प्रदूषण के कारण छोड़ी दिल्ली, अब खजुराहो जाकर बच्चों का भविष्य संवार रहीं नीतू दहिया
नीतू दहिया फरीदाबाद के बल्लभगढ़ की रहने वाली हैं. साल 2018 में उनके बेटे का स्वास्थ्य खराब रहने लगा. उसके फेफड़े में समस्या पैदा होने कारण डॉक्टर ने उसे दिल्ली से बाहर ले जाने के लिए कह दिया. इसके बाद ही उनके पति ने अपनी नौकरी छोड़ दी और दोनों लोग खजुराहो में शिफ्ट हो गए.
एक ऐसे समय में जब लोग गांवों से शहरों की ओर भाग रहे हैं, तब हरियाणा की रहने वाली नीतू दहिया मध्य प्रदेश के खजुराहो में जाकर बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं. इसके साथ ही वह पर्यावरण को भी लेकर बेहद संवेदनशील हैं और वहां इस दिशा में भी लोगों को जागरूक कर रही हैं.
नीतू दहिया फरीदाबाद के बल्लभगढ़ की रहने वाली हैं. साल 2018 में उन्हें पता चला कि दिल्ली के प्रदूषण के कारण उनके बेटे का स्वास्थ्य खराब रहने लगा. उसके फेफड़े में समस्या पैदा होने कारण डॉक्टर ने उसे दिल्ली से बाहर ले जाने के लिए कह दिया. इसके बाद ही उनके पति ने अपनी नौकरी छोड़ दी और दोनों लोग खजुराहो में शिफ्ट हो गए.
अपना रिजॉर्ट बनाने में रखा पर्यावरण का ध्यान
नीतू के पति रवि की खजुराहो में 22 एकड़ जमीन है. वहां जाकर उन्होंने अपन रिजॉर्ट 'टाइगर्स एंड टेम्पल' की शुरुआत की. इसे बनाने में उन्होंने पर्यावरण का पूरा ध्यान रखा और पूरा रिजॉर्ट लकड़ी से बनाया. उन्होंने अपना कैफे भी लकड़ी का बनाया है. रिजॉर्ट में ही वे खेती भी करते हैं. वहां पर वे फल, फूल और सब्जियां उगाते हैं.
नीतू के रिजॉर्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी 12वीं पास है. इसका कारण है उन्होंने डिग्री को मान्यता देने के बजाय ऐसे लोगों को काम पर रखा जो न तो बाहर जा पा रहे हैं और न ही उन्हें स्थानीय स्तर पर कोई रोजगार मिल रहा है. उनके पास कुल 20 लोगों का स्टाफ है.
बच्चों को पढ़ाने की उठाई जिम्मेदारी
नीतू का रिजॉर्ट बनाने का काम वहां के स्थानीय मजदूर करते थे. हालांकि, उन्होंने देखा कि मजदूरों के बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते हैं. लेकिन उनकी सही ढंग से पढ़ाई नहीं हो पाती है.
इसको देखते हुए नीतू ने उन्हें पढ़ाने का जिम्मा उठा लिया. 4-5 बच्चों को पढ़ाने से शुरुआत करने वाली नीतू के पास आज इलाके 80-90 बच्चे रोजाना पढ़ने आते हैं. वह उन्हें अलग-अलग सब्जेक्ट के साथ इंगलिश स्पीकिंग में भी मदद करती हैं.
नीतू अपने कॉलेज में बॉक्सिंग और ताइक्वांडो में गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं. वह वहां बच्चों बॉक्सिंग, ताइक्वांडो, खो-खो के साथ योगा भी सिखाती हैं.
YourStory से बात करते हुए नीतू ने कहा कि यह बहुत ही पिछड़ा इलाका है. शिक्षा को लेकर इनके मन में कोई जागरूकता नहीं है. यहां के लोग अंधविश्वास में बहुत ज्यादा यकीन करते हैं. आज जहां लोग अपने बच्चों के आरव, अनन्या जैसे मॉडर्न नाम रखते हैं तो वहीं यहां के लोग वही पुराने नाम रखते हैं जो हमारे दादा-परदादा के होते थे.
नीतू आगे कहती हैं कि, यहां के लोगों की सोच अभी भी 70-80 साल पहले की है. यहां के शिक्षा का स्तर अगले 10 साल में भी नहीं सुधरने वाला है. यहां के लोग अपने बच्चों को पढ़ने ही नहीं भेजते हैं चाहे शिक्षा पैसे से मिल रही हो या फ्री में. वे अपने बच्चों को गाय-भैंस चरवाने भेज देते हैं. वहीं, घर की बड़ी लड़कियां अपने छोटे-भाई बहनों का ख्याल रखती हैं.
उन्होंने कहा कि मेरे पास स्मार्ट टीवी है तो उससे भी मैं बच्चों को पढ़ाती हूं. मेरा मानना है कि 1-2 दिन नहीं तो अगर 100 दिन बच्चे मेरे पास आएंगे तो उन्हें कुछ तो समझ में आएगा. मैंने एक रजिस्टर बना रखा है जिसमें रोजाना आने वाले बच्चों की जानकारी रखती हूं. हर कोई बच्चा नहीं आता है तो हम उसके घर तक जाकर उसे बुलाकर लाते हैं.
यही नहीं, नीतू हर रविवार को बच्चों को खाने के लिए ऐसी चीजें देती हैं, जो उन्हें उनके घरों में नहीं मिलते हैं. वह बच्चों को स्टेशनरी भी देती हैं. उन्होंने यहां एक-दो ऐसे बड़े बच्चों को भी लगा रखा है जो उनकी अनुपस्थिति में बच्चों को पढ़ाते हैं.
लोगों को पर्यावरण के प्रति बना रहीं जागरूक
नीतू बताती हैं कि मैं बच्चों और बड़ों सभी को पेड़-पौधे लगाने के लिए भी प्रोत्साहित करती हूं. मैं कहती हूं कि हमें पेड़ नहीं काटने चाहिए, बल्कि लगाने चाहिए. अभी हाल ही में मैंने बच्चों के साथ मिलकर 100 से अधिक पेड़ लगाए हैं.
नीतू ने कहा कि मैं यहां बच्चों को प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करने की भी सलाह देती हूं. मैंन उन्हें चिप्स के पैकेट खरीदने से भी रोकती हूं.
बच्चों और महिलाओं को सीखा रहीं हुनर
नीतू ने कैंडल बनाना और सिलाई भी सीखा है. यही कारण है कि वह बच्चों से लेकर गांव की महिलाओं तक को तरह-तरह के हुनर सिखाती हैं. वह लोगों को कैंडल बनाना, सिलाई करना, प्लास्टिक की जगह झोले के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए झोला बनाना सिखाती हैं.
खजुराहो के लोग होली को बहुत धूम-धाम से मनाते हैं. इसी को ध्यान में रखकर नीतू उन्हें नेचुअल रंग बनाना भी सिखाती हैं. दहिया बच्चों को कॉर्न स्टार्च और फूलों से रंग और गुलाल बनाना सिखाया है.
24 साल की उम्र में शादी के बाद खुद को बदला
नीतू के पिता चाहते थे कि वह प्रशासनिक सेवा का हिस्सा बनें. 12वीं की तक पढ़ाई उन्होंने फरीदाबाद से ही की. 2009-10 में उन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में ऊर्दू विषय में एक साल के डिप्लोमा के लिए एडमिशन लिया था. हालांकि, अंग्रेजी और अन्य चीजों की वजह से उन्होंने उसे छोड़ दिया.
इसके बाद 24 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. एक साल बाद उन्हें एक बच्चा हुआ. हालांकि, इसके बावजूद उन्होंने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से अपना मास्टर्स पूरा किया.
एनजीओ के लिए किया है अप्लाई
नीतू बताती हैं कि उन्होंने दो-तीन महीने पहले एक एनजीओ के लिए भी अप्लाई किया है. उन्होंने बुंदेलखंड की एक नदी कर्णावति के नाम पर उसका नाम 'कर्णावति महिला एवं बाल संस्थान' रखने का फैसला किया है.