महिला ने अपने गाँव को बनाया खुले में शौच से मुक्त, अभियान चलाकर बना डाले 250 शौचालय
इस 21 वर्षीय महिला ने लगभग 250 शौचालयों के निर्माण में मदद की, जिसके बदौलत उत्तर प्रदेश का यह गाँव आज खुले में शौच से मुक्त हो चुका है।
देश के कुछ ग्रामीण और स्लम क्षेत्रों में अभी भी खुले में शौच का प्रचलन है। स्वच्छ भारत अभियान की तरह केंद्र सरकार की पहल के बावजूद भारत में कई जगह ऐसी हैं जो अभी भी खुले में शौच-मुक्त नहीं हैं।
इक्कीस साल की कोमल हडाला ने उत्तर प्रदेश के अपने गांव निठोरा में दो साल में 250 शौचालयों के निर्माण में मदद की है, जिस कारण गाँव को अब खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया है।
हालाँकि, इस नवविवाहित महिला के लिए लोगों को समझाना और रूढ़िवादी सोच को तोड़ना आसान नहीं था।
द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए कोमल ने कहा,
“कार्य स्वाभाविक रूप से कठिन था। कभी-कभी लोग हमें डांटते थे। कभी-कभी वे हमें 'बेरोजगार' होने के लिए भी फटकारते थे। अक्सर वे हमारे साथ दुर्व्यवहार करते और ताने मारते थे।”
गाँव को खुले में शौच-मुक्त बनाने का मिशन तब शुरू हुआ जब दिल्ली में पैदा हुई और पली-बढ़ी कोमल ने 2017 में शादी कर ली। शहर में रहने के बाद उसने कभी शौचालय के बिना घर नहीं देखा, लेकिन जब उसकी शादी हुई तो उनके घर पर शौचालय नहीं था, जिस कारण उन्हें शौच के लिये घर से बाहर मैदान की ओर जाना पड़ा।
बेटर इंडिया के अनुसार कोमल कहती हैं,
“हम एकांत जगह खोजने के लिए समूह में होकर कई किलोमीटर तक जाते थे। पुरुष हमें परेशान करते और कभी-कभी किसान हमें अपने खेतों से दूर जाने को कहते हुए भगा देते थे। यह काफी शर्मनाक था।”
जल्द ही कोमल ने इसे बदलने के लिए अपने मन में फैसला लिया और इसे वास्तविकता में बदलने के लिए आगे बढ़ गईं।
गांव के लोगों तक पहुंचने से पहले कोमल ने अपने ससुराल वालों और पति से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हे पूरा समर्थन दिया। बाद में गाँव की कुछ महिलाएं भी उनके साथ इस मुहिम में शामिल हो गईं। समर्थन साथ लेकर वह नए शौचालयों के निर्माण के लिए ग्राम प्रधान के पास गईं।
कुछ किसानों और सरकार के सहयोग से कोमल को शौचालय बनाने के लिए धन मिला। इंडियन वुमेन ब्लॉग से बात करते हुए कोमल ने कहा,
“हम शुरू से ही शौच के लिए खेतों में जाने के आदी थे। एक दिन में यह कैसे बदलेगा? इसमें समय लगा, लेकिन परिदृश्य अंततः बदल गया।"
अब कोमल निगरानी समिति नामक एक सरकार द्वारा संचालित ओडीएफ पहल का सदस्य है। 2019 में नॉर्वेजियन पीएम एर्ना सोलबर्ग द्वारा भी सामाजिक काम करने वाली इस महिला की सराहना की गई।