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लद्दाख में प्लास्टिक कचरे के उपयोग से वनस्पति संकट को दूर कर रही है ये तिकड़ी

लद्दाख में प्लास्टिक कचरे के उपयोग से वनस्पति संकट को दूर कर रही है ये तिकड़ी

Wednesday September 11, 2019 , 3 min Read

भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित लद्दाख जल्द ही आधिकारिक रूप से एक केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा। हालांकि लद्दाख की भौगोलिक स्थिति और कठोर ठंडी जलवायु के कारण, यहां सालभर फसल का उत्पादन और विकास लगभग असंभव है। इसके अलावा, आजकल यह क्षेत्र प्लास्टिक प्रदूषण का भी शिकार है। पर्यटक गतिविधियों के कारण इस क्षेत्र के कूड़े के ढेरों में प्लास्टिक का कचरा भरा हुआ है।


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लद्दाख में वनस्पति की कमी के साथ-साथ प्लास्टिक के ढेर को देखते हुए, स्थानीय निवासी जिग्मेट सिंगगे (Jigmet Singge) ने एक रचनात्मक सलूशन एग्रो (Agrow) शुरू किया। इस सलूशन को उन्होंने बेंगलुरु की आर्किटेक्ट निश्चिता बिसानी और शिलांग की अक्षता प्रधान के साथ मिलकर स्थापित किया। यह पहल अब मौजूदा प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके खेती के मुद्दों को हल कर रही है। दरअसल टीम एग्रो बेकार प्लास्टिक बोतलों से बनी इको-ब्रिक्स का इस्तेमाल कर पूरे लद्दाख में कम लागत के एवं पर्यावरण अनुकूल ग्रीन हाउस तैयार कर रही है।


डेली एक्सेलसियर की रिपोर्ट के अनुसार, रेत, मिट्टी, भूसी और गाय के गोबर से भरी प्लास्टिक की बोतलों के इस्तेमाल से बनाई गई ईको-ब्रिक्स के साथ संरचना का निर्माण किया जा रहा है। अक्षता के अनुसार, ग्रीनहाउस अछूता (insulated) और मजबूत होगा, और यह एक आदर्श ग्रीनहाउस के रूप में काम करेगा।


जिग्मेट ने एडेक्स लाइव को बताया कि इको-ब्रिक्स सहित एग्रो ग्रीनहाउस की कीमत 20,000 रुपये है। वे कहते हैं,

“हमने अपने आस-पास के लोगों से बात की है और वे हमें भुगतान करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते कि हम अपना वादा पूरा करें। हमारे लिए एकमात्र समस्या यह है कि एक बोतल को भरने में एक घंटा लगता है और जबकि एक ग्रीनहाउस के लिए 8,000 बोतलों की आवश्यकता होती है।”



तीनों, नरोपा फैलो (Naropa Fellows) हैं और उन्हें आईआईटी मंडी द्वारा आयोजित स्टार्ट-अप एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम के लिए चुना गया है। नरोपा फैलोशिप एक साल का, स्नातकोत्तर, शैक्षणिक कार्यक्रम है जो लद्दाख में एक बेहतर सामाजिक-आर्थिक वातावरण और बेहतर हिमालय के निर्माण के लिए डिजाइन किया गया है।


जिग्मेट उस समय को याद करते हैं जब यह क्षेत्र काफी प्राचीन था, वे कहते हैं, "पहले इस तरह के काम की जरूरत नहीं होती थी क्योंकि हमारे पास प्लास्टिक कचरा नहीं था। चूंकि क्षेत्र धीरे-धीरे पर्यटन के लिए खोला गया और हमें मैगी व कोक की आधुनिक दुनिया से परिचित होना पड़ा। इसके साथ ही प्लास्टिक की बोतलों और रैपरों की मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा।"


टीम एग्रो के पास प्लास्टिक के कचरे के साथ-साथ वनस्पतियों के विकास में वृद्धि करने की योजना है। निश्चिता ने Edex Live को बताया,

“लेह के पास चोगलमसर में एक रीसायकल प्लांट है, लेकिन उनकी क्षमता सीमित है। हम जो करने की कोशिश कर रहे हैं वह यह है कि इस कचरे का उपयोग हमारे किफायती ग्रीनहाउस के समाधान का पता लगाने के लिए इस्तेमाल करना। इस तरह से यह एक बार में दो समस्याओं को हल करने में हमारी मदद करता है।”