पॉलीहाउस स्टार्टअप से लखन का सालाना टर्नओवर हुआ चार करोड़ रुपए
बेरोजगारी दुखद तो है लेकिन जुझारू युवाओं के लिए वह संभावनाओं के नए नए द्वार भी खोल रही है। मुरैना (म.प्र.) के सुशिक्षित किसान लखन सिंह सेमिल का पॉलीहाउस स्टार्टअप ऐसे ही हालात में शुरू हुआ और आज वह हर माह साढ़े तीन लाख रुपए कमा रहे हैं। कंपनी का सालाना टर्नओवर 4 करोड़ तक पहुंच चुका है।
मुरैना (म.प्र.) के सुशिक्षित किसान लखन सिंह सेमिल एग्रीकल्चर में बीएससी करने के बाद कुछ समय तक तो सरकारी विभाग में संविदा पर आठ हजार रुपए की नौकरी करते रहे। एक तो इतनी कम कमाई से अपनी गृहस्थी चलाना संभव नहीं था, दूसरे वह खुद खेती-बाड़ी के काम में अपने तरीके से हाथ आजमाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि उन्नत किसान वैसे तो तरह तरह की फसलों से अच्छी कमाई कर रहे हैं लेकिन लीक से हटकर वह ऐसा क्या करें कि समय से कमाई भी होने लगे और वैसा काम उनके इलाके का कोई और किसान नहीं कर रहा हो। उनकी नजर खेती की तकनीक पर गई। सीधे खेती में उतरने की बजाए उन्होंने प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन का कॉन्सेप्ट चुना और एग्री क्लिनिक एग्री बिजनेस सेंटर से पॉलीहाउस कल्टिवेशन ट्रेनिंग का कोर्स पूरा किया।
प्रशिक्षण के दौरान लखन को बताया गया कि पॉलीहाउस तकनीक खेती से दोगुने से भी ज्यादा प्रॉफिट हो जाता है। इस विधि से खेती में पानी की बचत के साथ लागत कम हो जाती है। इस शॉर्ट टर्म कोर्स में उनको एग्री प्रोडक्ट्स के बिजनेस के भी अनुभव मिल गए।
ट्रेनिंग पूरी कर लेने के बाद लखन सिंह किसानों के लिए पॉलीहाउस तकनीक कंसल्टेंसी करने लगे। किसानों को उनकी सीख समझते देर नहीं लगी। उनका यह काम चल निकला। अब उनके पास अपनी पंद्रह-बीस कर्मचारियों की टीम है, जो किसानों से ऑर्डर मिलते ही उनके खेत में पॉलीहाउस लगाने पहुंच जाती है।
लखन सिंह अब पॉलीहाउस के काम को संगठित तरीके से एक कंपनी बनाकर करने लगे हैं। वह बताते हैं कि पॉलीहाउस में स्टील, लकड़ी, बांस या एल्युमीनियम की फ्रेम का स्ट्रक्चर बनाया जाता है। खेती वाली जमीन को घर जैसे आकर में पारदर्शी पॉलीमर से ढक दिया जाता है। उसके अंदर न बाहर की हवा जा सकती है, न पानी। इस कारण कीड़े-मकोड़ों से फसल सुरक्षित रहती है। अंदर का तापमान आवश्यकतानुसार कम-ज्यादा कर लिया जाता है। मौसम पर निर्भरता पूरी तरह खत्म हो जाती है। कीटनाशक, खाद, सिंचाई ये सभी काम पॉलीहाउस के अंदर ही होते रहते हैं।
लखन सिंह बताते हैं कि पॉलीहाउस वह स्वयं डिजाइन करते हैं। एक एकड़ में पॉलीहाउस लगाने में 1.25 लाख रुपए की लागत आती है। इस राशि पर किसानों को सरकार से 50 से 60 फीसदी तक सब्सिडी मिल जाती है। उनका बिजनेस लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने मात्र दो महीने का एग्री बिजनेस का कोर्स पूरा किया और अब हर महीने साढ़े तीन लाख रुपए कमा रहे हैं। उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर चार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। वह खुद भी अपने खेतों में पॉलीहाउस लगाकर उसमें टमाटर, गोभी, कैप्सिकम, चेरी टमाटर, घेरकीन आदि की खेती कर रहे हैं, जिसमें सालाना 10 फीसदी प्रॉफिट के साथ 40 लाख रुपए कमा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पॉलीहाउस से फसलों के उत्पादन के साथ किसानों की आमदनी भी बढ़ रही है। इससे उनका रुझान इसमें बढ़ता जा रहा है। अभी तक किसानों को इसकी खूबी के बारे में पता नहीं था। अभी तक उनके जिले में गिने-चुने किसान ही इसका उपयोग किया करते थे लेकिन अब तमाम किसानों ने नकदी फसल उत्पादन के लिए उनसे पॉलीहाउस बनवा लिए हैं। पॉलीहाउस लगाने से बेमौसमी उत्पादन होता है, जिस कारण माल बाजार में जल्दी आ जाता है और किसानों को इसके दाम भी अच्छे मिल जाते हैं।