खुतुलुन: मंगोलिया की वो राजकुमारी जिसने कुश्ती को अपनी जीत का रास्ता बनाया
महिलाओं का पुरुषों को चुनौती देना नए जमाने की बात नहीं है। कई सौ साल पहले भी महिलाएं अपनी काबिलियत के दम पर पुरुषों को ललकारती थीं। मंगोलिया की खुतुलुन (1260–1306) पुरुषों को चुनौती देने वाली महिलाओं के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा रही हैं।
उन्हें कुश्ती का शौक था और वह कुश्ती की पारंपरिक पोशाक पहनकर पुरुषों को लड़ने की ललकारती थीं। इसकी वजह उनका बचपना या अति-आत्मविश्वास नहीं था, बल्कि उनकी शरीर की बनावट पुरुषों को चुनौती देने के लिए बनी थी। वह काफी लंबी-चौड़ी शख्सियत की मालकिन थीं। मंगोल योद्धाओं को भले ही दुनिया के सबसे बलिष्ठ लड़ाकुओं में से एक माना जाता है लेकिन खुतुलुन ने कड़ा प्रशिक्षण के दम पर अपनी मांसपेशियों को मंगोल योद्धाओं को चुनौती देने लायक बना लिया था।
खुतुलुन के किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उनके पिता योग्य वर ढूंढकर उनका घर बसाने का जतन करने लगे। लेकिन खुतुलुन को शादी के नाम से चिढ़ थी। यह वह दौर था जब शादी-विवाह के मामले में लड़कियों की पसंद-नापसंद कोई मायने नहीं रखती थी। अगर महिला राजकुमारी रहती थी तो समाज के पहरे और कड़े हो जाते थे। विवाह को हैसियत बढ़ाने वाली राजनयिक व्यवस्था के तौर पर देखा जाता था। लड़की का पिता उसके लिए वर पसंद करता था और वह किसी बेजुबान की तरह उसके साथ जाने के लिए विवश हो जाती थी।
वहीं दूसरी ओर, पुरुषों को जितनी चाहे उतनी पत्नियां रखने का हक था। वे रखैलों का हरम भी बना सकते थे। इन हालात में प्यार या सम्मान के लिए काफी कम गुंजाइश रहती थी।
हालांकि खुतुलुन इरादों की पक्की और अपने हक को लेकर मुखर थीं। उन्होंने साफ कहा कि वह अपने भविष्य और जीवनसाथी का फैसला अपने पिता को नहीं करने देंगी। उनके भाइयों को अपनी जीवनसंगिनी चुनने का अधिकार था। अब चूंकि खुतुलुन अधिकतर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा ताकतवर थीं तो उन्होंने ऐलान किया कि वह अपना वर खुद चुनेंगी। यह भी हैरानी की बात थी कि उनके पिता कैडू (Kaidu) भी अपनी बेटी के फैसले से सहमत से थे।
खुतुलुन ने शर्त रखी कि जो भी शख्स उन्हें कुश्ती में हरा देगा वह उसे अपना जीवनसाथी बना लेंगी। मंगोलियाई कुश्ती का कायदा भारत जैसा ही था जिसमें दो प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे को बांहों में कसकर पछाड़ने की कोशिश करते हैं। कैडू ने अपनी बेटी की शर्त को प्रतियोगिता में बदलने का फैसला किया। उन्होंने एक शाही फरमान लिखा कि उनकी बेटी से शादी करने की इच्छा रखने वालों को अपने साथ 100 घोड़े लाने होंगे। अगर वह खुतुलुन से हार जाता है तो उसके घोडे़ रख लिए जाएंगे। वहीं जीतने की सूरत में उसका विवाह खुतुलुन से कर दिया जाएगा।
खुतलुन ने एक के बाद एक कई पुरुषों को कुश्ती में हराया जिन्हें अपनी ताकत पर अभिमान था। उनकी चुनौती को स्वीकार करके साम्राज्य के कोने-कोने से रईस लोग उनसे लड़ने के लिए आते थे और कुश्ती के साथ अपने 100 घोड़े भी हारकर जाते थे। खुतुलुन ने अपनी ताकत और हुनर की बदौलत 10,000 से अधिक जंगी घोड़ों को जीता था। कैडू को बहुत गर्व था कि उनकी बेटी अपने परिवार को इतनी दौलत और सम्मान दिला रही है। वह अक्सर कहते थे कि उनकी राय में खुतुलुन मंगोलिया के किसी भी पुरुष की तुलना में अगला खान बनने के काबिल हैं।
इटली के मशहूर यात्री और इतिहासकार मार्को पोलो ने मंगोलियाई साम्राज्य के बारे में लिखी पुस्तक में खुतुलुन के सबसे बड़े कुश्ती मैचों में से एक का जिक्र किया है। पड़ोसी राज्य का एक धनी राजकुमार नौकरों के विशाल कारवां के साथ कुछ बलिष्ठ घोड़े लाया था। इतने शक्तिशाली और खूबसूरत घोड़े लोगों ने शायद ही पहले कभी देखे थे। राजकुमार की उम्र भी 20 के करीब थी और वह दिखने में निहायत ही खूबसूरत था। हर किसी को भरोसा था कि यही खुतुलुन का जीवनसाथी बनेगा। उन दोनों की कुश्ती का दिन तय होने की खबर आग की तरह फैल गई।
बल और सौंदर्य के अद्भुत संगम वाले राजकुमार के साथ खुतुलुन लड़ाई देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुई थी जिसमें मार्को पोलो और कुबलई खान के शाही दरबार के सदस्य भी शामिल थे। खुतुलुन और राजकुमार की लड़ाई शुरू हुई। इससे पहले इतनी ज्यादा देर तक कोई भी शख्स खुतुलुन के सामने टिक नहीं पाया था। भीड़ खुशी से जय-जयकार करके दोनों का उत्साह बढ़ा रही थी।
लेकिन अचानक खुतुलुन ने राजकुमार का हाथ पकड़कर उसे जमीन पर पछाड़ दिया और उसी के साथ चारों तरफ सन्नाटा पसर गया। हर कोई राजकुमार की जीत चाहता था और कोलाहल बंद होना उनकी निराशा का साफ संकेत था। उस समय हर किसी का यही मानना था कि खुतुलुन को अकेला ही रहना चाहिए.... हमेशा के लिए।
खुतुलुन की विरासत
खुतुलुन के कभी शादी करने का कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। वह जिंदगी भर अकेली रहने की बात अबूझ पहेली रही। इस बारे में सिर्फ अफवाहें ही उड़ीं, जैसा कि आजकल के सितारों के साथ भी होता है। वहीं अन्य दंतकथाओं में दावा किया जाता है कि वह अपने चचेरे भाईयों में से एक से प्यार करती थीं। चूंकि उन दोनों की शादी नहीं हो सकती थी तो उनका दिल टूट गया और उन्होंने फैसला किया कि अगर वह अपने चचेरे भाई से शादी नहीं कर सकती तो किसी से भी शादी नहीं करेंगी। खुतुलुन ने कई वर्षों तक अपने पिता की ओर लड़ाइयां लड़कर खुद को व्यस्त रखा। उन्होंने कुबलई खान को एक साथ उखाड़ फेंकने का भी प्रयास किया।
जब खुतुलुन के पिता की मृत्यु हुई तो उनकी वह 40 वर्ष की हो गई थीं। कैडू के पास कई बीवियां और बच्चे थे। कैडू ने मरते वक्त कहा कि उन्हें अफसोस है कि वह अपने जीवनकाल में खुतुलुन के भावी शासक के रूप में नियुक्त नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि खुतुलुन सबसे मजबूत होने की वजह से नेतृत्व के लिए सबसे योग्य थीं। इतना ही नहीं सैनिकों भी वास्तव में उनका सम्मान करते थे।
कैडू की मृत्यु के बाद खुतुलुन को नहीं पता था कि स्थिति को कैसे संभालना है। यूरोप और भारत में सबसे बड़े बेटे को पिता के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने का चलन था लेकिन मंगोलिया में ऐसा नहीं था। वहां सिंहासन पर हक सबसे ताकतवर शख्स का होता था।
चूंकि खुतुलुन अपने भाइयों की तुलना में अधिक शक्तिशाली थीं, इसलिए वे उनसे जाहिर तौर पर जलते थे। उन्हें यह बात नागवर गुजरी कि उनकी विरासत किसी लड़की को मिल जाएगी। इसी जलन की आग में खुलुतुन के अपने भाइयों ने उनकी हत्या की साजिश रची और उन्हें मंगोलों का अगुवा बनने से पहले ही मार डाला गया। वक्त के गुजरने के साथ खुतुलुन की कहानी फिर से मंगोलिया और चीन में सुनाई जानी लगी। इनमें पति चुनने के लिए होने वाली कुश्तियों की कहानियां लोगों को सबसे ज्यादा पसंद थीं।
कई सौ वर्ष बाद 1800 के दशक में खुलुतुन की कहानी टुरंडोट कहे जाने वाले आधुनिक संगीत-नाटक में बदल गई। यह कहानी एक चीनी राजकुमारी के बारे में थी जिसने अपनी तीन जटिल पहेलियों का हल मिलने तक शादी से मना कर दिया था। लेकिन खुतुलुन की सच्ची कहानी वास्तव में कहीं अधिक दिलचस्प है और उनकी यादें धरोहर की तरह रखे जाने के लायक हैं।