मिलें थिएटर एक्टर संदीप शिखर से, जिन्होंने वेब सिरीज़ ‘पंचायत’ में निभाया है अहम किरदार
Ranjana Tripathi
Wednesday July 29, 2020 , 6 min Read
योरस्टोरी हिन्दी के साथ हुए खास इंटरव्यू में थिएटर एक्टर संदीप शिखर ने अभिनय और साहित्य से जुड़े कई जरूरी पहलुओं पर खुलकर चर्चा की है।
संदीप शिखर थिएटर की दुनिया में दो दशक से अधिक समय से सक्रिय हैं। संदीप ने रंगमंच की दुनिया में अपनी शुरुआत साल 1992-93 में दस्तक सांस्कृतिक मंच से के साथ की थी, इसी के साथ संदीप ने दिल्ली के श्रीराम सेंटर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में भी रंगमंच करते रहे हैं।
‘कौमुदी’, ‘मुक्तिधाम’, ‘मैं हूँ युसुफ’ और ‘ये है मेरा भाई’ जैसे नाटकों के जरिये संदीप ने अपनी कला का हुनर लोगों के सामने पेश किया, लेकिन ‘थूक’ और ‘ट्रेडमिल’ जैसे नाटकों ने संदीप को बड़ी पहचान दिलाई। संदीप को कई बड़े अवार्ड्स से भी नवाजा जा चुका है। संदीप ने हाल ही में आई वेब सिरीज़ पंचायत में भी अभिनय किया था, साथ ही वो एक आर्ट कम्यूनिटी 'अंजुमन' के सह-संस्थापक भी हैं, जो युवा कवियों और लेखकों को उनकी प्रतिभा को पेश करने के लिए मंच उपलब्ध कराती है।
इस लॉकडाउन ने बतौर रंगकर्मी संदीप को कितना और किस तरह से प्रभावित किया है, साथ ही अब मनोरंजन के नए माध्यम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म और यूट्यूब के आ जाने से एक कलाकार के रूप में उनके समाने कितने नए मौके आए हैं, संदीप ने योरस्टोरी हिन्दी के साथ उन सभी विषयों पर भी खुलकर बात की है।
YS हिन्दी- लॉकडाउन के बाद क्या बदलाव सामने आए हैं?
संदीप- अभी तक तो ठीक रहा है, (हँसते हुए) आगे का पता नहीं है! पहले जैसा तो नहीं रहा है, बदलाव तो निश्चित तौर पर देखने को मिले हैं। घर पर रहते हुए मैं कोशिश कर रहा हूँ कि अपने को व्यस्त रख सकूँ, हालांकि मुझे लगता है कि शिकायत करने के बजाय इस अनुभव को भी स्वीकार किया जाए। इन दिनों में नाटकों और कविताओं का पाठ कर रहा हूँ, हालांकि मैं नाटक देखने और रिहर्सल करने को मिस कर रहा हूँ।
YS हिन्दी- अंजुमन के बारे में बताएं।
संदीप- बैंगलोर जैसे गैर हिन्दी-उर्दू प्रदेश में अंजुमन के आयोजन को लेकर भी मुझे किसी भी तरह की चुनौती नहीं दिखी है, क्योंकि हमसे जुडने वाले वो लोग हैं जिनकी इन भाषाओं और साहित्य में अच्छी-ख़ासी दिलचस्पी है। बेंगलुरु में होने के बावजूद बड़ी संख्या में हमने हिन्दी और उर्दू भाषी लोग तो जुड़े हुए हैं ही, साथ ही कई लोग ऐसी भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं जिनकी मूल भाषा कन्नड़ है और वे हिन्दी साहित्य जानने के साथ हिन्दी लिखना और बोलना चाहते हैं।
फिलहाल हम अंजुमन का आयोजन ऑनलाइन कर रहे हैं और अब दुनिया के तमाम कोनों से लोग जुड़ रहे हैं। ये एक अलग अनुभव है, क्योंकि हमें अब और अधिक नए लोगों से जुडने का मौका मिल रहा है। ऑनलाइन आयोजन हमने लॉकडाउन की मजबूरी को देखते हुए शुरू किया था, लेकिन अब हमें इसमें सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
YS हिन्दी- महामारी को लेकर OTT प्लेटफॉर्म के बारे में आपकी क्या राय है?
संदीप- समय के साथ चीजें बदलती हैं और यह समय की मांग हो सकती है। लोगों को सहूलियत मिल रही है और दर्शक वर्ग बढ़ रहा है। OTT प्लेटफॉर्म का कंटेन्ट काफी अहम होता है, क्योंकि दर्शक बिना अच्छे कंटेन्ट के फिल्मों और वेब सिरीज़ को भी नकार देते हैं, चाहें भले ही उसमें कितने बड़े चेहरे शामिल हों। लोग अब नए तरीके से चीजों को लेकर सोच रहे हैं और अधिक अच्छा कंटेन्ट तैयार हो रहा है जिससे कलाकारों को भी अधिक मौके मिल रहे हैं।
लोगों के भीतर महामारी को लेकर एक डर बस चुका है और स्थिति सामान्य होने के बाद भी कितने लोग थिएटर में फिल्म देखने जाते हैं यह देखने वाली बात होगी। लोगों के भीतर से डर को जाने में वक्त लगेगा, हालांकि लोग जल्द ही स्थिति सामान्य होने के बाद थिएटर में जाते हुए देखे जा सकते हैं। अब नाटक और फिल्म के लिए दर्शकों को आकर्षित करना और भी बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में लोग सिर्फ वही फिल्में और नाटक देखने थिएटर जाएंगे तो उन्हे सबसे ज्यादा आकर्षित करेगी।
YS हिन्दी- इस दौर की फिल्मों में क्या बदलाव देखते हैं?
संदीप- बड़े कैनवास पर देखें तो अभी बहुत बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है, हालांकि यह अच्छी बात है कि दर्शकों ने कंटेन्ट ड्रिवेन फिल्मों को पहले की तुलना में अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। आज फिल्मों में बड़े सितारे अच्छे किरदार की ओर झुकाव रख रहे हैं। रीज़नल सिनेमा ने कुछ हद तक अच्छा काम किया है, मराठी, बंगाली और अन्य स्थानीय भाषाओं में बनने वाली कुछ फिल्में वाकई में अद्भुत हैं।
YS हिन्दी- ‘पंचायत’ को लेकर आपका अनुभव कैसा रहा?
संदीप- पंचायत को लेकर अनुभव खास रहा, हालांकि इसके पहले भी मुझे कुछ वेब सिरीज़ में काम करने के मौके मिले थे, लेकिन किन्ही कारणों से वो संभव नहीं हो सका। मुझे खुशी है कि मैं इस वेब सिरीज़ के साथ जुड़ा, लेखक और निर्देशक व अन्य लोगों के साथ काम करने का अनुभव नया था, क्योंकि थिएटर में हम लंबे समय तक रिहर्सल करते हैं, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं होता है। इस दौरान मुझे इम्प्रोवाइज़ करने का भी काफी मौका मिला, जिससे सीन और बेहतर हो गए थे।
YS हिन्दी- थिएटर और फिल्मों में क्या फर्क देखते हैं?
संदीप- (हँसते हुए) मुझे दोनों ही विधाओं में अभिनय मुश्किल ही लगता है, हालांकि अनुभव को देखते हुए मुझे थिएटर करना थोड़ा आसान लगता है, हालांकि थिएटर में डेढ़ महीने की रिहर्सल भी मिलती है, जो सिनेमा में नहीं है। सिनेमा में समय कम मिलता है, हमें एक ही दिन में तीन सीन भी शूट करने पड़ जाते हैं, लेकिन वहाँ रीटेक का मौका रहता है। मुझे फिल्मों में काम करने को लेकर कोई परहेज़ नहीं है, लेकिन मैं थिएटर में भी काम करके काफी खुश हूँ।
YS हिन्दी- इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
संदीप- जो युवा अभिनय, लेखन या निर्देशन से जुड़ना चाहते हैं वो बिना ज्यादा सोचे अपने काम में जुट जाएँ। आप अपने अनुभव के साथ निखरते हैं, वही आपको आगे लेकर जाता है। लगातार आगे बढ़ते रहने के लिए अपने क्राफ्ट को जानना और उसे तराशना बेहद जरूरी है। आप अपने अनुभव को अपने काम में जोड़ते हुए आगे बढ़ते रह सकते हैं।
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