मुंबई के ऐतिहासिक फ़ेमस स्टूडियो ने रचनात्मक युवा ऑन्त्रप्रन्योर्स के लिए बनाया 'शानदार' को-वर्किंग स्पेस
भारत में को-वर्किंग स्पेस का कल्चर तेज़ी के साथ लोकप्रिय हो रहा है। एपीएसी में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फ़्लेक्सिबल वर्कस्पेस का मार्केट है। इस मामले में भारत, सिर्फ़ चीन से पीछे है। देश में 850 से ज़्यादा को-वर्किंग स्पेस हैं, जिनमें से ज़्यादातर दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में है। समय के साथ यह कल्चर छोटे शहरों के ईकोसिस्टम में भी लोकप्रिय हो रहा है।
यही वजह रही कि मुंबई के ऐतिहासिक फ़ेमस स्टूडियो ने फ़ेमस वर्किंग कंपनी लॉन्च की। 73 साल पुराना यह स्टूडियो मुंबई के महालक्ष्मी इलाके में स्थित है। फ़ेमस वर्किंग कंपनी का को-वर्किंग स्पेस क्रिएटिविटी और इनोवेशन को साथ लाने का काम कर रहा है और कंपनियां खड़ी करने में 'जेन वाय (Gen Y)' की मदद कर रहा है।
फ़ेमस वर्किंग कंपनी के फ़ाउंडर और डायरेक्टर अनंत रूंगटा कहते हैं,
"को-वर्किंग स्पेस के सदस्यों को शूटिंग स्टेज, इन-हाउस मोशन कैप्चर फ़ैसिलिटी, द फैंटम फ़्लेक्स लैब, रेडी टू शूट सेट्स और एडिटिंग सूट आदि की सुविधा मिलती है और वह भी डिस्काउंट के साथ।"
लाइट्स, कैमरा, ऐक्शन!
20वीं सदी के शुरुआती दौर से स्टूडियो का कल्चर लोकप्रिय हुआ था। यह सबकुछ 1913 में दादासाहब फाल्के की पहली फ़िल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के आने के बाद से हुआ। बाद में दादासाहब फाल्के नासिक चले गए और वहां उन्होंने ‘हिन्दुस्तान फ़िल्म्स’ नाम से स्टूडियो बनाया। इस स्टूडियो में लोकेशन्स, ऐक्टर्स, टेक्निशियन्स से लेकर पोस्ट-प्रोडक्शन तक सारी सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध थीं। इसके बाद जल्द ही, मुंबई, कोलकाता, पुणे, चेन्नई और लाहौर (विभाजन से पहले भारत का हिस्सा) में स्टूडियो बनने शुरू हुए। हाल में मुंबई में तमाम स्टूडियो हैं, जिनमें आरके स्टूडियो (यह स्टूडियो अब बिक चुका है) और मेहबूब स्टूडियो जैसे ऐतिहासिक नाम भी शामिल हैं।
फ़ेमस स्टूडियो की कहानी भी आज़ादी से पहले शुरू होती है। 1946 में इसे जेबी रूंगटा ने बनवाया था। यह स्टूडियो भारतीय सिनेमा और टेलिविज़न इंडस्ट्री में एक क्रांतिकारी प्रयोग था। अभी तक की अपनी यात्रा में, रूंगटा परिवार ने लगातार समय के साथ बदलाव किए और अपने शानदार काम के ज़रिए दादासाहब फाल्के पुरस्कार जीता और साथ ही, इंडियन मोशन पिक्चर असोसिएशन द्वारा भारतीय सिनेमा में असाधारण योगदान के लिए सम्मान भी हासिल किया।
1990 में, जेबी रूंगटा के बेटे ने बिज़नेस संभाला और इसे नए दौर की फ़िल्म-मेकिंग तकनीकों के साथ आगे बढ़ाया। फ़ेमस स्टूडियो ने पाकीज़ा, शोले, मासूम, वो सात दिन, कुली और मि. इंडिया जैसी बेहद लोकप्रिय और भारतीय सिनेमा की ऐतिहासिक फ़िल्मों को रीस्टोर करने का काम भी किया।
द शो मस्ट गो ऑन!
जब 2018 में अनंत ने फ़ैमिली बिज़नेस जॉइन करने का फ़ैसला लिया, तब उन्होंने तय किया कि वह जेन वाय (Gen Y) के साथ बने रहेंगे, जो लगातार डिजिटल और ओटीटी कॉन्टेन्ट बना रहे हैं और इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस साल जून में ही उन्होंने फ़ेमस स्टूडियो के अंदर एक छोटी सी जगह में फ़ेमस वर्किंग कंपनी की शुरुआत की। यह को-वर्किंग स्पेस 10 हज़ार स्कवेयर फ़ीट में फैला हुआ है और यहां पर फ़्लेक्सी डेस्क्स, प्राइवेट केबिन्स और आउटडोर ग्लासहाउस कोर्टयार्ड से लेकर गेम्स अरीना तक सारी सुविधाएं मौजूद हैं। अनंत बताते हैं कि उनके को-वर्किंग स्पेस में अभी 140 सीटों की क्षमता है और उनका किराया 10 हज़ार रुपए प्रति माह से शुरू होता है।
अनंत ने जानकारी देते हुए बताया,
"हमारे पास विज़ुअल इंजीनियरिंग की सुविधा के साथ-साथ भारत की दूसरी सबसे बड़ी डॉल्बी ऐटमॉस होम मिक्सिंग फैसिलिटी है। को-वर्किंग स्पेस के हर सदस्य की इन सुविधाओं तक सीधी पहुंच है। हमारे पास टूरिज़म कंपनियों से लेकर प्रोडक्शन हाउस, लॉ और फ़ाइनैंशल फ़र्म्स तक, सभी तरह के क्लाइंट्स हैं।"
अनंत ने जानकारी दी कि हाल में यह को-वर्किंग स्पेस, सीटों के लिए मिलने वाले किराए, कार्यक्रमों और वर्कशॉप्स आदि से रेवेन्यू पैदा कर रहा है।
पिक्चर अभी बाक़ी है!
लॉन्च से लेकर अभी तक, इस को-वर्किंग स्पेस में 50 प्रतिशत जगह का इस्तेमाल हमेशा से ही बना रहा है और अनंत को उम्मीद है कि इस साल नवंबर के अंत तक यह स्पेस पूरी तरह से भर जाएगा। अनंद ने यह भी कहा कि भविष्य में रूंगटा परिवार ज़रूरत के मुताबिक़ को-वर्किंग स्पेसेज़ में निवेश करेगा।
अंनत योजना बना रहे हैं कि अप्रैल 2020 तक इस को-वर्किंग स्पेस में सीटों की क्षमता को 200 तक बढ़ाया जाए।