वर्चुअल लत से करोड़ों लोग सात तरह की ख़तरनाक बीमारियों की गिरफ़्त में
वर्चुअल वर्ल्ड ( सोशल मीडिया की आभासी दुनिया) पर चौंकाने वाली स्पेशल रिपोर्ट
व्हाट्सएप, इंटरनेट, फेसबुक, सेल्फी, वीडियो गेम की लत से इस समय दुनिया के करोड़ों लोग फेसबुक एडिक्शन डिसऑर्डर 'फैड', ‘वाट्सएपाइटिस’ ‘गेमिंग डिसऑर्डर’, 'सेल्फीसाइड', 'बॉडी डिस्मोर्फिक डिसऑर्डर', 'नोमोफोब', 'डिसकोमगूगोलेशन' आदि नई तरह की वर्चुअल बीमारियों की गिरफ्त में हैं।
अमरीका में फ़ेसबुक के 10 करोड़ से भी ज़्यादा यूज़र्स के एक अरब से ज्यादा स्टेटस अपडेट का विश्लेषण करने के बाद सैन डियागो के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जेम्स फॉवलर ने अपनी स्टडी में बताया है कि इन दिनों खास तौर से फेसबुक का एडिक्शन महामारी का रूप ले चुका है। दुनियाभर में हर उम्र के कई करोड़ लोग फेसबुक एडिक्शन डिसऑर्डर यानी 'फैड' (FAD) नामक बीमारी के पेसेंट हो चुके हैं।
फ़ेसबुक पर सकारात्मक अपडेट छूत की बीमारी की तरह खुशियां फैला रहा है। जेम्स के पास इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त आकड़े हैं। वह बताते हैं कि फेसबुक की सकारात्मक पोस्ट संक्रामक रोग की तरह यानी 'फैड' बीमारी को फैला रही हैं। तेजी से फैलने वाली ऑनलाइन भावनात्मक अभिव्यक्तियां खामोशी से करोड़ों लोगों को 'फैड' का शिकार बना रही हैं, जिसका उन्हे पता नहीं।
व्हाट्सएप का इस्तेमाल करने वालों के बारे में, इंग्लैंड से प्रकाशित विश्व के सर्वाधिक प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित आइनेस एम फर्नांडिज गुरेरो की एक शोध रिपोर्ट ने डॉक्टरों को चिंतित कर दिया है। स्टडी के मुताहिक, दिन-रात चैटिंग करते रहने के कारण खास तौर से करोड़ों युवा एक नई बीमारी 'वाट्सएपाइटिस' की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को पहली बार पता चला कि एक 34 वर्षीय युवती को 130 ग्राम वजन के स्मार्टफोन से वाट्सएप से लगातार छह घंटे तक मैसेज भेजने के कारण अचानक उसकी कलाई में दर्द होने लगा। उंगलियों की नसों में सूजन आ गई। इसके बाद इलाज के लिए उसे नॉन स्टेरायड दवाएं देने के साथ ही उसे फोन से अलग कर दिया गया।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के अनुसार इंटरनेट ओवर यूज करने वालो को एक खास तरह की दिमागी बीमारी 'डिसकोमगूगोलेशन' की बीमारी घेर लेती है, जिससे अनजाने में ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ापन, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। यह बीमारी नेट यूजर टीनएजर्स को तो सिजोफ्रेनिया, मानसिक अवसाद में आत्महत्या तक के लिए उकसा रही है। सर्वे के दौरान देखा गया कि इंटरनेट कनेक्शन काट देने के बाद उनके दिमाग और ब्लड प्रेशर में एकदम से तेजी आ गई। हमारे देश में मुंबई, कोलकाता आदि महानगरों में इस तरह की आत्महत्याओं के तमाम मामले सामने आ चुके हैं।
ऐसे यूजर गूगल सर्च में ‘वेज़ टू कमिट सुइसाइड’ के माध्यम से आत्महत्या के तरीके सीख ले रहे हैं। स्टडी के मुताबिक, पैरेंट्स से कम्युनिकेशन गैप के कारण युवा साइबरवर्ल्ड में बेहतर तरीके से नेविगेट कर खुद-ब-खुद मानसिक अवसाद में स्ट्रेस का जोखिम मोल ले रहे हैं।
ब्रॉडबैंड का तेज प्रसार भी लोगों को इंस्टेंट आंसर की दुनिया में धकेल रहा है, जहां सूचनाएं बस एक माउस क्लिक दूर होती हैं। यह सुविधा तेजी से डिसकोमगूगोलेशन बीमारी की सौगात बांट रही है। अध्ययन कर्ताओं ने इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर्ड लोगों को कई अन्य मानसिक परेशानियों से भी ग्रसित पाया है। अठारह से 24 आयुवर्ग में इंटरनेट ओवरयूज से व्यग्रता, असंयम और अभद्रता के लक्षण अधिक देखने को मिले हैं। वे औसतन एक सप्ताह में 16.9 घंटे ऑनलाइन होते हैं। अमेरिकन साइकाइट्रिक एसोसिएशन चाहता है कि मानवता के हित में दिमागी गतिविधि वाले इंटरनेट ओवर यूज को रोका जाना बहुत जरूरी है।
वीडियो गेम की लत को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीमारी की श्रेणी में डालने का फैसला किया है। बहुत जल्द इसे नशीली दवाओं और शराब की लत की तरह ही आधिकारिक रूप से बीमारी घोषित कर दिया जाएगा। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक गेम के प्रति बढ़ी दिवानगी ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ की निशानी है। गेमिंग डिसऑर्डर से परेशान लोग रोज के कामकाज से ज्यादा गेम को तवज्जो दे रहे हैं। मोबाइल पर या फिर टीवी पर ये लोग हर वक्त गेम खेलते हुए मिलते हैं। कई गेम जान तक ले चुके हैं। इस बीमारी से ज्यादातर बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। गेम खेलते समय मोबाइल छीन लेने पर बच्चा गुस्से में रिएक्ट करे तो समझिए वह गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो चुका है।
अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन के मुताबिक, कोई व्यक्ति यदि एक दिन में तीन से ज्यादा सेल्फी ले रहा है तो वह 'सेल्फीटिस' बीमारी की गिरफ्त में है। दिल्ली के अस्पतालों में भी पांच ऐसे केस की पुष्टि हो चुकी है। ऐसे मरीजों में कोई सेल्फीसाइड तो कोई बॉडी डिस्मोर्फिक डिसऑर्डर से ग्रस्त पाया गया। सेल्फी की सनक से आत्मविश्वास कम होने लगता है, निजता पूरी भंग होने के साथ ही वह एंग्जाइटी पीड़ित व्यक्ति आत्महत्या करने की सोचने लगता है। शोध में पता चला है कि सेल्फी लेने के पागलपन ने कॉस्मेटिक सर्जरी कराने वालों की संख्या में जबर्दस्त इजाफ़ा किया है।
स्मार्टफोन की लती लोगों को 'नोमोफोब' बीमारी हो रही है। दुनियाभर में हुए एक सर्वे में 84 फीसदी स्मार्टफोन उपभोक्ताओं ने स्वीकार किया कि वे एक दिन भी अपने फोन के बिना नहीं रह सकते हैं। अमेरिका की विजन काउंसिल के सर्वे में पाया गया कि 70 फीसदी लोग मोबाइल स्क्रीन को देखते समय आंखें सिकोड़ते हैं। यह लक्ष्ण आगे चलकर कंप्यूटर विजन सिंड्रोम बीमारी में तब्दील हो जाता है, जिसमें पीड़ित की आंखें सूखने से धुंधला दिखने लगता है।
युनाइटेड कायरोप्रेक्टिक एसोसिएशन के मुताबिक लगातार फोन का उपयोग करने पर कंधे और गर्दन झुके रहते हैं। झुके गर्दन की वजह से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने लगती है। मोबाइल स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखनेवाले लोगों को गर्दन के दर्द की शिकायत आम हो चली है। इसे 'टेक्स्ट नेक' का नाम दिया गया है। यह समस्या लगातार टेक्स्ट मैसेज भेजने वालों और वेब ब्राउजिंग करने वालों में ज्यादा पाई गई है।