जब गांधी ने हिटलर को लिखा कि आने वाली पीढि़यां आप पर शर्मसार होंगी
आज नेशनल लेटर राइटिंग डे है. इस मौके पर पढि़ए महात्मा गांधी का एक पत्र हिटलर के नाम.
आज नेशनल लेटर राइटिंग डे (national letter writing day) है. जब डाकघर और पोस्टमैन नहीं हुआ करते थे, खत तब भी लिखे और भेजे जाते थे. बहुत सारा इतिहास घटनाओं और वाकयों से परे इन चिट्ठियों में भी घटित हुआ है.
इतिहास का ऐसा ही एक पन्ना है, दूसरे विश्व युद्ध के दौर का. इस इतिहास कथा के दोनों किरदारों को किसी परिचय की जरूरत नहीं. एक हैं पूरी दुनिया में शांति और अहिंसा का संदेश पहुंचाने वाले महात्मा गांधी और दूसरा जर्मनी का तानाशाह, इतिहास के सबसे काले और नकारात्मक चेहरों में से एक, एडोल्फ हिटलर.
बहुतों को संभवत: यह जानकर आश्चर्य हो कि गांधी ने हिटलर को दो बार चिट्ठी लिखी थी. एक बार 1939 में और दूसरी उसके एक साल बाद 1940 में.
यह द्वितीय विश्व युद्ध का समय था. जर्मनी और इंग्लैंड आपस में लड़ रहे थे. इस लड़ाई में फ्रांस और अमेरिका इंग्लैंड के साथ थे. यूरोप के सारे देश एक-एक करके जर्मनी की जद में आ रहे थे और वहां के यहूदियों के व्यापक नरसंहार का सिलसिला शुरू हो चुका था. इसी दौरान गांधी ने हिटलर को वो खत लिखा.
इतिहास की सबसे बड़ी जघन्य क्रूरता को अंजाम देने वाले हिटलर को गांधी अपने पत्र में डियर फ्रेंड (प्रिय मित्र) कहकर संबोधित करते हैं. इस पत्र में गांधी ने हिटलर से युद्ध को समाप्त करने की अपील की थी. उन्होंने कहा कि वे अपने मित्रों के बहुत इसरार और अनुरोध के बाद यह खत उन्हें लिख रहे हैं.
हालांकि इस बारे में ज्ञात नहीं कि यह पत्र हिटलर को मिला था या नहीं. इस पत्र को लिखे जाने के एक महीने बाद हिटलर ने सोवियत संघ के साथ एक नॉन एग्रेशन पैक्ट साइन किया था, जो ज्यादा दिनों तक टिका नहीं. उसके थोड़े ही दिनों बाद हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया.
गांधी का पत्र हिटलर के नाम
प्रिय मित्र,
मेरे मित्र मुझसे अनुरोध करते रहे हैं कि मैं मानवता के वास्ते आपको खत लिखूं. लेकिन मैं उनके अनुरोध को टालता रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि मेरी ओर से कोई पत्र भेजना गुस्ताखी होगी.
हालांकि कुछ ऐसा है, जिसकी वजह से मुझे लगता है कि मुझे हिसाब-किताब नहीं करना चाहिए और आपसे यह अपील करनी चाहिए. चाहे इसका जो भी महत्व हो.
यह बिल्कुल साफ है कि इस वक़्त दुनिया में आप ही एक शख्स हैं, जो इस युद्ध को रोक सकते हैं, जो मानवता को बर्बर स्थिति में पहुंचा सकता है. चाहे वो लक्ष्य आपको कितना भी मूल्यवान प्रतीत हो, क्या आप उसके लिए यह कीमत चुकाना चाहेंगे?
क्या आप एक ऐसे शख्स की अपील पर ध्यान देना चाहेंगे, जिसने किसी उल्लेखनीय सफलता के बावजूद जगजाहिर तौर पर युद्ध के तरीके को खारिज किया है? बहरहाल, अगर मैंने आपको खत लिखकर गुस्ताखी की है तो मैं आपसे क्षमा की अपेक्षा करता हूं.
आपका दोस्त,
एम. के. गांधी
पहले पत्र का कोई जवाब न आने और हिटलर की गतिविधियों से कोई सकारात्मक संदेश न मिलने के बावजूद कुछ दिनों बाद 24 दिसंबर, 1940 को गांधी ने हिटलर को दूसरा पत्र भेजा. यह पत्र काफी लंबा था. इस पत्र में उन्होंने अंग्रेजों की, उनके द्वारा की गई संगठित हिंसा की भी 24 दिसंबर, 1940 की और साथ ही बहुत खुले और कठोर शब्दों में हिटलर की भी.
24 दिसंबर, 1940 के पत्र में गांधी लिखते हैं-
प्रिय मित्र,
मैं आपको मित्र कहकर संबोधित करता हूं, यह कोई औपचारिकता नहीं है. मेरा कोई दुश्मन नहीं है. पिछले 33 वर्षों से मेरा काम व्यक्ति की जाति, रंग या पंथ की परवाह किए बगैर सभी मनुष्यों के साथ मैत्री कर पूरी मानवता को मित्रता के एक तार से जोड़ने रहा है.
मुझे आशा है कि आपके पास यह जानने का समय और इच्छा होगी कि मानवता का एक बड़ा हिस्सा, जो सार्वभौमिक मित्रता के उस सिद्धांत में विश्वास रखता है, वह आपके कामों को कैसे देखता है. हमें आपकी वीरता या मातृभूमि के प्रति आपके समर्पण पर कोई संदेह नहीं है और न ही हम यह मानते हैं कि आप कोई राक्षस हैं, जैसाकि आपके विरोधी आपको बताते हैं.
लेकिन आपका अपना लेखन और आपके शब्द, आपके मित्रों और प्रशंसकों की बातें संदेश की कोई गुंजाइश नहीं छोड़तीं कि आपके बहुत सारे कार्य बहुत क्रूर, अमानवीय और राक्षसी हैं. वे मानवीय गरिमा के अनुरूप नहीं हैं. खासतौर पर मेरे जैसे पुरुष की निगाह और आंकलन में, जो सार्वभौम मैत्री में विश्वास रखता है.
आपने चेकोस्लोवाकिया का अपमान किया है, पोलैंड का बलात्कार किया है और डेनमार्क को निगल लिया है. मुझे पता है कि जीवन के बारे में आपका दृष्टिकोण इस तरह के लूटपाट के काम को पुण्य कर्म मानता है. लेकिन हमें बचपन से ही ये सिखाया गया है कि इस तरह के काम मानवता को अपमानित और शर्मसार करने वाले काम हैं. इसलिए संभवतः हम आपकी सफलता की कामना नहीं कर सकते.
लेकिन इस वक्त हमारी स्थिति बहुत विचित्र है. हम ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध कर रहे हैं और वह विरोध नाजीवाद के विरोध से कहीं कम नहीं है. अगर कोई अंतर है तो वह डिग्री का है. मानव जाति का पांचवां हिस्सा ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन है और वह जांच और आलोचना से परे नहीं है.
लेकिन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हमारे विरोध का अर्थ ब्रिटिश लोगों को नुकसान पहुंचाना नहीं है. हम उन्हें बदलना चाहते हैं, युद्ध के मैदान में हराना नहीं चाहते. ब्रिटिश शासन के खिलाफ हमारा विद्रोह एक निहत्था विद्रोह है. लेकिन हम बदल पाएं या न बदल पाएं, लेकिन इतना तो तय है कि अपने अहिंसात्मक असहयोग के द्वारा हम उनके शासन को असंभव बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं.
यह वह तरीका है, जिसे अंत में कोई पराजित नहीं कर सकता. यह इस ज्ञान और विश्वास पर आधारित है कि कोई भी शासक अपने गुलाम के सहयोग के बगैर (चाहे वह स्वेच्छा से करे या दबाव में) अपनी सत्ता कायम नहीं रख सकता. हमारे शासक हमारी जमीन और शरीर पर कब्जा कर सकते हैं, लेकिन वे हमारी आत्मा को गुलाम नहीं बना सकते. वे भारत के हरेक स्त्री, पुरुष और बच्चे के को पूर्ण रूप से नष्ट करके ही अपने इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.
हो सकता है कि सभी वीरता के उस स्तर तक न उठ पाए और यह भी मुमकिन है कि डर के कारण विद्रोह और आंदोलन की पीठ थोड़ी झुक भी जाए, लेकिन फिर भी यह बात पूरी दृढ़ता के साथ अपनी जगह पर कायम है. तानाशाह के अत्याचारों और हिंसा के बीच ढेर सारे स्त्री और पुरुष उठ खड़े होंगे. आप मेरा यकीन करिए, जब मैं आपसे कह रहा हूं कि आपको इस देश में अप्रत्याशित रूप से बड़ी संख्या में ऐसे स्त्री और पुरुष मिलेंगे. हमें अपने अतीत से यह शिक्षा मिली है.
भारत अपने शासकों के खिलाफ कोई दुर्भावना रखे बगैर उनके सामने घुटने टेकने की बजाय आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार रहेगा.
हम पिछली आधी शताब्दी से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का प्रयास कर रहे हैं. स्वतन्त्रता का आन्दोलन इतना प्रबल कभी नहीं रहा, जितना अब है. अब यह सबसे शक्तिशाली राजनीतिक आंदोलन में तब्दील हो चुका है.
यदि अंग्रेज नहीं तो कोई और ताकत आपके खिलाफ उठेगी और आपकी कार्यप्रणाली में सुधार करेगी. वह आपके ही शस्त्रों से आपको हरा देगी. आप अपने लोगों के लिए ऐसी कोई विरासत छोड़कर नहीं जा रहे, जिस पर वे गर्व महसूस कर सकें. वे क्रूरता वह गर्व नहीं कर सकते, चाहे उस क्रूरता की योजना कितनी भी कुशलता के साथ क्यों न बनाई गई हो.
इसलिए मैं आपसे मानवता के नाम पर इस युद्ध को समाप्त करने की अपील करता हूं.
आप जानते हैं, हाल ही में मैंने ब्रितानियों से मेरे अहिंसक प्रतिरोध के तरीके को स्वीकार करने की अपील की थी. मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अंग्रेज मुझे एक मित्र के रूप में जानते हैं, हालांकि एक विद्रोही के रूप में भी. मैं आपके और आपके लोगों के लिए बिलकुल अजनबी हूं. मुझमें आपसे वह अपील करने का साहस नहीं है, जो मैंने हरेक ब्रिटिश नागरिक से की थी. लेकिन ऐसा नहीं है कि यह बात आप पर भी उतनी ही शिद्दत से लागू नहीं होती, जितनी कि अंग्रेजों पर. मेरा वर्तमान प्रस्ताव बहुत सरल है. यह कहीं अधिक व्यावहारिक है.
आपका,
एम.के. गांधी