मिलिए जर्मनी की गौ रक्षक से जो भारत में करती हैं 1,800 गायों की देखभाल
इस 2019 में कई ऐसे लोगों को सम्मानित किया गया जो आम लोगों की जिंदगी को किसी न किसी तरह बेहतर बनाने का काम कर रहे हैं। फिर चाहे ओडिशा में चाय बेचकर बच्चों के लिए स्कूल खोलने वाले प्रकाश राव हों या फिर नक्सल प्रभावित इलाके में गरीबों का इलाज करने वाले डॉक्टर दंपती। अब हम आपको 61 वर्षीय जर्मन महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें गायों की रक्षा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया। उस महिला का नाम है फ्रेडरिक इरिना जो कि गौ माता की आश्रयदात्री के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
इरिना को अब सुदेवी माता जी के नाम से जाना जाता है। वे बीते 25 सालों से गायों की देखभाल कर रही हैं। वे आज से 41 साल पहले बर्लिन से भारत घूमने के लिए आई थीं। लेकिन यहां आकर उनका मन ऐसा हुआ कि उन्होंने यहीं बसने का फैसला ले लिया। उन्होंने गायों की सेवा को अपना धर्म बना लिया। इरिना ने अपनी सेविंग्स के पैसों से मथुरा में गौशाला बनाईं। वह बर्लिन में अपनी संपत्ति के किराये से मिलने वाले पैसे से बेघर, लावारिस, बीमार, अंधी, बुरी तरह जख्मी घायलों की देखभाल करती हैं।
आज उनकी गौशाला में लगभग 60 लोग काम करते हैं और हर महीने 35 लाख रुपये का खर्च होता है। इसमें कर्मचारियों की तनख्वाह, गायों के लिए चारा और दवाइयों का प्रबंध होता है। इरिना को लगा था कि आवारा गायों की दशा बिना देखभाल के बदतर हो जाती है और फिर उनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं होता है। ऐसी गायों को वे अपने गौशाला में लाती हैं और उसकी पूरी देखभाल होती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए इरिना ने बताया कि उनके पास कुछ संपत्ति है जिससे हर महीने 6 से 7 लाख रुपये का किराया आता है। इन पैसों से ही वे गौशाला संचालित करती हैं। उनकी गौशाला में अंधी और घायल गायों की अलग से देखरेख होती है और उनके लिए अलग से आवास भी बना है। वे इन गायों को ही अपना परिवार मानती हैं। आज के वक्त में जहां जानवरों के प्रति लोगों की संवेदनशीलता खत्म सी होती जा रही है वहां एक विदेशी महिला का गाय की रक्षा के लिए इतना सब करना प्रेरणादायक है।
यह भी पढ़ें: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ योरस्टोरी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू