अत्याधुनिक एग्रोटेक्नोलॉजी लैस दुनिया के कई देश एक और कृषि क्रांति की ओर
अत्याधुनिक एग्रोटेक्नोलॉजी से लैस दुनिया एक और कृषि क्रांति को जन्म दे चुकी है। जापान, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, अफ्रीका आदि कई देशों में किसान नहीं, रोबोट फसलों की बुवाई, कटाई, फलों की तुड़ाई और पैकिंग कर रहे हैं। रोबोट ट्रैक्टर खेत जोत रहे हैं। एग्रो कंपनियों और कृषि बाजार ने भी अपनी दिशा बदल दी है।
बिना किसी पदचाप के चुपचाप एक ऐसी कृषि क्रांति जन्म ले चुकी है, जिनकी नज़र दुनिया के उस दौर पर टिकी हुई है, जब, यूएन की ताज़ा वर्ल्ड रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 2050 तक अनाज उत्पादन में 40 प्रतिशत तक गिरावट आने के साथ ही जनसंख्या लगभग दस अरब हो जाएगी। इसी लिए विश्वभर के कृषि वैज्ञानिक उन हालात के मद्देनजर अभी से खेती की अत्याधुनिक तकनीकी प्रणालियां विकसित कर रहे हैं। एग्रीकल्चर सेक्टर के प्रोडक्ट और मशीनें बना रही कई बड़ी कंपनियां भी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है।
जापान के वैज्ञानिक यूकी मोरी ने तो यह साबित भी कर दिया है कि फसलों की निगरानी और रख रखाव में एग्रोटेक्नॉलॉजी निकट भविष्य में अहम भूमिका निभाने जा रही है। इसीलिए अब अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से खेतों को टेक्नो सेंटर्स में तब्दील किया जा रहा है। आने वाले वक़्त में किसान नहीं, रोबोट फसलों की बुवाई, कटाई, फलों की तुड़ाई और पैकिंग करेंगे। चीन इस दिशा में बड़ी पहल कर चुका है। अकेले हायड्रोपोनिक्स खेती का ही मौजूदा बाज़ार इस समय 1.5 अरब डॉलर से ज्यादा का हो चुका है।
इस समय विश्व के कई देशों में किसान रोबोट से ही खेतों में कीटनाशकों आदि का छिड़काव कर रहे हैं। चीन में बड़े स्तर पर रोबोट फसलों के खरपतवार हटा रहे हैं। रोबोट पके फलों को सही समय पर तोड़कर उसकी पैकिंग भी कर रहे हैं।
जेम्स यूनाइटेड इंडियन स्कूल में अध्ययनरत भारतीय छात्र साईंनाथ मनिकंदन ने आबुधाबी में एक ऐसा रोबोट तैयार किया है, जो खेतीबाड़ी करेगा। दिखने में नाव जैसा एग्रीकल्चर रोबोट (एग्रीबोट) से ड्रोन के जरिये बीज की बुवाई भी करेगा। एग्रीबोट से खेत की जुताई भी होगी। इसमें सोलर पैनल लगा है, जिससे ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
जापान में वैज्ञानिक यूकी मोरी द्वारा विकसित खेती की अत्याधुनिक तकनीक से 150 जगहों पर खेती हो रही है। तकनीक संयुक्त अरब अमरीत जैसे कई देश उनकी एग्रोटेक्नोलॉजी के जरिए खेती कर रहे हैं। इसी दिशा में सक्रिय यूएई और सऊदी अरब ने खाद्य सुरक्षा को देखते हुए भारत में अपने लिए फसल उगाने का फ़ैसला किया है। यह स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन की तरह होगा लेकिन यूएई के मार्केट को ध्यान में रखते हुए भारत में चुनिंदा फसलों की खेती की जाएगी।
भारतीय कृषि में भी नई एग्रोटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होने लगा है, लेकिन विश्व शीर्ष एग्रीकल्चर साइंटिस्ट्स की नज़रें किसी और स्तर पर खोजबीन कर रही हैं। मसलन, कौशाबी (उ.प्र.) के गांव बेला फतेहपुर में शिक्षक किसान अनिल कुमार यू ट्यूब के माध्यम से आठ हजार रुपए खर्च कर भले अपनी छत पर 40 हजार की सब्जियां हर महीने बेंच रहे हों लेकिन जापान में तो यूकी मोरी अपने फल और सब्जियां खेत में नहीं, बल्कि एक पॉलीमर फ़िल्म पर उगा रहे हैं।
वही पॉलीमर फ़िल्म, जिसका इस्तेमाल इंसान की किडनी के डायलिसिस के दौरान खून को छानने के लिए किया जाता है। इस तकनीक से फसलों में परंपरागत खेती की तुलना में 90 प्रतिशत कम पानी खर्च हो रहा है। इसमें किसी कीटनाशक की ज़रूरत नहीं। वायरस और बैक्टीरिया को रोकने में पॉलीमर स्वयं समर्थ है। मोरी की कंपनी मेबॉयल ने इस खोज के पेंटेंट का 120 देशों में रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है। इस तरह अब ऑर्टफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) और अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से खेतों को तकनीकी केंद्रों में तब्दील किया जा रहा है।
एग्रीकल्चरल रोबोट विकसित कर रहीं कंपनियां अपने उद्योगं की दिशा बदलने रही हैं और उनके पीछे-पीछे बाजार भी मुड़ चुका है। जापान सरकार तो अनुदान देकर अपने देश में खेती करने वाले बीस तरह के रोबोट विकसित करा रही है। ये रोबोट फसल की बुआई से लेकर फसल की कटाई तक करेंगे।
होकाइडो यूनिवर्सिटी के साथ संयुक्त तौर पर इंजन निर्माता यनमार ने एक रोबोट ट्रैक्टर को विकसित किया है, जिसका खेतों में ट्रायल भी हो चुका है। इससे खेती में दो नई तरह की चुनौतियां सामने आ सकती हैं। एक तो अनपढ़ किसान खेती नहीं कर पाएंगे, उनके खेतों पर अध्याधुनिक तकनीकी क्षमता से लैस कंपनियां खेती कराएंगे, दूसरे अशिक्षित काश्तकार मजदूरी करने के लिए विवश होंगे।
एक सर्वे में पता चला है कि विश्व के कई देशों में मशीनों और बायोटेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता से किसानों की संख्या तेजी से घटती जा रही है। ऐसे ज्यादातर किसान पार्ट टाइम एग्रीकल्चर लेबर का काम कर रहे हैं। दुनिया भर में कई मल्टीनेशनल कंपनियां एग्रीकल्चर में भारी भरकम तकनीकी निवेश कर रही हैं।