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यहाँ बसों में ही लगती हैं कक्षाएँ, एनजीओ मुंबई के स्लम में रहने वाले बच्चों को दे रहा है शिक्षा

यहाँ बसों में ही लगती हैं कक्षाएँ, एनजीओ मुंबई के स्लम में रहने वाले बच्चों को दे रहा है शिक्षा

Tuesday March 03, 2020 , 3 min Read

‘डोर स्टेप स्कूल’ एक एनजीओ है जो मुंबई और पुणे में झुग्गी झोपड़ियों, फुटपाथ पर रहने वालों और निर्माण स्थल के मजदूरों के बच्चों के लिए बसों के अंदर कक्षाएं लगाता है।

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(चित्र: एडेक्स लाइव)



किसी देश के विकास को उसकी साक्षरता दर और शिक्षा पर उसके महत्व के आधार पर मापा जा सकता है। भारत में सरकार द्वारा काफी पहल की गई हैं जो भारत में शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही हैं।


सरकार की पहल के अलावा कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने शिक्षा के क्षेत्र में काम करने जिम्मा उठाया हुआ है। वो विशेष रूप से वंचितों के लिए काम कर रहे हैं। इनमें मुंबई के डोर स्टेप स्कूल की संस्थापक बीना सेठ लश्करी भी शामिल हैं। उसका एनजीओ लगभग तीन दशकों से झुग्गी-झोंपड़ियों, फुटपाथ पर रहने वालों, निर्माण स्थल पर रहने वालों और अन्य दलित बच्चों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा है।


सात बसों के अपने बेड़े के हिस्से के रूप में अकेले मुंबई में ‘स्कूल ऑन व्हील्स’ पहल ने 50,000 से अधिक बच्चों के जीवन को प्रभावित किया है। यह एनजीओ एक स्कूल बस के अंदर 100 से अधिक छात्रों को पढ़ाए जाने के साथ-साथ चार स्थानों पर कक्षाएं संचालित करता है।


एडेक्स लाइव से बात करते हुए बीना ने कहा,

“हमने रेलवे स्टेशनों, गेटवे ऑफ़ इंडिया और अन्य खुले क्षेत्रों के पास बच्चों को पाया और हमने उन्हें वहां पढ़ाना शुरू कर दिया, लेकिन यह एक अच्छा विकल्प नहीं था क्योंकि वे ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते थे, इस दौरान वे विचलित रहते थे।"

तभी बीना ने उन बच्चों को पढ़ाने के लिए एक कक्षा में मिलने वाली बुनियादी वस्तुओं से लैस एक वाहन बनाने के विचार के बारे में सोचा, जिससे शहर भर में बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।


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(चित्र: एडेक्स लाइव)




वो आगे कहती हैं,

"हमने यह अवधारणा पेश की। कक्षाएं कम से कम दो से तीन घंटे तक चलती हैं और बच्चों को अंग्रेजी, गणित और सामान्य विज्ञान पढ़ाया जाता है।"

औसतन एक दिन में मुंबई और पुणे में लगभग एक लाख छात्रों को 500 शिक्षकों की एक टीम द्वारा पढ़ाया जाता है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं और पूर्व छात्र हैं। जो छात्र अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उन्हें फाउंडेशन द्वारा सराहा जाता है। इसके साथ ही उनके नाम पर उनके क्षेत्र की गलिका नाम रखा जाता है।


उदाहरण के लिए एक गली का नाम 27 वर्षीय रहमुद्दीन शेख के नाम पर रखा गया, जो एक स्कूल ड्रॉपआउट थे और उन्होने न केवल बीए पूरा किया, बल्कि राज्य स्तरीय रग्बी खिलाड़ी के रूप में उभर कर सामने आए।


द बेटर इंडिया के अनुसार, मुंबई के तीन मलिन बस्तियों में रोड-नामकरण किया गया है, ये कफ परेड में बालासाहेब अंबेडकर नगर चॉल, गोवंडी में हीरानंदानी अक्रुटी चॉल और मानखुर्द में महाराष्ट्र नगर रिक्शा स्टैंड चॉल हैं।