केरल में पुरुष पीरियड के दर्द से क्यों हैं परेशान?
केरल में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक कैंपेन ‘फील द पेन’ ने पुरुषों को पीरियड का दर्द महसूस कराने का अनोखा रास्ता निकाला है.
जिस अनुभव से आप गुजरे ही नहीं, उस तकलीफ को कैसे महसूस करेंगे. एंपैथी, एक चीज है, लेकिन वो भी सभी मनुष्यों में पूरी तरह विकसित नहीं होती. फर्ज करिए कि पुरुषों को समझाना हो कि महिलाओं के लिए हर महीने पीरियड की तकलीफ से गुजरना क्या होता है, तो इसके लिए क्या करें. केरल में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एक टीम ने पुरुषों को इस तकलीफ का अनुभव कराने का अनोखा रास्ता निकाला है. लेकिन सच तो ये है कि एंपैथी का दावा करने वाले पुरुष उस तकलीफ का 10 फीसदी भी नहीं झेल पाए, जो तकलीफ महिलाएं हर महीने 4 से 5 दिनों तक महसूस करती हैं.
केरल में इस वक्त एक अनोखा कैंपेन चल रहा है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा संचालित ‘फील द पेन’ नाम के इस कैंपेन में आर्टिफिशियल पीरियड स्टिमुलेटर के जरिए पुरुषों को उस तकलीफ का अनुभव कराने की कोशिश की जा रही है, जिसे हम पीरियड पेन कहते हैं. प्यूबर्टी के बाद लड़कियों को हर महीने 4-5 दिन पीरियड्स होते हैं, जो मीनोपॉज होने तक (45 से 55 साल की उम्र तक) चलते रहते हैं. कुछ महिलाओं के लिए पीरियड का अनुभव असहनीय दर्द से भरा होता है.
इस प्रयोग में हिस्सा लेने वाले पुरुषों को पहले एक कुर्सी पर बिठाया गया. फिर पीरियड स्टिमुलेटर के जरिए आर्टिफिशियल ढंग से उस फिजिकल पेन को क्रिएट करने की कोशिश की गई, जो पीरियड क्रैम्प्स के दौरान महिलाओं को होता है. उस कुर्सी पर बैठे पुरुष पहला झटका लगते ही दर्द से कराह उठे. वे 10 सेकेंड तक भी उस कुर्सी पर बिना हिले आराम से बैठ नहीं पाए और चिल्लाने लगे. जबकि इस प्रयोग में शामिल महिलाएं तकलीफ होने के बावजूद बैठी रहीं.
जितना पेन स्टिमुलेटर के जरिए क्रिएट करने की कोशिश की गई थी, वो असी पीरियड पेन का 10 फीसदी भी नहीं था, लेकिन पुरुष उतना दर्द भी बर्दाश्त नहीं कर पाए.
इस कैंपेन का आइडिया तैयार करने वाला सांद्रा सैनी कहती हैं कि विदेशों में ऐसे प्रयोग पहले भी हो चुके हैं. यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं, जिसमें आर्टिफिशियल ढंग से मशीनों के जरिए पुरुषों ने पीरियड पेन को अनुभव करने की कोशिश की, लेकिन वे 10 सेकेंड भी इस तकलीफ को झेल नहीं पाए. मुझे लगा कि क्यों न ये प्रयोग भारत में करके भी देखा जाए कि यहां के पुरुषों की क्या प्रतिक्रिया होती है.
सांद्रा बताती हैं कि उस कुर्सी पर बैठे पुरुष 45-50 के लेवल तक पहुंचते-पहुंचते ही बेकाबू हो जाते हैं. वह दर्द उनके लिए इतना असहनीय हो जाता है कि वे दर्द से कराहने लगते हैं और मशीन को तुरंत बंद करने के लिए कहते हैं. एक-दो पुरुष ही ऐसे थे, जो 60 के लेवल तक दर्द को बर्दाश्त कर पाए.
कैंपेन का मकसद है पुरुषों को संवेदनशील बनाना
दरअसल इस कैंपेन का मकसद इस प्राकृतिक तकलीफ की तुलना करना या पुरुषों को भी वैसी ही तकलीफ देना नहीं है. इसका मकसद ये है कि हमारा समाज और खासतौर पर पुरुष स्त्रियों के इस तकलीफदेह अनुभव के प्रति थोड़े ज्यादा संवेदनशील हों.
पीरियड हमारे समाज में आज भी बड़ा टैबू है. इस विषय पर हम खुलकर कभी बात भी नहीं करते, अपनी परेशानियां और तकलीफें साझा करना तो बहुत दूर की बात है. सांद्रा कहती हैं कि ये कैंपेन शुरू करने का मकसद भी यही है कि इसके जरिए लोगों में पीरियड को लेकर जागरूकता पैदा की जा सके.
इस कैंपेन में 100 लोगों की एक टीम काम कर रही है, स्कूल, कॉलेज, शॉपिंग मॉल्स और सार्वजनिक जगहों पर जगह-जगह जाकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं. इस कैंपेन के तहत लड़कियों और महिलाओं को एक लाख मेन्स्ट्रुअल कप फ्री बांटे गए हैं.
Edited by Manisha Pandey