पचहत्तर हजार करोड़ की बिक्री के साथ खादी आयोग शहद की मिठास से सराबोर
"अरविन्द मिल्स और रेमंड से करार के साथ इस समय भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की कमाई एयरटेल और ग्रासिम इंडस्ट्रीज से भी आगे निकल चुकी है। अपने उत्पादों, खासकर शहद, कॉस्मेटिक आदि की 75 हजार करोड़ रुपए तक की बिक्री के साथ मौजूदा वित्त वर्ष में उसका टारगेट 85 हजार करोड़ रुपए का है।"
कुछ ऐसे क्षेत्रीय उत्पाद इन दिनो मॉर्केट में हलचल मचाए हुए हैं, जिनसे देश के ज्यादातर लोग कम ही वाकिफ़ हो सकते हैं। इनमें कोई उत्पाद धार्मिक आस्था का भी विषय बना हुआ है तो कोई विदेशी मूल का है। छत्तीसगढ़ का ड्रैगन फ्रूट, केरल की सुपारी और खादी-ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) की शहद बड़ी संभावनाओं के साथ पूरे भारतीय बाजार में छाई हुई है। इसी तरह केला, गुड़, घी, शहद, इलायची वाला तमिलनाडु का पंचामृतम् और वहां के एक मंदिर का 'प्रसादम', मिज़ोरम का ताव्लोहोपुआन और मिजो पौन्चेई (हस्तनिर्मित कपड़ा) भी इन दिनो बाजार की सुर्खियों में हैं। ताव्लोहोपुआन का मुख्यतः मिज़ोरम के एजल और तेन्जावल शहरों में उत्पादन हो रहा है।
खादी आयोग की शहद में उसके पापड़ और कॉस्मेटिक बाजार की भी मॉर्केट वैल्यु जोड़ लें तो उसकी कुल कमाई में पच्चीस फीसदी उछाल के साथ बिक्री 75 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। इस समय, जबकि भारतीय कारोबार जगत मंदी की उलझन जूझ रहा है, खादी ग्रामोद्योग आयोग सरकारी कंपनी के रूप में पिछले चार वर्षों से लगातार अपने उत्पादों की शानदार बिक्री दर्ज कराते हुए अब हिंदुस्तान यूनिलीवर को भी पीछे छोड़ चुका है। पिछले साल उसे कुल बिक्री से 15 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था। अरविन्द मिल्स, रेमंड से करार के साथ इस समय उसकी कमाई एयरटेल और ग्रासिम इंडस्ट्रीज से भी आगे निकल चुकी है। मौजूदा वित्त वर्ष में उसका मॉर्केट टारगेट 85,000 करोड़ रुपए का है।
केरल की औषधीय सुपारी का मलप्पपुरम, तिरूर, तनूर, तिरुरंगडी, कुट्टिपुरम, वेंगरा आदि में उत्पादन हो रहा है, जिसे हाल में 'जीआई' टैग (भौगोलिक संकेतक) मिला है, जिससे उत्पादकों को अपनी प्रीमियम उपज के लिए अधिकतम मूल्य हासिल करने में मदद मिलती है। यह टैग बताता है कि कोई उत्पाद एक विशिष्ट भौगोलिक मूल का है और उसमें उस क्षेत्र के विशेष गुण होते हैं अथवा वह अपने क्षेत्रविशेष की अहम खासियत को समाहित करता है।
खासकर गुटखे में इस्तेमाल हो रही केरल की तिरूर सुपारी अपने सुखद स्वाद के लिए मशहूर है। यह श्वसन और पाचन विकारों से बचाव करती है। पांच प्राकृतिक पदार्थों से तैयार तमिलनाडु का पलानी पंचामृतम्, मुख्यतः पलानी हिल्स स्थित अरुलमिगु दंडायुत्पनिस्वामी मंदिर के अभिषेक में इस्तेमाल हो रहा है। का एक संयोजन है। यह किसी भी कीट संरक्षक रसायन या कृत्रिम अवयवों के बगैर प्राकृतिक विधि से तैयार किया जा रहा है।
कांकेर (छत्तीसगढ़) केपरलकोट क्षेत्र के किसान प्रति किलो ढाई सौ रुपए तक बिकने वाले थाई मूल के स्वाद से भरपूर 'ड्रैगन फ्रूट' (मोतीफल, पिताया) से इस साल दस लाख रुपए तक की कमाई का सपना देख रहे हैं। कांकेर में परलकोट (पखांजूर) के किसान हमेशा से खेती में उन्नत प्रयोग करने के लिए चर्चित रहे हैं। इस समय उनका रुझान मक्का और धान के साथ एक सुगंधित पौराणिक फल 'ड्रैगन फ्रूट' में रंग ला रहा है। खासकर किसान विद्युत मंडल के ड्रैगन फ्रूट की फसल खेतिहरों को रिझा रही है।
छत्तीसगढ़ के किसान अपने मित्र के जरिए तीन लाख रुपए खर्च कर ड्रैगन फ्रूट क बीज थाईलैंड से बांग्लादेश मंगवाने के बाद, फिर खुद वहां से ले आकर उसकी खेती कर रहे हैं। फिलहाल, ड्रैगन फ्रूट की खेती खासतौर से अमेरिका, चीन, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि में बड़े पैमाने पर हो रही है।
हमारे देश में प. बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के भी किसान इसकी खेती करने लगे हैं। इसकी खेती में एक एकड़ में डेढ़ लाख तक लागत आ जाती है। इसके एक पौधे से बारह किलो फल मिल जाता है, जो बाजार में ढाई सौ रुपए प्रति किलो बिक रहा है। एक एकड़ में ही किसान की चार लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है।