जलवायु आपदा से बिछड़ते बच्चों को देख रो पड़ती हैं मणिपुर की लिसीप्रिया कांगुजम
दुनिया की सबसे छोटी उम्र की पर्यावरण कार्यर्ता मणिपुर की आठ वर्षीय लिसीप्रिया कांगुजम जलवायु आपदा के कारण जब बच्चों को अपने माता-पिता से बिछड़ते देखती हैं, रो पड़ती हैं। वह दिल्ली में संसद भवन के पास तख्ती लेकर पीएम नरेंद्र मोदी से भी जलवायु परिवर्तन पर कानून बनाने का आग्रह कर चुकी हैं। वह हाल ही में 8 हजार पेड़ काटने के खिलाफ बेंगलुरु की सड़कों पर भी उतर चुकी हैं।
जलवायु आपदा दुनिया के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जनवरी के आखिरी दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद करीब 30 हजार स्कूली बच्चे पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रदर्शन करने सड़कों पर उतर पड़ते हैं। वह गुजरते चार सप्ताह से हर गुरुवार बेल्जियम में ऐसा कर रहे हैं। बड़ी खामोशी से धीरे-धीरे बर्बाद हो रही दुनिया का सन्नाटा तोड़ने के लिए वे स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर अपनी पृथ्वी को बचाने चल पड़ते हैं।
इसी तरह जर्मनी, स्वीडन आदि के विभिन्न शहरों में हजारों स्कूली और यूनिवर्सिटी के तख्तियां लिए छात्र हर शुक्रवार को ऊंची आवाज में निकल पड़ते हैं। ये हौसला उनकी ग्रेटा थनबर्ग से मिला है। भारत की ऐसी ही एक नन्ही सी पर्यावरण कार्यकर्ता 8 वर्षीय लिसीप्रिया कांगुजम कहती हैं कि मुझे 'भारत की ग्रेटा थनबर्ग' मत कहो। ऐसा कहने से उनको परेशानी होती है। यह तुलना उनके काम की अहमियत को कम कर देती है। लिसीप्रिया ट्विटर पर लिखती हैं कि वह ग्रेटा की नकल नहीं कर रही हैं।
गौरतलब है कि पिछले दिनों लिसीप्रिया ने बेंगलुरू में सड़क चौड़ी करने के लिए साढ़े आठ हजार पेड़ काटने का यह कहते हुए विरोध किया था कि शहर में होने वाले एक ऑटो शो में नामी कारोबारी आनंद महिंद्रा की नई इलेक्ट्रिक कार को पेश करने के लिए शहर के पर्यावरण की दृष्टि से यह बहुत खतरनाक कदम है।
दिसंबर 2019 में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सीओपी-25 जलवायु शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं से अपनी धरती और उन जैसे मासूमों के भविष्य को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की गुहार लगाने वाली मणिपुर की लिसीप्रिया बुलंद आवाज में अपनी चिंताओं से पूरी दुनिया को झकझोर चुकी हैं। वह लगातार भारत समेत पूरे विश्व का पर्यावरण बचाने की गुहार लगा रही हैं।
लिसिप्रिया के पिता के.के. सिंह कहते हैं,
"सीओपी-25 जलवायु शिखर सम्मेलन में मेरी बेटी की बातों को सुनकर कोई यह अनुमान नहीं कर पाया था कि वह महज आठ साल की है।"
दुनिया में सबसे कम उम्र की पर्यावरण कार्यकर्ता लिसीप्रिया ने जुलाई 2018 में 'द चाइल्ड मूवमेंट' शुरू किया था और उस वक्त ग्रेटा थनबर्ग का कहीं नाम नहीं सुनाई देता था। इसलिए लिसीप्रिया कहती हैं कि कोई ग्रेटा से उनकी तुलना न करे।
वह कहती हैं-
"उनकी तुलना ग्रेटा से करने के बजाए आज दुनिया का पर्यावरण बचाने में सबके योगदान पर महत्व दिया जाना बहुत जरूरी हो गया है। विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा सबसे ज्यादा है। दुनिया और मीडिया को पर्यावरण के लिए काम करने वाले सभी लोगों के काम पर नजर रखनी होगी। सूखा, बाढ़, पिघलते ग्लेशियर, सागरों का बढ़ता जलस्तर खतरे की घंटी है। इसीलिए कहती हूं कि सावधान हो जाओ दुनिया वालो, अब चुप रहने का समय बीत चुका है।"
लिसिप्रिया स्पेन के अखबारों की सुर्खियां बन चुकी हैं।
लिसिप्रिया अब तक दुनिया के 21 देशों का दौरा करने के साथ ही जलवायु परिवर्तन पर तमाम सम्मेलनों में अपनी बात रख चुकी हैं। मात्र छह साल की उम्र में लिसिप्रिया को वर्ष 2018 में मंगोलिया में जलवायु आपदा पर मंत्री स्तरीय शिखर सम्मेलन में बोलने का अवसर मिला था।
वह बताती हैं कि,
"उस सम्मेलन से मेरी जिंदगी बदल गई। मैं आपदाओं के चलते जब बच्चों को अपने माता-पिता से बिछड़ते देखती हूं, तो रो पड़ती हूं।"
मंगोलिया से लौटने के बाद लिसिप्रिया ने पिता की मदद से 'द चाइल्ड मूवमेंट' संगठन बनाया। वह जून 2019 में दिल्ली में संसद भवन के पास तख्ती लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कानून बनाने का आग्रह कर चुकी हैं।