था कि पहले सॉरी कौन कहे?
अब, जैसा कि औरत को ज्यादा दिन नाराज़ रखना बुरी बात है, तो, मैंने पहल करते हुए उसे मनाने की कोशिश की, लेकिन बात न बनीं. वैसे वो है बड़े नरमदिल की, लेकिन तब थोड़ा ज्यादा ही गुस्से में थी. फिर चौथे दिन; मेरी दूसरी कोशिश रंग लाई. वो मान गई. और हमने फिर चुंबन किया. हमने एक-दूसरे से वादा किया कि हम कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे. तब से लेकर आज तक हम हमेशा साथ हैं. हर दिन, हर लम्हे इक-दूजे के हैं.
आज, जब भी मैं घर से दफ़्तर के लिए निकलता हूं, और फिर जब शाम को घर लौटता हूं, वो मेरी राह तकती रहती है. मेरे लिए तैयार खड़ी होती है. उसका चुंबन मुझे तरोताज़ा कर देता है. मेरी सारी थकावट फुर्र हो जाती है. आज भी, वो मुझे उतनी ही फ्रेश महसूस होती है, जितनी बचपन में हुआ करती थी; जब पहली बार मैंने उसे देखा था.
वो कहते हैं ना प्यार करने का कोई वक्त, कोई मौसम नहीं होता; हर बारिश में और हर जाड़े में हमारा प्रेम सातवें आसमान पर होता है. मैं हमेशा चाय का शुक्रगुज़ार रहूंगा. मैं अपनी मां और बाउजी का शुक्रगुजार रहूंगा, जिन्होंने मेरे प्यार को समझा और मेरी बात मान ली. मैं हमारी बेटी वीर-ज़ारा का भी शुक्रिया अदा करता हूं. हम सभी साथ रहते हैं, और बेहद खुश हैं.
मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं YourStory प्लेटफॉर्म का, जिसने मुझे अपनी कहानी साझा करने का मौका दिया.
ये थी मेरी कहानी Love @ First Sip... उम्मीद है आप सभी को पसंद आई होगी. इस कहानी को शेयर जरूर करें. मिलते हैं फिर कभी, ऐसी ही किसी और कहानी के साथ. तब तक के लिए खुश रहें, खुद का और अपनों का ख्याल रखें. प्यार बांटते रहें.
शुक्रिया.