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भारतीय पत्रकार रवीश कुमार एशिया के सर्वोच्च सम्मान 'रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार 2019' से सम्मानित

भारतीय पत्रकार रवीश कुमार एशिया के सर्वोच्च सम्मान 'रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार 2019' से सम्मानित

Friday August 02, 2019 , 5 min Read

"भारतीय पत्रकार रवीश कुमार को रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार 2019 से शुक्रवार को सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को नोबेल पुरस्कार का एशियाई संस्करण माना जाता है। 1957 में शुरू हुए इस पुरस्कार को एशिया का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।"



रविश कुमार

रविश कुमार (फोटो: सोशल मीडिया)



अब समय उतना आसान नहीं रहा कि आप कुछ भी कह दें और सामने वाला सिर्फ सुनकर निकल जाये। इतने मुश्किल समय में जब आपके शब्द, आपकी भाषा, आपकी आवाज़, आपकी कलम सबकुछ बिक चुके हों या फिर संस्थान के दबाव में चल रहे हों तो ऐसे वक्त में भी यदि कोई बिना लाग-लपेट के साफ-साफ सच कहने, बोलने और लिखने की हिम्मत रखता है, तो इसमें सबसे पहला नाम रविश कुमार का ही होगा। रविश कुमार वो पत्रकार हैं, जिन्होंने समाज को एक नई सोच देने का काम किया है। खबर को वैसा ही दिखाया है, जैसी की वो है। उन्होंने देश के युवाओं को दूसरों से सीखकर या भीड़ के पीछे-पीछे चलकर नहीं बल्कि खुद के अनुभव से आगे बढ़ने और अपनी पसंद-नापसंद को तय करने का नज़रिया दिया है।


पत्रकारिता की दुनिया में रविश वो नाम हैं, जिन्हें हर कोई पहचानता है और ये पहचान उन्होंने किसी और तरह से नहीं बल्कि 'सच' के दम पर पाई है। मुझे ऐसा लगता है, इनकी निष्पक्ष पत्रकारिता के बारे में चाहे जितनी बात की जाये वो कम है। मेरे शब्द छोटे पड़ेंगे और मेरे अनुभव भी। क्योंकि मेरी नज़र में ऐसे कुछ लोग हैं, जिन्हें मैं शब्दों के बंधन से मुक्त रखना चाहती हूं। क्योंकि इन्हें शब्दों में बांधकर इनके कद का अंदाज़ा लगाना इनकी काबिलियत को चुनौती देने जैसा है।


मैं बहुत छोटी रही होउंगी, जब रविश कुमार को टीवी पर देखना शुरू किया, लेकिन हां ये वो उम्र थी जब ये तय कर लिया था कि ज़िंदगी में करना क्या है। हालांकि अभी भी ऐसा कुछ नहीं कर पाई हूं, लेकिन इस बात की खुशी है कि इतने प्रदूषित महौल में भी खुद की सोच और समझ को दूषित नहीं होने दिया। आज जब खबर देखी कि भारतीय पत्रकार रवीश कुमार को रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया गया, तो ऐसा लगा मानो किसी ने इस सम्मान से उस संपूर्ण समाज को सम्मानित किया है, रविश जिसकी आवाज़ हैं। इस पुरस्कार को नोबेल पुरस्कार का एशियाई संस्करण माना जाता है। ये सिर्फ रविश कुमार या भारतीय पत्रकारों के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए गर्व की बात होनी चाहिए कि हमारे देश में एक नाम ऐसा है, जिन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है। इस साल के रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार के चार अन्य विजेताओं में म्यामां के ‘को स्वे विन’, थाइलैंड की ‘अंगखाना नीलापाइजित’, फिलीपीन के ‘रैयमुंडो पुजंते कायाबायऐब’ और दक्षिण कोरिया के ‘किम जोंग की’ भी शामिल हैं। इन नामों के बीच एक नाम "अपना-सा" दिल खुश कर देता है।


रवीश कुमार सिर्फ हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया का ही सबसे लोकप्रिय चेहरा नहीं हैं, बल्कि सभी चैनल्स और पत्रकारों के बीच उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है, फिर बात चाहे हिंदी पत्रकारिता की हो या फिर अंग्रेजी पत्रकारिता की। और ये पहचान उन्हें बनानी नहीं पड़ी, बल्कि उनकी काबिलियत और उनके सच कहने के अंदाज़-ए-बयां ने उन्हें खुद-ब-खुद इस जगह पर लाकर खड़ा किया। वरना वो तो बड़े सिंपल से इंसान हैं, जिसने अपनी बात को जनता के सामने रखने का अंदाज़ इतने सालों में भी नहीं बदला। जैसे वे न्यूज़रूम में दिखते हैं, वैसे ही लोगों के बीच फील्ड में भी। उनके व्यक्तित्व में कोई बनावटीपन नहीं। जो जैसा है उसे वैसा ही दिखाना वैसा ही बताना और यही वजह है कि उनकी सहजता पत्रकारिता में आने वाले हर युवा के सामने उन्हें आदर्श के रूप में खड़ा करती है। सीधे और आसान शब्दों में कहूं, तो देश में रविश कुमार जैसे पत्रकारों की ज़रूरत है, जो बेख़ौफ अपनी पत्रकारिता अपने लिए नहीं बल्कि समाज के लिए करें, लेकिन ऐसे नाम गिनती भर ही हैं।


गौरतलब है कि रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार 2019 के प्रशस्ति पत्र में एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक रविश को भारत के सबसे प्रभावी टीवी पत्रकारों में से एक बताया गया है। प्रशस्ति पत्र में यह भी कहा गया कि रविश कुमार का कार्यक्रम “प्राइम टाइम” “आम लोगों की वास्तविक, अनकही समस्याओं को उठाता है।’’ साथ ही इसमें कहा गया, “अगर आप लोगों की अवाज बन गए हैं, तो आप पत्रकार हैं।” 1957 में शुरू हुए इस पुरस्कार को एशिया का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। ऐसे में ये सिर्फ हिन्दी पत्रकारिता के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात होनी चाहिए।


आपनी बात को खत्म करते हुए इतना बताती चलूं, कि रविश कुमार सिर्फ पत्रकारिता की दुनिया में ही इतने खास नहीं हैं, बल्लकि साहित्य की दुनिया में अपनी एक खास पहचान रखते हैं, जिनमें इश्क में शहर होना, देखते रहिये, रवीशपन्ती, The Free Voice: On Democracy, Culture and the Nation मुख्य हैं। यदि आपने इन्हें नहीं पढ़ा है, तो एक बार ज़रूर पढ़ लें। ना पढ़कर ऐसा बहुत कुछ है जो आप खो रहे हैं।


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